Friday, June 4, 2004

सोनिया का त्याग और भाजपा की नौटंकी


जब तक श्रीमती सोनिया गांधी एक विधवा के रूप में अपने घर की चारदीवारी में बंद रहीं, तब तक किसी को उनसे कोई खतरा महसूस नहीं हुआ। पर कांग्रेस की दुर्गति देखकर 1998 में जब उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया तो भाजपा के नेता बौखला गए। तब सुश्री सुषमा स्वराज और कुछ दूसरे बड़े नेताओं ने श्रीमती सोनिया गांधी के विदेशी मूल पर करारा प्रहार किया। उस वक्त इसी काॅलम में मैंने वैदिक दर्शन के आधार पर तर्क देते हुए इस हमले के खोखलेपन को सिद्ध करने का प्रयास किया था। 21 फरवरी 1998 को देश भर के अनेक प्रांतीय अखबारों में मेरा यह लेख छपा, ‘सोनिया गांधी को विदेशी कहना कहां तक उचित है?’ इसके कुछ समय बाद जब श्री पी.ए. संगमा ने संविधान संशोधन समिति से इसी मुद्दे पर इस्तीफा दिया, तब भी मैंने अंग्रेजी में एक कड़ा पत्र लिखकर उन्हें कटघरे में खड़ा किया और इसको प्रेस को जारी किया। एक बार फिर जिस तरह से श्रीमती सुषमा स्वराज और सुश्री उमा भारती ने श्रीमती गांधी के चयन को लेकर नौटंकी की, उससे भाजपा की हिंदु धर्म की समझ पर प्रश्नचिह्न खड़ा हो गया। हवाला कांड से लेकर सर्वोच्च न्यायपालिका के भ्रष्टाचार को उजागर करते समय मैंने भाजपा के कई बड़े नेताओं को इतने निकट से देखा है कि मैं यह मानने को तैयार नहीं हूं कि जिसका जन्म इस देश में हुआ है, वही देशभक्त हो सकता है। जिसका जन्म यहां नहीं हुआ, वह नागरिक बन जाने के बाद भी देश भक्त नहीं हो सकता। भाजपा के साढ़े पांच साल के शासन में आतंकवाद, भ्रष्टाचार और न्यायपालिका की जवाबदेही को लेकर जितने गंभीर सवाल मैंने उठाए, उन सबके समर्थन में इतने प्रमाण मेरे पास थे और आज भी हैं कि पूरे देश का दिल दहलाने के लिए काफी होते। पर मुझे जानकारी मिली कि भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के प्रभाव के चलते इन तथ्यों को देश की जनता के सामने किसी टीवी चैनल के माध्यम से कभी नहीं आने दिया गया। दरअसल 5 फरवरी 2000 को एनडीटीवी के बिग फाइट शो में जिस तरह मैंने भारत के मुख्य सतर्कता आयुक्त श्री एन. विट्ठल को हवाला कांड की जांच को लेकर कटघरे में खड़ा किया था और 10 फरवरी 2000 को जी न्यूज के प्राइम टाइम शो में जिस तरह के तथ्य भाजपा के नेताओं के हवाला कांड में शामिल होने को लेकर सुश्री सुषमा स्वराज के सामने रखे थे, उससे इन दोनों ही शो को लेकर भाजपा के सांसदों ने संसद और मीडिया में काफी बवाल मचाया। सुषमा जी हवाला कांड में फंसे अपने वरिष्ठ नेताओं की रक्षा में असफल रहीं और बौखला कर अनर्गल तर्क देने लगीं। इसके बाद से ही एक मूक संदेश दे दिया गया कि किसी भी चैनल पर मेरे विचार जनता के सामने मत आने दें। अगर वो तथ्य जनता के सामने आज भी आ जाएं, तो बीजेपी का देश प्रेम और आतंकवाद को लेकर उसकी चिंता पर कई सवालिया निशान लग जाएंगे। फिर ये सवाल देश पूछेगा कि देश में ही जन्म लेने वालों ने ऐसा क्यों किया?
खैर श्रीमती सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद के संदर्भ में वही किया जो उनसे अपेक्षित था। जब भी लोग पिछले छह बरसों में यह सवाल पूछते कि अगर श्रीमती सोनिया गांधी देश की प्रधानमंत्री बनती हैं, तो आपको कैसा लगेगा? हमारा उत्तर यही होता कि वे कभी नहीं बनेंगी। पर वैदिक शास्त्रों में जीवात्मा को परमात्मा से मिलने या उनकी सेवा करने का निर्देश दिया गया है। यह नहीं कहा गया कि यह अधिकार केवल हिंदुओं तक सीमित है। जाति, धर्म और देश की पहचान व्यक्तियों ने बनाई है, भगवान ने नहीं। पर जो बात हम अपनी अंतप्र्रेरणा के आधार पर कहते थे, वो उस दिन सच हो गई, जब श्रीमती गांधी ने वाकई प्रधानमंत्री पद को लात मारकर डाॅ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनवा दिया। उन्होंने अपने ससुराल के देश की संस्कृति को न सिर्फ आत्मसात किया बल्कि एक अभूतपूर्व आदर्श की स्थापना की। दूसरी तरफ भाजपा की नेताओं सिर मुड़ाने जैसी बचकानी घोषणाएं करके पूरी दुनिया में अपना मजाक उड़वाया। शंकराचार्य तक ने कहा है कि सुश्री उमा भारती और श्रीमती सुषमा स्वराज का यह नाटक वैदिक परंपरा के प्रतिकूल था।
यह कोई पहली बार नहीं है जो भाजपा ने हिंदू धर्म का इस तरह मखौल उड़ाया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक जिस तरह एक हाथ को मोड़कर ध्वज प्रणाम करते हैं, वो किस वैदिक या हिंदू परंपरा का हिस्सा है? हमारी परंपरा तो करबद्ध प्रणाम करने की या साष्टांग दंडवत प्रणाम करने की है। ये अधूरा प्रणाम तो हिटलर के दिमाग की उपज है, जिसे पता नहीं किस मानसिकता से संघ परिवार ने अपना लिया है। इसीलिए संघ के अनेक विचारों से सहमत होते हुए भी मैं उनके प्रणाम करने की इस मुद्रा को कभी स्वीकार नहीं कर पाता। अगर संघ साष्टांग दंडवत या करबद्ध प्रणाम को ही अपना लेता, तो उसकी वैचारिक यात्रा में कौन सा व्यवधान पड़ जाता? पर शायद वैदिक मान्यताओं को तोड़ मरोड़कर अपने तरीके से पेश करना और उसे जबरन हिंदू समाज पर थोपना ही संघ का हिंदूवाद है। इसी तरह खाकी निकर भी कहीं से कहीं तक हिंदू संस्कृति का हिस्सा नहीं है। पर संघ वाले इसे पहनकर ही स्वयं को भारत मां का सच्चा सपूत मानते हैं। जबकि इस्काॅन जैसी संस्था ने पूरे विश्व के देशों के भक्तों को धोती-कुर्ता पहनाकर यह सिद्ध कर दिया है कि आधुनिक समाज में भी वैदिक परिधान पहना जा सकता है। मैं और मेरे जैसे तमाम लोग संघ और भाजपा की इस बात से सहमत हैं कि धर्मनिरपेक्ष देश में हिंदुओं और मुसलमानों के साथ समान व्यवहार होना चाहिए। पर जिस तरह से हिंदुओं के हित के हर सवाल पर भाजपा ने बार-बार हिंदुओं की भावनाओं का मजाक उड़ाया है और उनसे लगातार खिलवाड़ किया है, उससे अब हिंदुओं को यह लगने लगा है कि दरअसल भाजपा के लिए हिंदुवाद सत्ता प्राप्ति का हथकंडा मात्र है।
दूसरी तरफ कांग्रेस को भी समझ लेना चाहिए कि हिंदुओं के पक्ष में बोलने से संकोच करने के  दिन लद गए। कांग्रेस का स्वरूप सर्वधर्म समभाव का रहा है और वही उसके व्यवहार में दिखना चाहिए। इस चुनाव में दिल्ली समेत जिन राज्यों में भी इंका को सफलता मिली है, उसमें बहुसंख्यक मतदाता हिंदु ही हैं। श्रीमती सोनिया गांधी के हिंदूवादी व्यवहार से उनकी स्वीकार्यता बढ़ती जा रही है। असलियत तो यह है कि हिंदु धर्म में इंका के नेताओं की भाजपाइयों से कहीं ज्यादा आस्था है, पर वे उसका राजनैतिक लाभ लेने का प्रयास नहीं करते। साढ़े पांच साल केंद्र में और इससे कहीं ज्यादा बरसों तक उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार रहीं, पर भाजपा बताए कि उसने अयोध्या, मथुरा और काशी के विकास के लिए क्या किया? केवल जन्मभूमि पर मंदिर बनाने का ढोंग रचती रहीं। जबकि इंका के शासनकाल में सोमनाथ, तिरुपति और वैष्णो देवी जैसे तीर्थों का प्रशंसनीय विकास हुआ। दुख की बात ये है कि पिछले छह सालों में भाजपा के तमाम वरिष्ठ नेताओं से मैं व्यक्तिगत रूप से मिलकर ब्रज के तीर्थस्थलों के विकास की मांग करता रहा। लेख लिखता रहा और पत्र भेजता रहा। पर सत्ता के मद में चूर इन नेताओं ने तीर्थों के लिए कुछ भी नहीं किया। दूसरी तरफ इंका के जिन राजनेताओं को हवाला कांड केि मेरे युद्ध को लेकर राजनैतिक वनवास झेलना पड़ा था, वे भी इतने स्नेह और उदारता से मिले और सहयोग किया कि लगा कि इंका नेता वाकई शासन करने के योग्य हैं और तंग दिल नहीं हैं। यह भी विश्वास दृढ़ हुआ कि सभी धर्मों के धर्मक्षेत्रों का जीर्णोद्धार भी केवल इंका के ही शासनकाल में हो सकता है।
अब जब श्रीमती सोनिया गांधी ने तपोभूमि भारत की सनातन संस्कृति का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हुए सबसे बड़े लोकतंत्र के सर्वोच्च पद को ठुकरा दिया, तो भाजपाइयों को तमाचा तो पड़ा ही, पर यह पचाना भी भारी पड़ गया। फौरन दिल्ली में सुगबुगाहट शुरू कर दी गई कि राष्ट्रपति ने श्रीमती गांधी से चुनाव में विजय के बाद हुई पहली मुलाकात में ही यह कह दिया था कि वे उनकी नागरिकता के सवाल को सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक बेंच को भेजेंगे और उसका निर्णय आने तक उन्हें शपथ नहीं दिलाएंगे। यह भी अफवाह फैलाई गई कि श्रीमती गांधी को संविधान के अनुसार प्रधानमंत्री बनने का अधिकार नहीं है। मैंने तुरंत श्री कपिल सिब्बल से मोबाइल फोन पर स्पष्टीकरण मांगा तो उन्होंने इसे कोरी बकवास बताया। यह बात आगे न बढ़े इसलिए इसका स्पष्टीकरण जरूरी था। अतः मैंने उन्हें सलाह दी कि वे स्वयं या राष्ट्रपति भवन से इस अफवाह का खंडन जारी करवा दें। सौभाग्य से चार घंटे के भीतर ही राष्ट्रपति भवन से इसका खंडन जारी हो गया। पर भाजपा अभी भी संभली नहीं है। वो श्रीमती सोनिया गांधी के विदेशी मूल के सवाल को लेकर देश में अभियान चलाना चाहती है। यह जानते हुए भी कि श्रीमती गांधी के एक कड़े कदम ने उन्हें वास्तव में देश का सबसे लोकप्रिय नेता बना दिया है। ऐसे माहौल में इंका को चाहिए कि वह भाजपा के ऊपर सांप्रदायिक होने का आरोप न लगाए। इससे उसका वोट बैंक मजबूत होता है। जरूरत इस बात की है कि भाजपा हिंदूवाद को लेकर दोहरी नैतिकता का त्याग करे और अपनी प्राथमिकताएं स्पष्ट करे। जिससे कि भविष्य में लोगों की धार्मिक भावनाओं से इस तरह का खिलवाड़ न हो। दूसरी तरफ इंका को देश के सभी धर्मस्थलों के विकास के लिए कुछ ठोस करना चाहिए। इससे उसकी लोकप्रियता भी बढ़ेगी और मतदाता के सामने यह तस्वीर साफ हो जाएगी कि भाजपा तो राम जन्मभूमि के नाम पर फील गुड करवाती रही और करा कुछ नहीं। जबकि इंका ने बिना भावनाएं भड़काए ही धर्म की ठोस सेवा की। इंका के इस कदम से हो सकता है कि भाजपा को नया चुनावी मुद्दा ढूंढना पड़े। उधर इंका विकास भी करे, गरीब की भी सुने और इस धर्म प्रधान देश की जनता की भावनाओं की कद्र भी करे, तो उसकी स्वीकार्यता बढ़ती जाएगी। जबकि भाजपा को बिना संकोच किए अपने हिंदूवादी एजेंडा पर ही डटना होगा। वर्ना वो अपनी पहचान खो देगी। हां यह हिंदूवाद आज परोसे जा रहे प्रदूषित हिंदूवाद जैसा न होकर वैदिक धर्म की सनातन मान्यताओं पर आधारित होना चाहिए।

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