Friday, December 13, 2002

गुजरात चुनाव से कांग्रेस को सबक

हार जीत तो  हर चुनाव में ही होती है पर गुजरात के चुनाव में कई बाते सामने आई। गोधरा काण्ड के बाद हाशिए पर पहँुच चुकी कांग्रेस (ई) बड़े दमखम के साथ उठ खड़ी हुई। भाजपा की तमाम कोशिशांे के बावजूद गोधरा और आतंकवाद इस चुनाव प्रचार का मुख्य मुद्दा नहीं बन सके। श्रीमती सोनिया गाँधी के तेवरों, हिन्दी पर पकड़ और जनता के बीच लोकप्रियता में उफान आया। गुजरात प्रभारी श्री कमल नाथ ने एक मंजे हुए कमांडर की तरह अपनी सेना का सफल संचालन करके कांग्रेस के उज्जवल भविष्य का संकेत दिया। जनता के मन में आतंक पैदा करके वोट मांगने की राजनीति करने के कारण भाजपा के नेतृत्व का कद देश की नजर में काफी बौना हो गया है।



जो मीडिया कल तक कांग्रेस को गुजरात चुनाव में एक फिसड्डी खिलाड़ी मानकर चल रहा था उसे अचानक यह कहना पड़ा की गुजरात में बराबर की टक्कर है। उत्तर प्रदेश चुनाव में भाजपा की प्रभावशाली चुनावी विजय के लम्बे चौडे़ दावे कर चुके मीडिया सर्वेक्षणों को मुंह की खानी पड़ी थी। इसलिए इस बार मीडिया ज्यादा सचेत रहा। जहां वो अभी तक भाजपा की बढ़त बताता रहा वहीं यह कहने से नहीं चूका कि 29 फीसदी मतदाता चुनाव के दिन निर्णय करेंगे और वही अन्तिम निर्णायक समय होगा। आज से 6 महीने पहले जब मैं सौराष्ट्र में एक सार्वजनिक व्याख्यान देने गया था तो सारे रास्ते आम लोगो से गुजरात के बारे में सवाल पुछता रहा। कांग्रेस का कोई नाम तक नहीं ले रहा था। पर इस चुनाव में जब 10 दिन गुजरात में घूमा तो हर व्यक्ति कह रहा था कि मुकाबला बराबरी का है। यह कैसे हुआ ?

इसमें सबसे प्रमुख भूमिका तो श्रीमती सोनिया गाँधी की रही जिन्होने भाजपा से निकल कर आये श्री शंकर सिह वाघेला पर विश्वास किया और उन्हे गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया। यह एक जोखिम भरा निर्णय था, जो उन्होंने लिया। श्रीमती गाँधी के इस निर्णय से कई संदेश गये। एक तो गुजरात की कांग्रेस में उत्साह की लहर दौड़ गयी। कार्यकर्ताओं के हौसले बढ़ गये। श्री शंकर सिंह वाघेला की जमीन से जुड़ी छवि और लडा़कू  तेवरों को देख कर लोगों को लगा कि श्री नरेन्द्र मोदी से अब बराबर का जोड़ीदार भिड़ गया है। श्री वाघेला ने भी गुजरात को भथने में कसर नहीं छोड़ी। अध्यक्ष पद सम्भालते ही वे मैदान में कूद पड़े और गुजरात के चप्पे-चप्पे पर अपनी नजर डाली। उनके जोशीले भाषणों नें समां बांध दिया। शुरू में इंका की गुट बाजी का खतरा था। पर श्री अमर सिंह       चैधरी व श्री माधव सिंह सोलंकी ने भी बड़ी परिपक्वता  का परिचय देते हुए एक टीम की भावना से काम किया, जिसका कांग्रेस को भारी लाभ मिलना चाहिए। श्रीमती गाँधी के इस अप्रत्याशित निर्णय से देश के गैर इंकाई लोगों को भी यह संदेश गया कि कांग्रेस का हृदय विशाल है और जो लोग इसके बेनर तले राजनीति करना चाहते हैं उनका इस दल में स्वागत है। जहां राम मन्दिर आन्दोलन के बाद भाजपा से आकर्षित हुए महत्वपूर्ण लोगों को भाजपा सम्भाल नहीं पायी और निराश कर दिया, वहीं श्रीमती सोनिया गाँधी ने परिपक्व नेतृत्व का परिचय देते हुए कांग्रेस के लिए आगे बढ़ने के नये द्वार खोल दिये।

भाजपा गुजरात में अलोकप्रियता के शिखर पर थी, जब गोधरा काण्ड हुआ। पहले तो उत्तर प्रदेश में उसकी करारी पराजय और फिर दिल्ली निगम चुनावों में पराजय उसका मनोबल तोड़ने के लिए काफी न थी कि गुजरात में हुए लगभग सभी उप-चुनावों में उसकी भारी दुर्गति हुई। अपने शासन में साम्प्रदायिक हिंसा पर कड़ा नियन्त्रण रखने का दावा करने वाली भाजपा इस बात का उत्तर देने में विफल है कि ऐसे समय में ही गोधरा काण्ड क्यों हुआ ? अभी तक गोधरा के नृशंस हत्या काण्ड की ईमानदारी से जाँच नहीं हुई है। अगर हो तो बहुत चैकानें वाले तथ्य सामने आ सकते हैं। कई विशेषज्ञों का मानना है कि गोधरा काण्ड में जो बताया जा रहा है वह सही नहीं है । जो सही है वह बताया नहीं जा रहा। सच्चाई जो भी हो पर जिस तरह से भाजपा, संघ और विहिप ने बार - बार गोधरा को भुनाने की कोशिश की उससे दाल में कुछ काला जरूर नजर आता है। बिना तथ्य सामने आये कुछ नहीं कहा जा सकता पर इतना जरूर है कि केन्द्र और राज्य की भाजपा सरकार और संघ से जुडे़ संगठनों ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया कि गोधरा इस चुनाव का मुख्य मुद्दा बन जाए। पर इस बचकाने प्रयास को इंका ने करारा झटका दिया

गुजरात चुनाव में इंका के प्रभारी श्री कमलनाथ ने दो काम किए । एक तो गुजरात के कुछ सन्तों को उठाकर भाजपा के छद्म हिन्दूवाद के खिलाफ प्रचार में झोंक दिया। दूसरा गोधरा और आतंकवाद कि बात ना करके गुजरात के आर्थिक विकास की बात इतनी जोरदार तरीके से रखी कि भाजपा का नेतृत्व हक्का-बक्का रह गया। श्री कमलनाथ ने तमाम तरह के सुयोग्य लोगों को अपने साथ जोड़कर भाजपा के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। हर एक की योग्यता के अनुरूप उससे काम भी लिया और उसका सम्मान भी किया। इस तरह इंका का प्रचार अभियान बहुत प्रभावशाली बन गया। आज सारा मीडिया श्री कमलनाथ को उनकी कुशल रणनीति के लिए श्रेय दे रहा है। यूं गुट बाजी तो हर दल में होती है। इंका में भी खूब है। पर इंका के वरिष्ठ नेता हों या श्री कमलनाथ के हमजोली, सब में एक खास बात है, चुनौती का मुकाबला सब मिलकर करते है। इंका के सभी नेताओं ने श्री कमलनाथ के साथ पूरा सहयोग किया।  आखिर के दिनों में तो गुजरात के आसमान पर इंका के एक से बढ़कर एक वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं के जगमगाने से भाजपा का नेतृत्व बहुत फीका नजर आने लगा। जहां इंका ने चुनाव प्रचार में विकास के मुद्दे पर ध्यान दिया वहीं भाजपा के विज्ञापन जनता में भय और आतंक पैदा करने वाले थे। मसलन एक विज्ञापन में नरेन्द्र मोदी की फोटो के साथ मतदाताओ से पूछा गया ’’क्या आप चाहते है कि आपका बच्चा स्कूल से घर लौटकर ना आये ?’’ इस स्तर तक नीचे गिर कर भाजपा ने मतदाताओं को डराने की कोशिश की। नतीजे ही बतायेंगे कि वह अपने मकसद में सफल हुई या नहीं। पर इससे भाजपा नेतृत्व के छोटेपन का परिचय मिला।

दूसरी तरफ श्रीमती सोनिया गाँधी की सभाओं में जुड़ी भारी भीड़ उनकी बढ़ती हुई लोकप्रियता का परिचय दे रहीं थी। भाजपा के नेताओं की उनके बारे में दी गईं तमाम छिछली टिप्पणियों के बावजूद गुजरात की जनता ने श्रीमती गाँधी को उत्साह से सुना। अब की बार उनकी हिन्दी पर पकड़ पहले से कहीं बेहतर थी। आत्मविश्वास उनके चेहरे पर झलक रहा था और एक राष्ट्रीय दल के नेता होने की गरिमा भी साफ दिख रही थी। श्रीमती गाँधी के तूफानी दौरों ने इंका कार्यकर्ताओं में नये रक्त का संचार किया।

आज के माहौल में जब जनता का सभी राजनैतिक दलों से मोह भंग हो चुका है तो यह प्रश्न उठता है कि क्या इंका वो सब दे पायेगी जिसके सपने वे मतदाताओं को दिखा रही है ? इस प्रश्न का उत्तर अगर पूरी तरह से हां में ना हो तो भी आज एक बात साफ हो चुकी है कि लोकतंत्र रहना है तो राजनैतिक दल भी रहेंगे। दल हैं तो कुछ दलदल भी होगी। पर इस सब दलदल के बीच इंका हर मायने में सबसे श्रेष्ठ राजनैतिक दल के रूप में जनता के मन में उभर कर आ रही है। इसके पास अनुभवी नेताओं की फौज है। इसके नेताओं के हृदय खुले हैं। वे नये लोगों को आगे बढने का मौका देते हैं। जहां भाजपा हर राज्य में एक-एक दौर में चार-चार मुख्यमंत्री बदलती है वही इंका की नेता एक ही मुख्यमंत्री को रख कर उसके काम का नियमित जायजा लेती हैं।  प्रशासनिक योग्यता और भविष्य की योजना इंका के पास दूसरे से कहीं बेहतर है। इतना ही नहीं इस बार तो इंका के चुनाव प्रचार से यह साफ हो गया कि वह सभी धर्मों के प्रति सम्मान का भाव रखती है और भाजपा उसके विरूद्ध झूठा प्रचार करके उसे छद्म धर्मनिरपेक्ष बताती आई है, जबकि ऐसे तमाम प्रमाण हैं जिनसे भाजपा के छद्म हिन्दूवादी होने का आरोप सिद्ध होता है।

दरअसल अकुशल प्रशासक, सतही नेतृत्व, अफवाहों पर जीने वाले, भावनाऐं भड़कानें वाले और परीक्षा की घड़ी में हमेशा असफल सिद्ध हुए भाजपा नेतृत्व को काफी आत्म-मंथन की जरूरत है। बार-बार बयान बदल कर भाजपा ने सिद्ध कर दिया है कि किसी भी मुद्दे पर ना तो उनकी दृष्टि साफ है और ना ही कोई कार्यक्रम उनके पास है। ऐसे में इंका के सामने ना सिर्फ एक बड़ा मैदान खाली पड़ा है बल्कि भारी चुनौती भी हैं। इस शून्य को भरने में कहीं पहले की तरह अगर इंका सफल नहीं हुई तो क्षेत्रीय दल आगे आ जायेंगे। वे क्षेत्रवाद और जातिवाद की राजनीति का जहर घोलकर भारत को राजनैतिक अस्थिरता की ओर धकेलते जायेंगे। इसलिए इंका को जरूरत है अपने घर को संवारने की । इंका के योग्य लोग जहां उन राज्यों में इंका को खड़ा करने का काम करें जहां इंका कमजोर है, तो वरिष्ठ नेतागण पिछली गलतियां का मूल्यांकन करके, अनुभवों को ध्यान में रखकर , नई कार्यशैली विकसित करें। जो जनता को केन्द्र में रखकर बनायी जाय। प्रभावी संचार के इस युग में जनता केवल आशवासनों से चुप बैठने वाली नहीं है। उसकी बुनियादी समस्याऐं ईमानदारी से हल होनी चाहिए। भारत के संसाधनों का उचित इस्तेमाल कर लोगों में आ रहीं निराशा दूर होनी चाहिए। दो वर्ष का समय है यदि इंका केन्द्र में बहुमत के साथ एक मजबूत सरकार और देश को नई दिशा देना चाहती है तो उसे अपनी कमर अभी से कसनी होगी। श्रीमती सोनिया गाँधी और उनकी सक्षम टीम इसके लिए तैयार है तो कोई उसकी विजय को रोक नहीं पायेगा। गुजरात का चुनाव इस मायने में काफी महत्वपूर्ण है।

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