Friday, May 17, 2002

क्या श्री गिल गुजरात में सफल होंगे ?


फौलादी इरादे और मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रशासन में पूरी निपक्षता किसी भी बिगड़ी स्थिति को संभालने में कामयाब हो सकती है। सुपर काॅप श्री केपीएस गिल इसी भावना से अपनी नई जिम्मेदारी को अंजाम दे रहे हैं। आज गुजरात को इसकी ही जरूरत है। यूं आग अभी शांत नहीं हुई पर जो हो रहा है उसे सांप्रदायिक दंगा कहना भी गलत होगा। जो हो रहा है वो हिंसा की छुटपुट वारदातें हैं। मुट्ठी भर लोग ही इस किस्म की छुटपुट घटनाओं में जुटे हैं। पर अब ऐसा बहुत दिन तक नहीं हो पाएगा। आज गुजरात में सबसे बड़ी समस्या यह है कि अल्पसंख्यक समुदाय का भरोसा प्रशासन में नहीं है। सबसे पहले इसी भरोसे को दुबारा कायम करना होगा। अपनी नई जिम्मेदारी संभालते ही श्री गिल ने पुलिस प्रशासन में फेरबदल कर इसका संकेत दिया है। इतना ही नहीं उन्होंने पुलिस को हिदायत दी है कि दंगों में जिन परिवारों के जानमाल की हानि हुई है उनकी शिकायत फौरन दर्ज की जाए। ठीक से जांच की जाए। गुजरात जा कर मौके पर हालात का मुआइना करने वाले बहुत सारे स्वयं सेवी संगठनों ने यह शिकायत की थी कि अल्पसंख्यक समुदाय के दंगा पीडि़त लोगों के साथ प्रशासन न्याय नहीं कर रहा है। श्री गिल के इस कदम से अब वह शिकायत दूर हो जाएगी। गुजरात के स्वयं सेवी संगठनों का भी फर्ज है कि वे एक बार फिर नए विश्वास के साथ सामने आएं और इन शिकायतों को दर्ज करवाने में दंगा पीडि़तों की मदद करें। एक सावधानी उन्हें बरतनी होगी और वह कि स्थिति का सही जायजा लेकर ही उसकी शिकायत की जाए। निहित स्वार्थसत्ता के दलाल और धूर्त लोग इसका नाजायज फायदा उठाकर इन शिकायतों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश न करें।
एक महत्वपूर्ण कदम जो श्री गिल ने उठाया है, वह है दुर्घटनाओं की रोकथाम के लिए पूरी सतर्कता बरतना। बजाए इसके कि किसी इलाके में आगजनी, चाकूबाजी या लूटपाट की घटना होने के बाद पुलिस वहां भाग कर पहुंचे, बेहतर होगा कि ऐसी दुर्घटनाओं की संभावनाओं को समय रहते कुचल दिया जाए। इसके लिए स्थानीय लोगों की मदद, प्रभावशाली खुफिया नेटवर्क और व्यवहारिक कदम समय रहते उठाने होंगे ताकि दुर्घटना को टाला जा सके। पंजाब में आतंकवाद की चरम स्थिति में अपनी बुद्धि और कौशल से हालात को नियंत्रित करने वाले श्री केपीएस गिल इस क्षेत्र में काफी अनुभवी हैं इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि वे अपने इस प्रयास में सफल होंगे। श्री गिल का मानना है कि दुर्घटनाओं के घट जाने के बाद उनके पीछे भागने से हालात नहीं सुधरा करते बल्कि ऐसी संभावनाओं को समय रहते पहचान कर उसका माकूल इलाज करके ही वाछित परिणाम प्राप्त किया जा सकता है।
इस पूरे अभियान में गुजरात के मीडिया की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। जो हुआ सो हुआ, अब भलाई इसी में है कि ऐसे हालात पैदा किए जा सकें जिनसे समाज में पहले जैसा अमन-चैन पैदा हो सके। तनाव की स्थिति में बहुत दिनों तक नहीं रहा जा सकता। इससे सबसे ज्यादा बुरा प्रभाव तो लोगों के कारोबार पर पड़ता है। पीतल की कलाकृतियों के, निर्यात के लिए मशहूर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के नगर मुरादाबाद में अक्सर सांप्रदायिक दंगे हुआ करते थे। क्योंकि वहां हिंदू और मुसलमानों की संख्या लगभग बराबर है। 1980 में वहां महीनों दंगे चले। नतीजा यह हुआ कि सैकड़ों करोड़ रूपए सालाना का निर्यात तेजी से गिर गया। हालत इतनी बुरी हो गई कि पीतल उद्योग के मजदूरों और कारीगरों ने आत्महत्याएं करनी शुरू कर दी। इस दंगे की आर्थिक मार से मुरादाबाद को उबरने में वर्षों लग गए। यही कारण है कि दस वर्ष बाद जब अयोध्या से जुड़ा मंदिर विवाद उछला तो मुरादाबाद के नागरिकों ने अपने शहर में सांप्रदायिक दंगे नहीं होने दिए। हाल ही में गुजरात में दंगों से जो आर्थिक हानि हुई है उससे उबरने में गुजरात को भी काफी समय लगेगा। यह दुर्भाग्य ही है कि गुजरात की समझदार और देशप्रेमी जनता अभी भूचाल की मार से उबर भी न पाई थी कि येे नई  त्रासदी झेलनी पड़ गई। वैसे भी गुजराती लोग मूलतः व्यवसायिक बुद्धि वाले होते हैं। दुनिया के हर कोने में गुजराती मूल के सफल व्यापारी और उद्योगपति मिल जाएंगे। ऐसी मानसिकता वाले लोग अशांति नहीं शांति चाहते हैं। क्योंकि शांति काल में ही व्यवसाय फलता-फूलता है। अगर गुजरात के हिंदू और मुस्लिम व्यापारी पहल करें और पूरे समाज में अमन-चैन की आवश्यकता पर जोर दें तो गुजरात में शांति की बहाली जल्दी ही हो जाएगी। श्री केपीएस गिल को पूर्ण आत्म-विश्वास है कि वे इस काम को अगले दो-तीन हफ्तों में पूरा कर देंगे।
उधर गुजरात पुलिस को भी अपने रवैए में बदलाव करना होगा। जाने अनजाने में अगर उसके व्यवहार से अल्पसंख्यकों में यह संकेत गया है कि पुलिस प्रशासन निष्पक्ष नहीं रहा तो यह गुजरात पुलिस के लिए चिंता की बात होनी चाहिए। सरकारें आती जाती रहती हैं। जो आज सत्तारूढ़ दल में हैं वे कल विपक्ष में थे। प्रशासनिक अधिकारियों को अपने हुक्मरानों के वहीं आदेश मानने चाहिए जो न्याय संगत हो और तर्क संगत हो। पिछले कुछ वर्षों से एक दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति विकसित हो रही है। प्रांतों के प्रशासन का राजनीतिकरण होता जा रहा है। जनता के कर के पैसे से अपना वेतन, सुख-सुविधाएं और सत्ता भोगने वाले अधिकारी जानबूझ कर सत्तारूढ़ दलों के प्रति आवश्यकता से अधिक झुकते जा रहे हैं। इसके पीछे न तो कोई दबाव है और ना ही उनके सामने अपनी नौकरी बचाने का सवाल। ऐसा होता तो वे तमाम अधिकारी कब के सरकारी नौकरी छोड़ चुके होते जो ईमानदारी, निष्पक्षता और पूर्णपारदर्शिता के साथ काम करते हैं। पर हकीकत यह है कि ऐसे तमाम लोग आज भी व्यवस्था में हैं और तमाम सीमाओं के बावजूद वह सब कर रहे हैं जो उस पद पर रहते हुए उन्हें करना चाहिए। दरअसल सत्तारूढ़ दल के प्रति आवश्यकता से अधिक झुकाव का कारण व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा पूरी करने की अधीरता होता है। समय से पहले या अपनी योग्यता से अधिक महत्वपूर्ण पद पाने के लालच में प्रायः प्रशासनिक अधिकारी ऐसे अनैतिक काम कर जाते हैं। श्री केपीएस गिल तो कुछ समय के लिए गुजरात में भेज गए हैं। पर गुजरात काॅडर में तैनात पुलिस अधिकारियों को तो शेष जीवन गुजरात में ही बिताना है। अगर आज उन पर पक्षपातपूर्ण रवैए का धब्बा लग गया तो उनके कार्यकाल का शेष हिस्सा अच्छा नहीं गुजरेगा। उनकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिंह लग जाएंगे। तब वे न तो अपनी शक्ति का ही उपयोग कर पाएंगे और ना ही सत्ता सुख भोग पाएंगे। सम्मान के हकदार होंगे।
गुजरात के हालात पर शोर मचाने वाले लोगों को भी अपने रवैए में बदलाव लाना पड़ेगा। शोर अगर सिर्फ राजनैतिक मकसद से वोट भुनाने की भावना से मचाया जा रहा है तो ऐसे शोर से कुछ भी नहीं बदलेगा। किंतु शोर यदि सुधार की मानसिकता से मचाया जा रहा है तो उसका वांछित प्रभाव अवश्य ही पड़ेगा। दुख की बात यह है कि प्रायः शोर मचाने वाले अपने राजनैतिक आकाओं के इशारे पर ही शोर मचाते हैं। इसमें कोई दल अपवाद नहीं है। पर ऐसे शोर से गुजरात की जनता को फायदा कम नुकसान ज्यादा होगा। हां, यदि प्रशासनिक ईकाइयां अपना कर्तव्य निष्पक्षता से नहीं निभा रही तब उन्हें बक्शने की कोई जरूरत नहीं। ऐसा नहीं है कि गुजरात कीे पुलिस और प्रशासनिक व्यवस्था में ऐसे लोग नहीं हैं जिन्होंने वहां भड़के दंगों के दौरान अपना मानसिक संतुलन नहीं खोया और जो सही लगा वही करा। पंजाब के भूतपूर्व पुलिस महानिदेशक श्री केपीएस गिल की नियुक्ति से ऐसे सभी जिम्मेदार अधिकारियों में आशा की किरण जागी है। क्योंकि उन्हें श्री गिल की निष्पक्षता और कार्यक्षमता पर विश्वास है। वे जानते हैं कि श्री गिल को गुजरात इसलिए नहीं भेजा गया कि गुजरात पुलिस निकम्मी है। बल्कि इसलिए भेजा गया कि उसे इस कठिन परिस्थिति में एक कुशल और अनुभवी पुलिस अधिकारी के अनुभवों का लाभ मिल सके। अगर गुजरात पुलिस श्री गिल के अनुसार चलती है और गुजरात में शांति बहाल हो जाती है तो गुजरात पुलिस को इसका श्रेय पूरी दुनिया में मिलेगा। क्योंकि आज सारी दुनिया की नजर गुजरात पर है। गुजरात में आज यह चर्चा भी चल रही है कि यह कदम इतनी देरी से क्यों उठाया गया? अगर श्री गिल को भेजना ही था तो इतनी देर क्यों लगाई ? गुजरात में हालात जैसे ही बेकाबू हुए थे श्री गिल कोे वहां भेजा जा सकता था। खैर, देर से ही हो पर यह एक सही कदम है। यदि श्री गिल गुजरात में शांति बहाली में कामयाब हो जाते हैं, जिसका उन्हें पूर्ण विश्वास है, तो यह सभी के लिए बहुत संतोष की बात होगी। ये समय श्री गिल को हर संभव सहायता मुहैया करवाने का है ताकि वे अपने मिशन गुजरातसे कामयाब हो कर लौटें।

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