Friday, January 15, 1999

युवाओं के बिना नहीं जीती जा सकती भ्रष्टाचार से लड़ाई


यह कोई नई बात नहीं कि देश का हर आदमी भ्रष्टाचार से त्रास्त है। पर क्या वजह है कि एक के बाद एक प्रधानमंत्रh भ्रष्टाचार से राहत दिलाने का वायदा करके कुर्सी पकड़ते हैं और कुछ ही दिनों में अपने असहाय होने का रोना रोकर अपने भ्रष्ट साथियों को हर तरह का संरक्षण देने में जुट जाते हैं। सब जानते हैं कि सत्ता के शीर्ष से लेकर प्रशासन के निचले स्तर तक भारी भ्रष्टाचार व्याप्त है। कोई भ्रष्टाचार में सीधे शामिल है और कोई भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने में लगा है। जिसके कारण रोजमर्रा की चीजों की किल्लत व महंगाई बढ़ती जा रही हैं। यह साफ है कि युवाओं में फैली बेरोजगारी, अरबों रूपए के घोटालों और प्रशासनिक भ्रष्टाचार के कारण ही हो रही है। साधन संपन्न होने के बावजूद भारत की बहुसंख्यक आबादी बदहाली में इसलिए रह रही है क्योंकि भ्रष्टाचारियों ने देश के प्राकृतिक संसाधनों की लूट मचा रखी है। भ्रष्टाचार के कारण ही किसानों का शोषण हो रहा है और उन्हें उनकी फसल के वाजिब दाम नहीं मिल रहे हैं। नासिक कांड के वीभत्स बलात्कारियों का छूट जाना सिद्ध करता है कि पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण ही देश में महिलाओं पर अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं। भ्रष्टाचार के कारण ही देश का आर्थिक विकास बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। क्योंकि प्रशासनिक अव्यवस्था व आधारभूत ढांचे की कमी से युवा उद्यमियों को आगे बढ़ने में दिक्कत आ रही है। भ्रष्टाचार रोकने के लिए बनी देश की सभी एजेंसियां इस काम में नाकाम सिद्ध हो चुकी हैं। बड़े भ्रष्टाचारी यह कह कर छूट जाते हैं कि भ्रष्टाचार तो आम जीवन में भी व्याप्त है। जबकि हकीकत यह है कि छोटे-छोटे काम करवाने के लिए आम आदमी को न चाहते हुए भी मजबूरन भ्रष्टाचार का सहारा लेना पड़ रहा है।
इसलिए अब देश के नागरिकों में भ्रष्टाचार को लेकर भारी चिंता है। इसका प्रमाण यह है कि पिछले कुछ दिनों से भ्रष्टाचार व प्रशासनिक दुव्र्यवहार से लड़ने के लिए जागरूक नागरिकों व जन संगठनों ने अपने वैचारिक मतभेद भुलाकर पास आना शुरू कर दिया है। आने वाले हफ्तों में मुंबई, वर्धा व कई अन्य नगरों में जुझारू संगठनों को एक साथ लाने के लिए कई महत्वपूर्ण बैठकें होने जा रही हैं। जिनमें देश के तमाम संगठनों के प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे। यह महसूस किया जा रहा है कि जब तक देश के सभी चिंतित नागरिक विशेषकर युवा हर स्तर पर जन सतर्कता समितियां बना कर अपने इलाके के भ्रष्ट अधिकारियों व जन प्रतिनिधियों के विरूद्ध निरंतर अभियान नहीं चलाएंगे, कुछ सुधरने वाला नहीं है।
इस दिशा में देश भर के कुछ मशहूर संगठनों व लोगों ने मिलकर अभी हाल ही में एक पीपुल्स विजिलेंस कमीशनका गठन किया है। ताकि लोगों व संगठनों को एक जुट किया जा सके। यह जन आयोग प्रशासनिक भ्रष्टाचार के विरूद्ध देश भर के चिंतित नागरिकों और युवाओं को लामबंद करने का प्रयास करेगा। इस आयोग की विशेषता यह है कि इसमें मजदूर और जन आंदोेलनों से लेकर उद्योगपति तक शामिल हैं। इनके अलावा वकालत, पत्राकारिता व शिक्षा से जुड़े लोग, विभिन्न व्यवसायों से जुड़े प्रोफेेशनल युवा, अप्रवासीय भारतीय, भारतीय प्रशासनिक सेवा के कार्यरत अधिकारी, सांसद व एक राज्य के मंत्राी तक इसमें शामिल हैं। पिछले दिनों देश के सुदूर प्रांतों से आए कुछ मशहूर और समर्पित इन लोगों ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर तीन दिन तक दिल्ली में बैठकर गंभीर ंिचंतन किया। जिसमें कुछ रोचक बातें सामने आईं। इनसे देश में भ्रष्टाचार को लेकर चल रहे चिंतन की धाराओं को समझने में सुविधा होगी। इसीलिए इनका यहां विस्तृत उल्लेख आवश्यक है। 
अपने ही सहकर्मी भ्रष्ट आईएएस अधिकारियों के विरूद्ध अभियान चलाने वाले उत्तर प्रदेश के विजय शंकर पांडे का कहना था कि कानून में इतने सारे प्रावधान है जिनका सहारा लेकर ईमानदार अधिकारी जनता के हित में कुछ भी बेधड़क कर सकते हैं। कोई राजनेता उन्हें छू भी नहीं सकता। उन्होंने बताया कि भ्रष्टाचारियों के विरूद्ध एक जुट हुए उत्तर प्रदेश के उनके साथियों ने मिलकर तमाम ऐसे पत्राक तैयार किए हैं जिसमें ऐसी शंकाओं के समाधान बताए गए हैं। उधर आईएएस की नौकरी में रहकर आजीवन सादगी से जीवन बिताने वाले और बस्तर के आदिवासियों के हक की लंबी लड़ाई लड़ने वाले बीडी शर्मा का मानना है कि जब तक प्रशासनिक व्यवस्था पर जनता का नियंत्राण नहीं होगा तब तक भ्रष्टाचार पनपता रहेगा। उन्होंने बताया कि संविधान के हाल में हुए संशोधन के बाद अब जन जातीय इलाकों की ग्राम सभाओं को यह अधिकार मिल चुका है कि वे अपने गांव की हर व्यवस्था पर सीधा नियंत्राण रखें। उन्होंने यह भी बताया कि जहां-जहां यह जानकारी फैलती जा रही है वहां-वहां स्थानीय प्रशासन की जनता के प्रति जवाबदेही बढ़ती जा रही है। उधर महाराष्ट्र के एक साधारण से परिवार से आईएएस में आने के बावजूद युवा अवस्था में ही नौकरी छोड़कर महाराष्ट्र के युवाओं को चाणक्य मंडल बना कर संगठित करने में जुटे पुणे के अविनाश धर्माधिकारी का कहना था कि आज हालत इतनी खराब हो गई है कि अगर कोई प्रशासनिक अधिकारी जनता का काम ईमानदारी से करता है तो जनता उसके प्रति कृतज्ञ हो जाती है। जबकि यह लोगों का हक है कि अधिकारी ईमानदारी से उसकी सेवा करे। इसलिए इस विषय में जागृति फैलाने की जरूरत है।
इनके अलावा मेगासेसे एवार्ड से सम्मानित मशहूर पर्यावरणवादी व सुप्रीम कोर्ट के वकील एमसी मेहता ने जोरदेकर कहा कि कोई भी व्यक्ति भ्रष्टाचार के विरूद्ध लंबे समय तक अकेले नहीं लड़ सकता। उसे तमाम तरह की मुसिबतों का सामना करना पड़ता है। इसलिए संगठित लड़ाई की जरूरत है। अभी हाल ही में 70 लाख रूपए के एक अमेरिकी पुरस्कार को लात मार देने वाले, जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) के संयोजक व विश्व मछुआरा संगठन के अध्यक्ष, केरल के टाॅमस कुचैरी का मानना था कि जब तक काॅलेजों के युवा स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार के विरूद्ध एक जुट होकर नहीं लड़ेंगे कोई लड़ाई कामयाब नहीं हो सकती है। गुजरात के युवाओं में देशभक्ति और सामाजिक चेतना का प्रसार करने वाले युवा इंजीनियर संजीव शाह व उनकी सहयोगी माया सोनी का मत था कि लड़ने के साथ व्यक्तित्व निर्माण भी बहुत जरूरी है। बिना आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों के लड़ी गई लड़ाई बहुत दूर तक नहीं जाएगी। मेधा पाटेकर के घनिष्ठ सहयोगी और बिहार आंदोलन की मशाल आज तक ईमानदारी से जलाए रखने वाले डा. सुरेश खैरनार को उन लोगों से खतरा लगता है जो भ्रष्टाचार के विरूद्ध आंदोलन में राजनैतिक लाभ की आकांक्षा से आते हैं और फिर धोखा देकर भाग जाते हैं। बिहार आंदोलन और वीपी सिंह के अभियान के बाद उपजी स्थिति के प्रति आगाह करते हुए उन्होंने ऐसी स्थिति से सचेत रहने की आवश्यकता पर जोर दिया। इंग्लैंड व आईआईटी कानपुर से पढ़ने के बाद पिछले दस वर्षों से मध्य प्रदेश के छत्तीसगढ़ इलाके के मजदूरों और आदिवासियों के साथ संघर्षों का जीवन जीने वाली सुधा भारद्वाज को इस बात की खुशी थी कि अब केवल मजदूर ही नहीं बल्कि राहुल बजाज जैसे बड़े-बड़े उद्योगपति भी मल्टीनेशनल कंपनियों के खतरों के प्रति चिंतित हो रहे हैं। उन्होंने इस बात पर आक्रोश व्यक्त किया कि मजदूरों के हक में बने कानून लागू करवाने के लिए भी एक लंबी लड़ाई लड़नी पड़ती है। कभी-कभी तो शहादत देनी पड़ती है। इसलिए उन्होंने इस बात को जोर देकर कहा कि भ्रष्टाचार के विरूद्ध जो लड़ाई छिड़े उसमें मजदूर की इन तकलीफों का अगर ध्यान रखा जाएगा तो इस लड़ाई को बहुत बड़े वर्ग का समर्थन मिलेगा।
उद्योग व व्यापार क्षेत्रा का प्रतिनिधित्व करते हुए इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ मैनेजमेंट (अहमदाबाद) के छात्रों की एल्यूमनि एसोसिएशन के प्रतिनिधि राजस्थान के राजन सांघी व दिल्ली के युवा चार्टेड एकाउंटेंट व सामाजिक कार्यकर्ता पंकज अग्रवाल का कहना था कि ऐसा नहीं है कि उनकी जमात के लोगों में भ्रष्टाचार को लेकर चिंता नहीं है या वे कुछ करना नहीं चाहते। उन्होंने बताया कि जब तक प्रशासन से भ्रष्टाचार को दूर नहीं किया जाएगा उद्योग और व्यापार चलाना और भी मुश्किल होता जाएगा। उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया कि जहां छोटे-छोटे लोगों को तंग किया जाता है वहीं बड़े-बड़े अधिकारी करोड़ों रूपए की रिश्वत कमा कर भी कानून की गिरफ्त से बच जाते हैं। जिसे हर कीमत पर रोकनाचाहिए। पिछले लोकसभा चुनाव में श्री अटल बिहारी वाजपेयी के लिए भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देने के वायदे वाला प्रचार अभियान तैयार करने वाले युवा व काॅन्ट्रेक्ट एडवरटाइजिंग कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी सुशील पंडित का मानना है कि भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए हर विचारधारा के मानने वाले नौजवानों और नागरिकों को एक साथ सामने आना चाहिए। वरना कोई भी सरकार क्यों न हो भ्रष्टाचार नहीं रोक पाएगी और जनता इसी तरह त्रास्त रहेगी। श्री पंडित अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् से जुड़े रहे हैं।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली के प्राध्यापक व समाजशास्त्राी आनंद कुमार ने इस बात पर जोर दिया कि युवाओं के सामने आदर्श का अभाव हो गया है। जबकि देश में बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में नैतिक मूल्यों के लिए लड़ाई लड़ी और जीती। ऐसे लोगों की जिम्मेदारी है कि वे काॅलेज और विश्वविद्यालय परिसरों में युवाओं को प्रशिक्षित करने वाले शिविरों में जाएं ताकि जुझारू नौजवानों की एक फौज खड़ी हो सके। मशहूर चिंतक प्रो. आशीष नंदी ने तो यहां तक कहा कि अगर भ्रष्टाचार में लिप्त लोग भी इस आंदोलन को मदद देने आएं तो हमें संकोच नहीं करना चाहिए क्योंकि लड़ाई की इस प्रक्रिया से ही उनकी भी शुद्धि होगी। जाहिर है कि कि जब वे ऐसी हिम्मत करेंगे तो उन्हें इसके परिणामों का अनुमान होगा। टाइम्स आॅफ इंडिया पटना के संपादक व कुछ समय पहले तक जनेवि के छात्रा नेता रहे नलिनिरंजन मोहंती को लगता है कि सूचना का अधिकार मिले बिना भ्रष्टाचार के पूरे तंत्रा को पकड़ पाना सरल न होगा। 
गुजरात के वर्तमान आपूर्ति मंत्राी जसपाल सिंह ने जोर देकर कहा कि इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किस दल में हैं। यदि आप भ्रष्टाचार से लड़ने की कमर कस लें तो भी आप अपनी जगह बने रह सकते हैं। उन्होंने स्वीकारा कि कई बार सब कुछ कर पाना संभव नहीं होता पर गलत का विरोध कर पाना भी एक उपलब्धि है। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर समाज के विभिन्न वर्गों और व्यवसायों से जुड़े देशभर के लोगों की ये टिप्पणियां इस बात की तरफ इशारा करती हैं कि जो जहां है वहीं भ्रष्टाचार से त्रास्त है और इससे निजात पाना चाहता है। यह भी सच है कि भ्रष्टाचार के विरूद्ध बोलने वाले कुछ लोग भी कहीं न कहीं कुछ न कुछ तो समझौते जरूर किए बैठें हैं। पर यह भी सच है कि अगर मुल्क के हालात ठीक हों तो कोई क्यों ऐसा करेगा ? क्या वजह है कि वहीं हिंदुस्तानी विदेशों में कानून तोड़ने की हिम्मत नहीं करते ? बिना भ्रष्ट आचरण के तरक्की करते हैं। हमारे देश के हुक्मरान यदि वाकई चाहें तो यहां भी ऐसे हालात पैदा कर सकते हैं। जब वे ऐसा करने में कमजोरी दिखाएं तो फिर जाहिरन यह जिम्मेदारी युवाओं व समाज के जागरूक नागरिकों के ऊपर आ जाती है कि वे मुल्क के निजाम को ठीक रास्ते पर लाने के लिए तत्परता से सक्रिय हों। युवाओं में आदर्श होता है। उनमें निडरता होती है। उन्हें बुराई से लड़ने में आनंद आता हैं। उन्हें सिर्फ अनुभवी लोगों की सलाह की जरूरत होती है। दुनियां में जहां भी बदलाव आ रहे हैं उनकी साझी ताकत से ही आ रहे हैं। भ्रष्टाचार के विरूद्ध इंडोनेशिया में चल रहे छात्रा आंदोलन ने वहां की सरकार की नींवे हिला दी है। युवाओं की अगुवाई के बिना न तो कोई क्रांति सफल हुई है और न ही कोई राष्ट्र मजबूत बना है।

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