Friday, April 4, 2003

पांव नहीं जमा पा रही वसुन्धरा राजे

राजस्थान की भाजपा अध्यक्षा श्रीमती वसुन्धरा राजे सिंधिया ने प्रदेश कार्यकारिणी का गठन करके बर्र के छत्ते में हाथ दे दिया। एक तो पहले ही 9 दिन चले अढ़ाई कोस। अध्यक्ष बनने के 7 महीने बाद तो कहीं जाकर वे अपनी कार्यकारिणी का गठन कर पाई। इसी से पता चलता है कि भाजपा की राजस्थान इकाई में किस कदर गुटबाजी चल रही है। इसी हफ्ते घोषित हुई कार्यकारिणी की सीधी प्रतिक्रिया तो यह हुई कि भाजपा के राजस्थान प्रभारी श्री रामदास अग्रवाल ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि उनका कहना है कि उन्होंने ऐसा इसलिए किया है कि उनके भाई को कार्यकारिणी में लिया गया है और वे नहीं चाहते कि दोनों भाई प्रदेश कार्यकारिणी में एक साथ रहें। पर जानकार बताते हैं कि यह तो मात्र बयानबाजी है। दरअसल, श्री अग्रवाल कार्यकारिणी के स्वरूप को लेकर बेहद खफा है। वैसे भी जिस देश की राजनीति में हर दल में बेटे, बेटी, भाई भतीजे और बहुरानियां साथ-साथ सत्ता सुख भोग रहे हों उस माहौल में ऐसी बयानबाजी का कोई औचित्य नहीं है। असलियत तो यह है कि इस कार्यकारिणी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े ज्यादातर नेताओं को दरकिनार कर दिया गया है जिससे राजस्थान भाजपा के कार्यकर्ताओं में भारी रोश है।
रोचक तथ्य यह है कि भाजपा की राजस्थान अध्यक्षा श्री वसुन्धरा राजे सिंधिया पिछले 7 महीनों में भी अपनी पहचान नहीं बना पाई हैं। इन 7 महीनों में उनका राजस्थान प्रवास 15-20 दिन से ज्यादा नहीं रहा और जब वे आईं भी तो घोड़े पर सवार होकर। महीनों भाजपा प्रदेश कार्यालय की तरफ मुंह भी नहीं किया और जब किया तो सामंती ठाट-बाट के साथ। पार्टी के वरिष्ठ नेताआंे को भी अपनी अध्यक्षा से मिलने के लिए उनके कार्यालय में पर्ची भेजनी पड़ी। लंबा इंतजार करना पड़ा और फिर शाही अंदाज में चिक के चपरासी ने आवाज लगाई। ललित किशोर चतुर्वेदी जी मिलने आएं। श्रीमती राजे के ऐसे बर्ताव से भाजपा के वरिष्ठ नेता अपमान का घूंट पीकर रह गए। अब लोगों को आश्चर्य है कि इस नई बनी कार्यकारिणी में बिना जनाधार के नेताओं को ही तरजीह दी गई है। राजस्थान के प्रभावी राजपूत नेता श्री देवी सिंह भाटी के पुत्र श्री महेन्द्र सिंह भाटी को कार्यकारिणी का मामूली सदस्य बनाया गया तो उन्होंने इससे इस्तीफा दे दिया। भाजपा राजस्थान इकाई के पूर्व अध्यक्ष व पूर्व उप मुख्यमंत्री रहे श्री हरिशंकर भावड़ा जैसे वरिष्ठ नेता को प्रदेश कार्यकारिणी में जगह नहीं दी गई है। अनुभवी नेता श्री घनश्याम तिवारी जो पिछले 20 सालों से दल के महासचिव व   उपाधयक्ष रहे हैं और श्री शेखावत मंत्रिमंडल में मंत्री भी रहे हैं, वे भी प्रदेश कार्यकारिणी में अपना नाम न देख कर काफी मर्माहत हैं। इसी तरह कोटा से सांसद पूर्व मंत्री व पूर्व प्रदेश अध्यक्ष श्री रघुवीर कौशल को भी दरवाजा दिखा दिया गया है। सब जानते हैं कि श्री कौशल, श्री शेखावत के      विरोधी खेमें में रहे हैं। दूसरी तरफ एक ऐसे व्यक्ति को प्रदेश अध्यक्षा ने अपना राजनैतिक सचिव नियुक्त किया है जिसकी छवि राजनेता की कम और राजनेताओं से काम करवाने वाले की ज्यादा रही है। उल्लेखनीय है कि अध्यक्षा के राजनैतिक सचिव का यह पद पहली बार बनाया गया है और इस पर बिठाए गए श्री चन्द्र राज सिंघवी इससे पहले इंका नेता श्री नाथूराम मिर्धा व श्री हरदेव जोशी के साथ रहे और कहते है कि उनकी लुटिया डूबोने में इनकी अहम् भूमिका रही। श्री सिंघवी एक बार कांग्रेस के टिकट पर पाली से विधानसभा चुनाव लड़े थे और मात्र पांच हजार मत इन्हें मिले। ये आज तक कोई चुनाव नहीं जीते। ऐसे सुयोग्य व्यक्ति आगामी विधानसभाई चुनाव में अब श्रीमती वसुन्धरा राजे सिंधिया की नाव पार लगाएंगे। श्रीमती वसुन्धरा राजे सिंधिया जिस तड़क-भड़क के साथ प्रदेश अध्यक्षा बन कर आईं उससे राजस्थान के मीडिया को लगा कि वे कड़े मुकाबले के लिए तैयार होकर आईं हैं। इसलिए मीडिया ने शुरू में उनका खासा साथ दिया। पर मीडिया के प्रति उनका रूखा व्यवहार, जमीनी हकीकत की उन्हें कोई जानकारी न होना व राजस्थान भाजपा के लिए समय न निकाल पाना अब अब उनके विरूद्ध चला गया है। मीडिया में आये दिन श्रीमती वसुन्धरा राजे सिंधिया का मजाक उड़ता रहता है। मसलन, भाजपा की प्रदेश अध्यक्षा हिन्दी कम और अंग्रेजी ज्यादा बोलती हैं। राजस्थान की जनता अंग्रेजी सुनना नहीं चाहती पर श्रीमती सिंधिया अकाल राहत की मुख्यमंत्री की बैठक में भी अंग्रेजी में ही भाषण करती रहती जबकि उनसे बार-बार हिन्दी बोलने का अनुरोध किया गया। वैसे तो वे सन् 1989 से झालावाड़ से लगातार सांसद हैं और उससे पहले 1985 से अपनी श्वसुराल धौलपुर से विधायक थीं। पर सच्चाई ये है कि झालावाड़ मध्य प्रदेश से जुड़ा हुआ इलाका है। जहां की प्रजा अभी भी सामंतशाही की मानसिकता से ग्रस्त है। पर शेष राजस्थान में श्रीमती सिंधिया अपना जनाधार नहीं बना पाई हैं। यूं कहने को तो वे यहीं कहती हैं कि वे जन्म से राजपूत हैं। पति जाट हैं। बेटे की शादी उन्होंने गुर्जर परिवार में की है।  इस तरह वे राजस्थान की कई जातियों को लुभाना चाहती हैं, पर लोग उनके इस वक्तव्य को गंभीरता से नहीं लेते, बल्कि उसका मजाक ही उड़ाते हैं। हां, श्रीमती सिंधिया की एक उपलब्धि जरूर मानी जा सकती है और वह ये कि वे शेखावत जी के  विरोधी खेमे के वरिष्ठ नेता ललित किशोर चतुर्वेदी को पार्टी का उपाध्यक्ष बनाने में सफल हो गई हैं। जबकि संघ से जुड़ा कार्यकर्ता श्री चतुर्वेदी के इस बदले रूप को उनकी हार मान रहा है। इन कार्यकर्ताओं को लगता है कि श्री चतुर्वेदी ने पद के लालच में अपने सिद्धांतों को त्याग कर दिया है। इससे संघ और विहिप से जुड़े भाजपाई खेमों में भारी निराशा है। आमतौर पर भाजपा में यही माना जा रहा है कि श्रीमती सिंधिया तो शेडों    अध्यक्षा हैं असली बागडोर तो श्री भौंरोसिंह शेखावत के हाथ में हैं और अगला चुनाव उन्हीं के निर्देशन में लड़ा जाएगा। पर शेखावत जी के लंबे अनुभव और व्यक्तित्व का सम्मान करने वाले इसे स्वीकारने को तैयार नहीं हैं कि श्री शेखावत, उप-राष्ट्रपति पद की गरिमा की परवाह न करके चुनावी राजनीति में दखल देंगे। इससे संवैधानिक पद की मर्यादा पर आंच आ सकती है। बाकी समय बताएगा।
दूसरी तरफ तमाम आशंकाओं को निर्मूल करते हुए राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत हर दिन मजबूत होते जा रहे हैं। इंका के जमीनी कार्यकर्ता अब उत्साह से उनके साथ सक्रिय हो रहे हैं। उनकी जनसभाओं में भारी भीड़ उमड़ती हैं। यूं तो विपक्ष ने चालू विधानसभा सत्र में सरकार को भ्रष्टाचार के मुद्दों पर घेरने की काफी कोशिश की। पर अपनी साफ छवि के लिए जाने जाने वाले मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत इन हमलों से बेदाग रहे। दरअसल, हर मुद्दा विपक्ष को ही पलट कर झेलना पड़ा चाहे वह जसकौर मीणा का मामला हो या वक्फ बोर्ड का या उदरपुर में सरकारी जमीन के अलाटमेंट का। इन मुद्दांे पर भाजपा के नेताओं ने जब शोर मचाया तो पता चला कि ये भ्रष्टाचार भाजपा के शासनकाल में ही हुए थे। उदयपुर में सरकारी जमीन को 25 फीसदी दाम पर एक एनजीओ को अलाट करने का मामला बड़े जोर-शोर से उछाला गया। पर जांच के बाद मालूम चला कि एनजीओ को दिए गए इस प्लाट के बराबर वाली जमीन भाजपा शासनकाल में भाजपा के नेता गुलाबचन्द कटारिया को मुफ्त में दे दी गई थी। इस तरह पिछले 4 वर्षों में भाजपा गहलोत सरकार को घेर पाने में नाकामयाब रही है। जबकि अपने विनम्र स्वभाव, जनता से सीधा जुड़ाव, विकास कार्यक्रमों की नियमित समीक्षा और प्रांत के निरंतर दौरों से श्री गहलोत ने राजस्थान की जनता के मन में अपनी जगह बना ली है। जिससे निपटना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा।

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