Friday, February 27, 2004

उमा भारती का विरोध क्यों


मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री सुश्री उमा भारती ने हिन्दुओं की धर्म नगरियों में अंडा, मांस और शराब की बिक्री प्रतिबंधित करके सराहनीय काम किया है। आश्चर्य है कि उनके इस सही कदम का कुछ राजनैतिक दल विरोध कर रहे हैं। विरोध अगर किसी ठोस कारण से किया जाए, तो कोई हर्ज नहीं। पर विरोध के लिए विरोध करना राजनीति को हास्यास्पद बना देता है। आखिर लोकतंत्र में हर व्यक्ति की भावनाओं की कद्र की जानी चाहिए। दुर्भाग्य से इस देश में वोटों की राजनीति के कारण अल्पसंख्यकों की तो हर जा-बेजा मांग सिर माथे स्वीकार कर ली जाती है। लेकिन बहुसंख्यक हिन्दू समाज की आस्थाओं पर कुठाराघात होता रहता है।

धर्म नगरियां या आस्था के केंद्र चाहे जिस धर्म के हों, मानव समाज को सद्प्रेरणा और मानसिक शांति देते हैं। भौतिक जगत की समस्याओं से पीडि़त लोग धर्म या आध्यात्म की शरण में जाते हैं। कोई उज्जैन में महाकालेश्वर के दर्शन करके अविभूत हो जाता है तो कोई मक्का-मदीना में हज करके। कोई ननकाना साहिब में माथा टेकता है तो वेटिकन सिटी में प्रार्थना करने जाता है। हजारों साल से हर धर्म की मान्यताओं के अनुसार आस्था के केन्द्रों का संरक्षण और संवर्धन वहां के शासक करते आए हैं। पर हिन्दुओं का यह दुर्भाग्य है कि एक हजार वर्ष तक तो मुसलमानों ने उनकी आस्था के केन्द्रों को दबाकर रखा। विनाश किया और हिन्दुओं को धर्म बदलने पर मजबूर किया। बाद में 200 वर्ष विदेशी हुकूमत रही, जिसने वैदिक मान्यताओं का मजाक उड़ाया। यह बात दूसरी है कि आज वही पश्चिमी समाज वैदिक मान्यताओं को विज्ञान की कसौटी पर खरा देखकर भौचक्का है। आजादी मिली तो उम्मीद थी कि अब हिन्दू अपनी धर्म, संस्कृति और आस्था को खुलकर पल्लवित होते देख सकेंगे। पर आजाद भारत में थोप दी गई थोथी धर्मनिरपेक्षता। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर अल्पसंख्यकवाद को ही बढ़ावा मिला। जिसकी प्रतिक्रिया स्वरूप संघ, विहिप और भाजपा को हिन्दुओं का समर्थन मिलता चला गया। अगर यह तीनों संगठन पूरी निष्ठा और ईमानदारी से हिन्दुओं के हक में खड़े रहते, तो इन्हें और भी व्यापक सफलता मिलती। पर इनकी ढुलमुल नीतियों ने हिन्दुओं का इनसे मोहभंग कर दिया। अब हिन्दुओं के सामने समस्या यह है कि अगर वो भाजपा के विरुद्ध जाते हैं तो फिर मजबूरन उन्हें छद्म धर्मनिरपेक्षता के खेमे में जाना पड़ेगा। और अगर भाजपा के साथ रहते हैं तो उन्हें कोई ठोस राहत मिलने की उम्मीद नहीं है। इधर कुआं उधर खाई। फिर भी हिन्दुओं का एक बहुत बड़ा वर्ग है जो यह महसूस करता है कि अपनी लाख कमजोरियांे के बावजूद संघ परिवार से जुड़े संगठन कम से कम हिन्दुओं की भावनाओं के प्रति संवेदनशील तो हैं। और यही वो वर्ग है जो भाजपा को टिकाए हुए है।
जब भाजपा के नेता राम जन्मभूमि या गोहत्या या समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दों पर ढुलमुल बयानबाजी करते हैं तो बहुसंख्यक हिन्दू समाज क्रोधित भी होता है और दुखी भी। पर जब इनमें से कोई नेता हिम्मत से कुछ ऐसे ठोस कदम उठाता है, जिससे हिन्दुओं की सदियों से दबी भावनाओं को सहारा मिलता है तो वे उसे सिर-माथे पर बिठा लेते हैं। आडवाणी जी ने जब सोमनाथ से राम रथयात्रा शुरू की थी तो उन्हें इसी कारण हिन्दुओं का भारी समर्थन और प्यार मिला। डाॅ. मुरली मनोहर जोशी ने जब पाठ्यक्रमों से छद्म धर्मनिरपेक्षता और माक्र्सवाद से प्रभावित कुछ ऐसे विचारों को अलग किया, जो किसी भी दृष्टि से सत्य के निकट नहीं थे या अर्धसत्य का प्रतिपादन करते थे, तो छद्म धर्मनिरपेक्षतावादियों ने उन पर भगवाकरण का आरोप लगाकर खूब शोर मचाया। पर वे डटे रहे और उनके कृत्यों का परिणाम आने वाले वर्षों में सामने आएगा, जब विद्यार्थियों में अपनी परंपराओं और अपनी मातृभूमि के प्रति हिकारत नहीं, स्नेह और सम्मान का भाव पैदा होगा। इसी क्रम में सुश्री उमा भारती का यह कदम प्रशंसनीय है। भारत ही नहीं विदेशों में बसे हिन्दुओं ने भी उनके इस कदम की प्रशंसा की है। हिन्दु धर्म में बहुत विविधता है, सगुण उपासना से लेकर निरीश्वरवाद तक को यहां स्थान मिला है। इसलिए ऐसा नहीं है कि मांसाहार या शराब पान हिन्दू करते ही न हों। काली पूजा, तांत्रिक अनुष्ठान और जनजातीय देवी देवताओं की पूजा में प्रायः मांस और शराब का प्रयोग होता है। पर बहुसंख्यक हिन्दू समाज शाकाहारी है और मदिरा पान को बुरा समझता है। सच्चाई तो यह है कि भगवान कृष्ण के गीता में दिए गए उपदेश के अनुसार, प्रकृति के तीन गुण, सतोगुण, तमोगुण और रजोगुण हर व्यक्ति में और हर काल में सदैव विद्यमान रहते हैं। इनका पारस्परिक अनुपात बदलता रहता है। जिस तरह सतोगुणी लोगों के लिए सात्विक भोजन, सूर्योदय से पहले स्नान ध्यान और शुद्ध आचार-विचार और त्रिकाल संध्या का प्रावधान है, उसी तरह रजोगुणी लोगों के लिए यज्ञ और अनुष्ठानों का प्रावधान होता है पर जो तमोगुणी है और न तो इतने ज्ञानी हैं कि शास्त्रों को समझ सकें न ही अपने आचरण पर नियंत्रण रख सकते हैं, ऐसे लोगों को  मांस मदिरा दूर रखना संभव नहीं होता, इसलिए उनके लिए तमोगुणी पूजाओं का विधान कर दिया गया कि अगर वे मदिरा भी पिएं और मांस भी खांए तो देवी को चढ़ाकर, जिससे उनके मन के किसी कोने में कहीं तो आध्यात्म की किरण जागे। और इस जन्म में न सही अगले जन्म में वे सतोगुणी विचार के बन सकें। इसलिए यह तर्क देना कि मांस, शराब पर रोक लगाना गलत है, सही नहीं होगा। अब तो वैज्ञानिक रूप से भी सिद्ध हो चुका है कि मांसाहार से शाकाहार ज्यादा स्वास्थ्यकारी है। शराब भी व्यक्ति के स्नायुतंत्र पर बुरा प्रभाव डालती है और उसका मानसिक संतुलन बिगाड़ देती है। शराब के कारखानों से निकलने वाला जहरीला पानी सैकड़ों मील की प्रकृति और पर्यावरण को जहरीला बनादेता है। शराब से तमाम घर बर्बाद हो जाते हैं, इसलिए पूरे देश में न सही, विभिन्न धर्माें के आस्था केंद्रों में तो कम से कम शराब, मांस, अंडे, मछली आदि के क्रय-विक्रय पर रोक लगनी ही चाहिए। ताकि जब कोई अपनी आस्था के सुमन लेकर इन स्थानों पर जाए तो उसकी भावनाएं आहत न हों।
सुश्री उमा भारती में एक खूबी है। वे भक्त भी हैं, उन पर सद्गुरुओं की कृपा भी है और वे जुझारू भी हैं। इन तीन गुणों से सुसज्जित उमा भारती को जब मुख्यमंत्री पद का कार्यभार मिला है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि वे कुछ न कुछ ऐसा जरूर करेंगी, जिससे बहुसंख्यक हिन्दू समाज की सदियों से दबी भावनाओं पर मरहम लग सके। इसका अर्थ ये नहीं है कि उमा भारती गैर हिन्दू समाज की भावनाआों को आहत करेंगी। कोई भी राजा या प्रशासक अपनी प्रजा के किसी भी हिस्से को प्रताडि़त करके सफल नहीं हो सकता । उसे तो पूरी प्रजा का ध्यान रखता होता है। दुख की बात है कि इस देश में जो सत्ता में रहते हैं, वो केवल अल्पसंख्यकों को ही पूछते हैं और जब वे सत्ता के बाहर हो जाते हैं तो भी शोर मचाकर बहुसंख्यक हिन्दू समाज के हितों के विरुद्ध ही बोलते हैं। इसके पीछे कोई सद्भावना नहीं, कोई समाज के कल्याण की इच्छा भी नहीं, केवल इतना सा उद्देश्य होता है कि उनका वोट बैंक सुरक्षित रहे। पर उमा भारती जेसी जुझारू युवा महिला को ऐसे विरोध से जूझना आता है। और उम्मीद की जानी चाहिए कि चाहे कितने भी दबाव क्यों न आएं, वे अपनी आस्था और मान्यताओं से डिगेंगी नहीं। और कुछ ऐसा ठोस जरूर करेंगी जिससे मध्य प्रदेश की जनता का दिल जीत सकें। अगर उमा भारती मध्य प्रदेश के बहुसंख्यक हिन्दू समाज को उसकी धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप थोड़ी सी भी राहत दे पाती हैं, तो उन्हें देश और विदेश में बैठे सभी हिन्दू धर्मावलंबियों का प्यार मिलेगा। यहां आर्थिक मुद्दों की बात नहीं की जा रही। उस मोर्चे पर सफलता और असफलता की कसौटी पर तो मौजूदा दौर में बहुत कम मुख्यमंत्री खरे उतर पा रहे हैं। वे चाहें किसी भी राजनैतिक दल के हों। जहां तक धार्मिक मोर्चे का सवाल है, उमा भारती को कुछ अनूठा करके दिखाना ही होगा। वही उनकी पहचान है और उसी उपलब्धि से उनकी यह पहचान बनी रह पाएगी।