Friday, January 10, 2003

कृष्ण भक्तों को चुनौती


राजकोट (गुजरात) के स्वामी नारायण गुरूकुल के वरिष्ठ सन्यासी श्री माधवप्रिय स्वामी से जब गुजरात के चुनावों के दौरान चर्चा हुई तो मैंने उनसे ब्रज क्षेत्र की दुर्दशा का फिक्र किया। पिछले दिनांे अहमदाबाद और नागपुर में दिए गए मेरे दो सार्वजनिक वक्तव्य गुजरात और महाराष्ट्र के लोकप्रिय अखबारों में प्रमुखता से छपे। जिसमें मैंने भाजपा पर आरोप लगाया था कि भाजपा हिंदुत्व की वकालत तो करती है पर हिंदू संस्कृति और आस्था के केन्द्र तीर्थ स्थलों की दुर्दशा सुधारने के लिए कुछ ठोस नहीं करती। मुगल काल में भी जब हिंदू धर्म को राजाश्रय नहीं प्राप्त था तब भी इन्हीं केन्द्रों के कारण हिंदू संस्कृति बच पाई। इस वक्तव्य को पढ़कर विहिप के केन्द्रीय निदेशक मंडल के सदस्य आचार्य श्री धर्मेन्द्र जी ने फोन पर मुझसे ब्रज की दुर्दशा और उसके सुधार के विषय में चर्चा की। विहिप के अध्यक्ष श्री अशोक सिंहल जी के अनुज व सांसद श्री बी.पी. सिंहल ने भी बताया कि केन्द्रीय पर्यटन मंत्री श्री जगमोहन ब्रज के बारे में एक विस्तृत विकास योजना शुरू करने जा रहे हैं। श्री सिंहल ने इस बारे में सुझाव मांगे। उधर स्वामी नारायण के श्री माघवप्रिय स्वामी ने भी इसी हफ्ते फोन पर बताया कि हाल ही में हैदराबाद में संघ, विहिप और भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं से उनकी इस विषय पर चर्चा हुई। खासकर, वृंदावन और गोवर्धन के विनाश को रोकने की बात उन्होंने इन नेताओं के सामने रखी। स्वामी जी ने भी सुझाव मांगे जिन्हें वे राजग सरकार को भेज सकें। चूंकि भगवान् श्री कृष्ण के भक्त भारत के हर प्रांत में ही नहीं पूरी दुनिया में बसे हैं इसलिए मुझे लगा कि जो कुछ मैं स्वामी जी से कहना चाहता हूं वो क्यों न देश के आस्थावान पाठकों से भी बांटा जाए। क्योंकि यह तो सबकी रूचि का मामला है।

ब्रज क्षेत्र का महत्व शेष हिंदू तीर्थ स्थलों से कहीं ज्यादा है। ब्रज शब्द ही बना है ब्रह्म के ब्रऔर रज के को जोड़कर, अर्थात् वह क्षेत्र जहां भगवान् के श्रीचरणों की रज बिखरी पड़ी हो। यही कारण है कि ब्रज क्षेत्र में प्रवेश करते ही सभी वैष्णव ब्रजरज को न केवल तिलक रूप में मस्तक पर धारण करते हैं बल्कि प्रसाद रूप में अपनी जिव्हा पर रख कर उसका आस्वादन भी करते हैं। क्योंकि ये ब्रज ही है जहां सोलह कला संपूर्ण पुरूषोत्तम भगवान श्री कृष्ण ने अपनी बाल लीलाएं रच कर अपने भक्तों को कृतार्थ किया था। भारत की सभी भाषाओं में इन बाल लीलाओं पर रचे गए पद, गीत और भजन बड़े आनंदपूर्वक गाए और सुने जाते हैं। 

कृष्ण कथा पढ़ने और सुनने वालों को ब्रज (वृंदावन, मथुरा, बरसाना, नंदगांव, गोकुल, गोवर्धन आदि) का नाम आते ही हरे-भरे कुंजों, रमणीक सरोवरों, ऊंचे वृक्षों से आच्छादित पर्वत शिखरों, नीले पानी वाली निश्छल बहती यमुना, सुगंधित पुष्पों की बयार, मोर, तोते और हिरण जैसे वन्य पशु-पंक्षियों की किलकारियां, दूध से बोझल थन लिए आनंद में विचरण करते हुए गायों के झुंड, ग्वाल-बालों ओर दही-दूध की मटकी लेकर डोलती हुई ब्रज गोपांगनाओं के चित्र का स्मरण हो आता है। हो भी क्यों न सदियों से भक्त कवियों, गायको, चित्रकारों व शिल्पकारों ने ब्रज का यही रूप तो भक्तों के सम्मुख प्रस्तुत किया है। काश ! ब्रज ऐसा ही होता तो आधुनिक जीवन के तनावों से ग्रस्त लोगों को शांति और आनंद दोनो दे पाता। पर बड़े दुख की बात है कि ब्रज क्षेत्र में पहली बार प्रवेश करने वाले देशी और विदेशी कृष्ण भक्तों का हृदय धक्क रह जाता है। चारो ओर कूड़े के ढेर, टूटी सड़केें, बेतरतीब टैªफिक और शोर, धर्म स्थलों पर भू-माफियाओं के कब्जे और अराजकता का वातावरण ही दिखाई देता है। सुख की तलाश में आने वाले तीर्थयात्रियों को यहां आकर इतनी तकलीफ मिलती है कि उनका मन टूट जाता है। वे यह नहीं समझ पाते कि उ.प्र. की सरकारें ब्रज के पर्यावरण और वहां मौजूद पुरातात्विक महत्व और आस्था के केन्द्र सैकड़ों भव्य मंदिरों का समुचित संरक्षण क्यों नहीं कर पाती ? इनमें अवैध कब्जा करके हजारों लोग कैसे रह रहे हैं? रह ही नहीं रहे इनकी भव्य जालियां और पत्थर की नक्काशियों तस्करों की मदद से विदेशों में बेची जा रही हैं। भागवत में जिनका उल्लेख आया है ऐसे वनों को भी काटकर कालोनियां बनाई जा रही हैं या अवैध कब्जे किए जा रहे हैं। पौराणिक महत्व के अनेक सरोवर या तो लुप्त हो चुके हैं या उन पर कब्जे हो चुके हैं, या उनमें आज कूड़ा  फिंकता है। सबसे ज्यादा दुख की बात तो यह है कि पौराणिक महत्व के पर्वतों को डायनामाइट लगा कर तोड़ा जा रहा है और पत्थर का व्यापार किया जा रहा है। जरा कल्पना कीजिए कि यदि अष्ठसखी पहाडि़यां इस तरह के खनन से लुप्त हो गई तो सौ करोड़ रूपया खर्च करके भी उस पहाड़ी का निर्माण दुबारा नहीं किया जा सकता। इसलिए इस विनाश को तुरंत रोकने की जरूरत है। कथा वाचक श्री रमेशभाई ओझा, महावन के संत श्री गुरूशरणानंद व तीर्थ विकास ट्रस्ट दिल्ली के साझे सहयोग से गोवर्धन की परिक्रमा मार्ग पर विकास के कुछ कार्य हुए हैं। पर इसकी सीमित भूमिका है। असली विकास या विनाश तो सरकारी हाथों से होता है। परेशानी ये है कि तीर्थ स्थल का विकास कैसे हो इसकी समझ शुद्ध राजनीति करने वालों या प्रशासन चलाने वालों को प्रायः नहीं होती। जिसे वे विकास मानते हैं अक्सर वह तीर्थ के विनाश का कारण बनता है। इसका उदाहारण है गोवर्धन और वृंदावन की परिक्रमा मार्ग पर बनाई गई पक्की सड़क। जो तीर्थ यात्रियों के कष्ट का कारण बन गई है। इतना ही नहीं इन सड़कों ने ब्रज के प्राकृतिक सौंदर्य को काफी हद तक लील लिया है। इसलिए तीर्थ क्षेत्रों का विकास शुद्ध भक्तों और विरक्त संतों की इच्छा और आज्ञानुसार होना चाहिए। सरकार को चाहिए कि ऐसे संतों की एक सलाहकार समिति बना कर उनके मार्ग दर्शन में ही तीर्थों का विकास करे। 

इस संदर्भ में बहुत खोज के बाद जो एक नाम जांच-परख कर सामने आया है वह है बरसाना के विरक्त संत श्री रमेश बाबा जी। जो ब्रज की दुर्दशा सुधारने के लिए व्यग्र हैं और प्रचार से बच कर ठोस काम कर रहे हैं। वे न तो चंदा मांगते हैं और न सरकार की तरफ मुंह ताकते हैं। उन्होंने ब्रज में पर्यावरण और धार्मिक धरोहरों के संरक्षण का एक नायाब तरीका खोजा है। इस काम के लिए उन्होंने गांव-गांव पैदल भ्रमण कर, साधारण ब्रजवासियों का, विशेषकर ग्रामवासियों का एक वृहद कार्य दल गठित किया है। जो कारसेवा, प्रभात फेरियां और श्रमदान द्वारा पुराने सरोवरों, वनों और पहाडि़यों के संरक्षण में जुट गया है। ब्रज का महत्व इन्हीं से है। मंदिर तो बनते-टूटते रहते हैं। पर कृष्ण लीला के साक्षी तो ब्रज रज, ब्रज के वन, नदियां, सरोवर और पहाड़ हैं। इनका संरक्षण किए बिना अगर सरकार विकास की कोई भी योजना लाती है तो उससे केवल निहित स्वार्थों को मुनाफा होगा, ब्रज का सही विकास नहीं। बाबा के अथक प्रयास से ये काम इतनी निष्ठा और उत्साह से हो रहा है कि लगता है अब ब्रज के सही विकास का समय आ गया है। सरकारें आती-जाती रहेंगी, वैसे भी वो दिवालिया हो चुकी हैं। राजनेता वोटों की राजनीति के लिए बयानबाजी करते रहेंगे। वातानुकूलित कमरों और कालीनों पर बैठने वाले महंत धनी लोगों को कंठी पहनाने के चक्कर में जुटे रहेंगे और ब्रज के संरक्षण के लिए अपने चेलों से कौड़ी भी खर्च नहीं करवाएंगे या अपने आश्रम के नाम पर रंग महल बनवाते जाएंगे तो ब्रज का विनाश ही होगा। इसलिए कृष्ण भक्तों को अगर ब्रज की सच्ची सेवा करनी है तो फावडे़, कुदाल लेकर खुद को ब्रज की सेवा में झोंक देना होगा। हम दर्शन और परिक्रमा करने तो जाएं पर धाम की सेवा न करें तो धाम दर्शन योग्य भी नहीं रह पाएगा। कृड़े के ढेर में बदल जाएगा। जो लोग पिछले 20-30 वर्षों से नियमित गोवर्धन की परिक्रमा कर रहे हैं उन्होंने इस विनाश को खूब नजदीक से दखा है। 

ब्रज में जाकर हम धन तो खूब दान देते हैं पर यह नहीं जान पाते कि वो धन कहां खर्च होता है। जितना धन ब्रज में आता है उसी का अगर सदुपयोग हो तो ब्रज का चेहरा निखर जाए। यूं तो रमेश बाबा किसी से कोई भी आर्थिक सहायता की मांग नहीं करते। वो चाहते हैं कि लोग जो भी सहयोग करना चाहें वो स्वयं अपने हाथों से खर्च करें। पर इस तरह के काम में तमाम तरह की आवश्यकता होती है। मसलन, ब्रजवासियों को सुबह-सुबह जगा कर प्रभातफेरी के लिए ले जाने को कम से कम 150 मेगा माइक तुरंत चाहिए जिन्हें ब्रज के डेढ सौ गांवों में बांटा जा सके। इसी तरह आध्यात्मिक महत्व के प्राचीन कंुडों के उद्धार के लिए कृष्ण भक्तों का प्रेम ही नहीं श्रम ओर धन दोनो चाहिए। रमेश बाबा खुद तो दान लेंगे नहीं पर ब्रज का इतना अध्ययन उन्होंने कर लिया है कि वो ये जरूर बता देंगे कि अपना तन, मन और धन ब्रज सेवा में हम कहां लगाएं? देश के किसी भी कोने में कहीं भी जो कृष्ण भक्त हों वे ऐसी सलाह लेने के लिए अगर श्री रमेश बाबा, गहवर वन, बरसाना (जिला मथुरा) फोन (05662) 246343 से संपर्क करते हैं तो उन्हें निराशा नहीं होगी। हां गहवर वन में आपका 56 भोग से राजसी स्वागत तो नहीं होगा बल्कि वनवासियों का सा सत्कार होगा। फिर सब कृष्ण भक्त मिलकर अपने ठाकुर की लीला स्थलियों का उद्धार कर सकेंगे। इससे आने वाली पीढि़यां भक्ति रस के इस सर्वोच्च केन्द्र का रसास्वादन तो करेंगी ही हम भी कुछ रचनात्मक उपलब्धि का संतोष और कृष्ण कृपा प्राप्त कर सकेंगे। फिर चाहे विहिप, संघ, भाजपा, इंका, सपा या बसपा जैसे संगठन और राजनैतिक दल इस महायज्ञ में आहूति देने सामने आएं या न आएं, ब्रज क्षेत्र का विकास नहीं रूकेगा। रमेश बाबा की तपस्या, निस्वार्थ सेवाभावना, सादा जीवन और भजन गाने की विशिष्ट शैली से सुसज्जित मधुर कंठ कृष्ण भक्तों को विभोर कर देगा। हो सकता है कि हम सब जल्दी ही ब्रज में कारसेवा करते हुए एक-दूसरे के कंधे से कंधा, हृदय से हृदय और हरिनाम कीर्तन की लय से लय मिलाते हुए जमा हों। पिछले दिनों पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक श्री केपीएस गिल भी मेरे साथ कई बार जाकर रमेश बाबा से मिले। उन्हें भी बाबा के काम ने प्रभावित किया। श्री गिल का प्रस्ताव है कि अगर कृष्ण भक्त आगे बढ़ते हैं तो वे भी पंजाब से सिक्ख निहंगों और भक्तों की टोलियां लेकर ब्रज की कार सेवा करने में अपना सहयोग देंगे। 

हमें सिक्ख भाईयों से सीखना चाहिए जो बड़े छोटे का भेद माने बिना गुरूद्वारों की छोटी-सी छोटी सेवा करने में संकोच नहीं करते। हमें ईसाईयों और मुसलमानों से भी सीखना चाहिए कि वे अपने धर्म स्थालों को कितना साफ और व्यवस्थित रखते हैं और दूसरी तरफ हम हैं जो हिंदू होने का गर्व तो करते हैं पर अपने तीर्थ स्थलों में कूड़े के ढेर, गंदगी, धक्का-मुक्की व लाउडस्पीकरों का शोर सौगात में देकर आते हैं। अब जागने और कुछ ठोस करने का समय है बाकी हरि इच्छा।

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