Friday, September 17, 2004

भाजपा और हिन्दू धर्म ?


जब कभी हिंदुओं की भावना भड़काने का मौका मिलता है भाजपा चूकती नहीं। वीर सावरकर वाला मामला कुछ ऐसी ही घटना है। भाजपा दावा करती है कि हिंदुओं की चिंता सिर्फ उसे ही है और किसी दल को नहीं। रामजन्म भूमि आन्दोलन को पकड़कर भाजपा ने हिंदुओं को संगठित करने का काम किया भी इसमें संदेह नहीं। हर घर से राम मंदिर के नाम पर ईंट और चंदा लेकर भाजपा और विहिप ने पूरे देश के ही नहीं विदेशों में रहने वाले हिंदुओं को भी आंदोलित कर दिया। पर सत्ता में आने के बाद उसने जो रंग दिखाया उससे सभी धर्म पे्रमी हिन्दू हतप्रभ रह गये। राम मंदिर निर्माण को लेकर भाजपा नेताओं ने बार बार बयान बदले। धर्म पे्रमी निष्पक्ष लोगों ने बार बार अपने लेखों और वक्तव्यों से भाजपा नेताओं को सलाह दी कि मंदिर का विवाद जब हल होगा, हो जायेगा, तब तक कम से कम तीर्थ स्थलों की दुर्दशा तो सुधार दो। पर इस मामले में भाजपा के शासन काल में ऐसा कुछ भी ठोस नहीं हुआ जिससे हिंदू धर्म या समाज को लाभ मिला हो। बल्कि सत्ता के लालच में भाजपा नेता हिंदूवादी मुद्दों से पल्ला झाड़ते नज़र आए।

संघ के कार्यकर्ताओं को हमेशा की तरह बहका दिया गया कि साझी सरकार की सीमाएं होती हैं इसलिए कुछ ठोस नहीं हो पा रहा। इसी तरह आतंकवाद के सवाल पर भाजपा ने देशवासियों को खूब डराया और वोट सीधे किए पर इस काॅलम में मैं कई बार लिख चुका हूँ और प्रमाण दे चुका हूँ किस तरह देश में आतंकवाद के फैलने के लिए भाजपा भी जिम्मेदार है। इस विषय पर भाजपा के हर बड़े नेता से मैं किसी भी टी.वी. चैनल पर खुली बहस करने को तैयार हूँ। अपनी बात प्रमाण के साथ रखने को भी तैयार हूँ। पर वे ऐसी बहस करने की हिम्मत नहीं करते। एक बार जी.टी.वी. के कार्यक्रम में ऐसा अवसर आया तो भाजपा नेताओं के होश उड़ गए। फौरन कार्यक्रम का रूख बदलवा दिया।

फिलहाल चर्चा भाजपा के हिंदू पे्रम की करना चाहता हूँ। भाजपा और उसके सहयोगी संगठन बार बार हिंदू धर्म और अपनी पुरातन संस्कृति की रक्षा करने का दावा करते हैं। संस्कृति की रक्षा में सांस्कृतिक अवशेषों की रक्षा बहुत ज़रूरी होती है। इससे कोई असहमत नहीं होगा। बामियान (अफगानिस्तान) में बुद्ध भगवान की मूर्ति ध्वस्त कर दी गई तो बुद्ध धर्म का वहाँ अवशेष भी नहीं बचा। मूर्ति बनी रहती तो शायद वहां कभी फिर बौद्ध़ धर्म फिर फैल सकता था। अगर मक्का मदीना या वेटिकन सिटी नहीं रहेंगे तो इस्लाम और ईसायत भी नहीं रहेगी। इसी तरह हिंदू धर्म की भी कुछ सांस्कृतिक विरासतें हैं। जिनकी रक्षा होनी चाहिए। पर केन्द्र और जिन राज्यों में भी भाजपा की सरकार थी वहां भी हिन्दू सांस्कृतिक विरासतों का खुलेआम विनाश होता रहा पर किसी ने परवाह नहीं की। जगमोहन जी जैसे व्यक्ति कुछ कर सकते थे पर उन्हें कुछ करने नहीं दिया गया। दूसरी तरफ अगर किसी भी शहर में किसी मंदिर - मसजिद का विवाद हो जाए तो भाजपा और संघ वाले फौरन आग में घी देने पहुँच जाते हैं। पर पांच हजार वर्ष पुरानी ब्रज संस्कृति की रक्षा की उन्हें कोई चिन्ता नहीं है। राधाकृष्ण के पे्रम की रसमयी लीलाओं के साक्षी स्थल और भगवान् की बाल लीलाओं को समेटे सांस्कृतिक स्थलों का जितना और जैसे विनाश भाजपा के शासन काल में हुआ है उतना शायद पहले कभी नहीं हुआ। इसके तमाम प्रमाण हैं। 

देश विदेश में भागवत सुना सुनाकर करोड़ों बटोरने वाले अपने भक्तों को भी नहीं बताते कि ब्रज का कैसा विनाश हो रहा है। जिन लीला स्थलियों की कथा सुनाकर वे आपका मन द्रवित कर देते हैं वे सब विनाश के कगार पर खड़ी हैं या उनका विनाश हो चुका है। भगवान की कोई लीला ब्रज के आज मशहूर हो चुके मंदिरों, मठों, आश्रमों, गेस्ट हाउसों में नहीं हुई थी। भगवान की तो सब लीलाएं ब्रज के वनो, पर्वतों, कुण्डों व यमुना तट पर हुई थीं। ये सब काफी तेजी से नष्ट किये जा रहे हैं। इनकी रक्षा के लिए कभी भाजपा, विहिप या संघ ने कोई पहल नहीं की। गुजरात में भाजपा को सत्ता में बैठाने वाली कृष्ण भक्त जनता के मन में यमुना माई के प्रति अगाध पे्रम और श्रद्धा है। पर उन्हें सुनकर आघात लगेगा कि वृंदावन में यमुना मां की गोद में भाजपा शासन के दौरान अवैध निर्माणों की होड़ लग गई। वृंदावन वासी शोर मचाते रह गए और देखते देखते भाजपा सरकार ने यमुना तट को अवैध नगर में बदल दिया। यमुना मैया के घाटों के सामने, तट के बीच में, अवैध सड़क का निर्माण कर दिया ताकि कालोनियां काटी जा सकें। यह दृश्य इतना हृदय विदारक है कि हर भक्त रो देता है। दुनिया के तमाम देशों में रेत हटाकर नदी पुनः साफ की गई है व  तटों पर लाई गई है। जबकि यूरोप अमेरिका के देशों की नदियों का वो महत्व नहीं है जो हिन्दुओं के लिए यमुना जी का है। यमुना में भी रेत और गाद हटाकर वही करने की जरूरत थी। इस ओर बार बार ध्यान दिलाया गया पर हिंदू धर्म के प्रति असंवेदनशील भाजपा नेताओं के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। सुश्री मायावती ने जो आगरा में यमुना के साथ किया उसके मुकाबले यह अवैध निर्माण कहीं ज्यादा बड़ा अपराध है और अगर एक भी जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में इस मांग के साथ आ जाये कि वृंदावन में यमुना पर हुए अवैध निर्माण के लिए जिम्मेदार लोगों को अदालत सजा दे और भारत व उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दे कि वे दोनों मिलकर यमुना की ड्रैजिंग करवायें जिससे यमुना फिर अपने ऐतिहासिक घाटों पर लौट सके, तो इस याचिका के सर्वोच्च न्यायालय में आते ही भाजपा नेताओं के होश उड़ जायेंगे। 

संघ, विहिप व भाजपा के कार्यकर्ताओं को समझा दिया गया कि जनता को बता दो कि साझाी सरकार के कारण राम मंदिर नहीं बन सका। पर भाजपा के पास इस बात का क्या जवाब है कि ब्रज के हजारों प्राचीन मंदिर और लीला स्थलियाँ क्यों जीर्णशीर्ण अवस्था में पड़ी रहीं ? उनका जीर्णोद्धार कराने में भाजपा की केन्द्र व राज्य सरकारों को क्या दिक्कत थी ? भगवान की रास लीलाओं के साक्षी ब्रज के 48 वनों को सजाने संवारने में क्या दिक्कत थी ? वृदंावन की हरित पट्टी की रक्षा करने में क्या दिक्कत थी ? जबकि इसी काॅलम में 1998 से इन मुद्दों की ओर मैं भी भाजपा नेतृत्व का ध्यान आकर्षित करता रहा। आज वृंदावन कंक्रीट का जंगल बन चुका है। जबकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि देश में 33 फीसदी हरित क्षेत्र होना चाहिए। मथुरा-वृदांवन की सड़कों की दुर्दशा तो वर्णन से परे है। इतनी खराब सड़कें किसी तीर्थ में नहीं होंगी। कूड़े के ढेरों से तीर्थ पटा पड़ा है। भाजपा की सरकारों को ब्रज की सड़कें ठीक करवाने और सफाई सुनिश्चित करने से कौन सा मुकदमा रोक रहा था ? ब्रज के पर्वतों पर भगवान के तमाम लीला चिन्ह हैं जिन्हें डायनामाइट से उड़ाया जा रहा है। इनमें से ज्यादातर पहाड़ राजस्थान के भरतपुर जिले की कामा तहसील में पड़ते हैं। राजस्थान में भाजपा की सरकार है। इस खनन को रोकने में इतनी देर क्यों हो रही है। खनन और डायनामाइट से भगवान की लीला स्थलियों को रात-दिन मिट्टी के ढेर में बदला जा रहा है। हिंदू धर्म की रक्षा करने वाली भाजपा मौन क्यों है ? अंडमान और हुबली जाकर जो आंदोलन खड़ा किया जा रहा है या रामजन्म भूमि की रक्षा के नाम पर जो ऊर्जा व धन खर्च किया गया उसका 10 प्रति भी अगर ब्रज की सांस्कृतिक धरोहरों की रक्षा के प्रयासों पर किया गया होता तो 5000 वर्ष पुरानी यह हिन्दू धरोहर इतनी तेज़ी से नष्ट नहीं होती। पर भाजपा ने ब्रज में विकास के नाम पर अपने नेताओं के आराम के लिए तीन भव्य आश्रम बनवाए और वन संस्कृति पर आधारित ब्रज की धार्मिक भावनाओं की परवाह न करके वहां तमाम पुराने वृक्षों को काट डाला और कौडि़यों के दाम पर वह जमीन अपनी नेता साध्वी ऋतम्भरा को अलाट कर दी। तीर्थयात्रियों और धर्म पे्रमी जनता और साधुसंतों की सुविधा के लिए कौड़ी खर्च करना तो दूर रहा उल्टा ब्रज के विनाश का काम तत्परता से किया। फिर भाजपा कैसे हिन्दू धर्म की ठेकेदारी का दावा करती है ? यही कारण है कि मथुरा की धर्म पे्रमी जनता ने भाजपा को लोकसभा व विधानसभा चुनावों में हरा दिया।

जनसंख्या वृद्धि में हिन्दुओं का प्रतिशत गिरने का सवाल हो, सावरकर जी की नामपट्टी हटाने का सवाल हो या फिर मथुरा, काशी और अयोध्या के धर्म स्थलों का सवाल हो भाजपा भावनात्मक मुद्दे उठाकर आंदोलन खड़ा करने में माहिर है। पर उसके कृत्य ऐसे नहीं हैं जिससे यह प्रमाण मिले कि भाजपा और उसे जुड़े संगठन हिन्दुओं के  धर्म स्थलों और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण व संवर्द्धन में कोई रुचि लेती हो। दूसरी तरफ इंका है जो हिन्दुओं के तमाम धर्म स्थलों का अपने शासन काल में विकास करती आई है। पर मुस्लिम वोटों के लालच में कभी उसका प्रचार नहीं करती। प्रचार करे या न करे पर यह सही है कि इंका को सत्ता में बैठने वाले मतदाताओं में हिन्दुओं की ही संख्या सबसे अधिक है। ये हिन्दू भी धर्म पे्रमी हैं। पर वे भाजपा के छद्म हिन्दूवाद से दुखी और नाराज हैं। इसलिए इंका के साथ खड़े हैं। इसलिए इंका और सपा की सरकारों का यह नैतिक दायित्व है कि वे ब्रज के वनों, कुण्डों, पर्वतों, यमुना व ऐतिहासिक स्थलों के संरक्षण व संवर्द्धन में कोताही न दिखायें। चुनाव आने का इन्तजार न करें। ठोस काम करके दिखायें। फिर उन्हें प्रचार की जरूरत नहीं पड़ेगी। देश भर के करोड़ों हिन्दू जब ब्रज आयेंगे तो देखकर अवश्य प्रसन्न होंगे कि भाजपा उनकी सुविधा के लिए ब्रज में कुछ भी न कर सकी जबकि धर्मनिरपेक्षता का झंडा उठाने वाले लोगों ने ब्रज को सजा संवार कर रख दिया। धर्मनिरपेक्षता का अर्थ धर्म विमुखता नहीं है। सभी धर्मों के तीर्थ स्थलों का भक्तों की भावना के अनुरूप संरक्षण व संवर्द्धन होना चाहिए। ब्रज की संस्कृति से सारा देश प्रभावित हुआ। मणिपुर से गुजरात और केरल से कश्मीर तक ब्रज की संस्कृति पर आधारित कलाओं का प्रदर्शन होता है। ब्रज से सारे देश के हिन्दुओं का रागात्मक लगाव है। ब्रज का उत्थान ब्रज के प्राकृति सौंदर्य को बचाकर और वहां तीर्थाटन की सुविधा बढ़ाकर किया जा सकता है। जो दल भी इस कार्य को निष्काम भावना से करेगा वो धाम कृपा से दीर्घकाल तक सत्ता का सुख भोगेगा। इसमें कोई सन्देह नहीं। भाजपा के आन्दोलन केवल जनता को भड़काने के लिए होते हैं उसकी ठोस सेवा के लिए नहीं। इसीलिए छः वर्ष सत्ता में रहकर भी भाजपा यह कृपा प्राप्त नहीं कर सकी।

Friday, September 3, 2004

राजनीति में दागी कौन ?


संसद में बिना बहस के बजट पास हो गया। विपक्ष ने इसका बहिष्कार किया। सरकार में शामिल दागी मंत्रियों को लेकर विपक्ष नाराज है। जबसे सरकार बनी है उसने लगातार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर दबाव बना रखा है। इसमें शक नहीं कि अपराधियों के राजनीति में प्रवेश को लेकर हर समझदार भारतवासी चिंतित है। पर असहाय भी है। कुछ कर नहीं सकता। पहल तो राजनैतिक दलों को ही करनी होगी। भाषण सब झाड़ते हैं पर किसी भी राजनैतिक दल के नेता में यह नैतिक साहस नहीं कि राजनीति से अपराधियों को निकालने के सवाल पर जनता को आंदोलित करे। राजनीति में अपराधियों का आना सबके लिए घातक है। जनता के लिए ही नहीं बल्कि उन राजनेताओं के लिए भी जो अपराधी नहीं हैं। यह कैंसर अगर जड़ से निर्मूल नहीं किया गया तो कुछ समय बाद डाॅक्टर मनमोहन सिंह नहीं बल्कि दाउद जैसे लोग इस देश में प्रधानमंत्री बन जायेंगे। पर बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे ? सत्ता हासिल करने की होड़ में हर दल वही करता है जिसकी वह आलोचना करता है।

वैसे अपराधी कौन है या दागी कौन है ? इसका फैसला इतना आसान नहीं। राजग के सदस्य तपाक से उत्तर देते हैं कि हत्या, लूट, अपहरण और हिंसा में शामिल व्यक्ति को अपराधी नहीं तो और क्या माना जाये। यह तर्क सही है और इस कोई बहस की भी नहीं जा सकती। सब एक मत होंगे। पर सवाल उठता है कि क्या केवल ये अपराध ही अपराध है। देश द्रोह करना या देश के खिलाफ षड्यंत्र करने वालों को प्राश्रय देना तो इससे भी बड़ा अपराध है। दुख की बात यह है कि दागी मंत्रियों का मुद्दा उछालने वाली राजग का दामन कुछ ऐसे ही जघन्य अपराधों से भरा पड़ा है। उदाहरण के तौर पर स्टैंप घोटाले में बम्बई के पुलिस आयुक्त श्री राधेश्याम शर्मा को इसलिए गिरफ्तार किया गया कि उन्होंने इस मामले में एफ.आई.आर. दर्ज करने में ढील रखी और समय पर कार्यवाही नहीं की। क्या राजग सरकार के गृहमंत्री संसद को ये बताने को तैयार है कि हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकवादियों को विदेशी मदद पहुंचाने वाले लोगों को सी.बी.आई के जिन पुलिस अधिकारियों ने चार वर्ष तक बचाये रखा उन्हें गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया ? सजा देना तो दूर राजग सरकार ने देशद्रोह के काण्ड में लिप्त इन अधिकारियों को समय से पहले पदोन्नति देकर, राष्ट्रपति के पदक दिलवाकर और विदेशों में तैनाती देकर पुरस्कृत क्यों किया ? यदि राजग सरकार देश के प्रति अपना फर्ज ईमानदारी से निभाती और जैन हवाला काण्ड की जांच में हुई कोताही को ध्यान में रख कर इस जघन्य काण्ड की ईमानदारी से जांच करवाती तो आतंकवाद देश में इतने पांव नहीं पसारता।
क्या राजग सरकार में शामिल दलों के नेता बतायेंगे कि तीन बार आंतकवाद पर श्वेतपत्र लाने की घोषणा करने के बावजूद राजग सरकार के गृहमंत्री ने यह श्वेतपत्र देश के सामने प्रस्तुत क्यों नहीं किया ? ऐसा क्या संशय था, क्या डर था और क्या हिचक थी जिसने गृहमंत्री को देश हित में यह काम नहीं करने दिया। केवल सामाजिक अपराध करने वाला ही अपराधी नहीं होता। आर्थिक अपराध समाज में विषमता को जन्म देते हैं। बेईमानी से और गरीबों का हक छीनकर हासिल की गई आर्थिक प्रगति समाज में हिंसा को जन्म देती है। इसलिए अपराध शास्त्री हर अपराध को समाज के लिए घातक मानते हैं।
राजनीति में विरोध केवल विरोध के लिए किया जाता है। जब तत्कालीन रक्षामंत्री के विरुद्ध तहलका काण्ड को लेकर इंका विरोध कर रही थी तब भी मैंने ये सवाल उठाया था कि ऐसा क्यों होता है कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध शोर मचानेवालों को केवल अपने राजनैतिक प्रतिद्वन्द्वियों का भ्रष्टाचार ही नज़र आता है अपने सहयोगियों का नहीं। साफ जाहिर है कि शोर केवल राजनैतिक लाभ के लिए मचाया जाता है, जनता को भ्रष्टाचार से बचाने के लिए नहीं। यही कारण है कि ऐसे किसी भी आन्दोलन का स्थाई परिणाम नहीं निकलता। मान लें कि डाॅक्टर मनमोहन सिंह सरकार से दागी मंत्री हटा दिये जाएं तो क्या हिन्दुस्तान की राजनीति से भ्रष्टाचार समाप्त हो जायेगा। क्या राजग के हर नेता को यह पे्ररणा मिलेगी कि वह अपने पूरे परिवार और नातेदारों की आर्थिक हैसियत को सार्वजनिक करने को तैयार होगा ? क्या राजग के नेता उस कानून को लाने की पहल करेंगे जिसके तहत सी.बाी.आई. को बड़े नेताओं और अफसरों के खिलाफ जांच करने की खुली छूट मिल जायेगी। उल्लेखनीय है कि वाजपेई सरकार के दौरान जो सी.वी.सी. विधेयक पारित हुआ उसमें राजग सहित किसी भी दल ने सी.बी.आई. या सी.वी.सी. को स्वायत्त्ता नहीं मिलने दी। जब कि सर्वोच्च न्यायालन ने ऐसा किए जाने के आदेश दिए थे। क्या राजग के नेता इस बात पर भी डटेंगे कि जब तब राजनीति में अपराधियों के प्रवेश को प्रतिबंधित करनेवाला कानून पास नहीं हो जाता तब तक संसद को नहीं चलने देंगे ? जाहिर है कि वे ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे। ये शोर तो केवल डाॅक्टर मनमोहन सिंह को घेरने के लिए मचाया जा रहा है। राजग के नेता इस बात से बुरी तरह बौखला गये हैं कि डाॅक्टर मनमोहन सिंह जैसी साफ छवि का व्यक्ति प्रधानमंत्री कैसे बन गया ? विज्ञापन ऐजेंसियों और चारण और भाट किस्म के पत्रकारों को खैरात बांट कर नेतृत्व की छवि कितनी ही क्यों न बनाई जाए कहते हैं कि सच्चाई छुप नहीं सकती बनावट के उसूलों से कि खुशबू आ नहीं सकती कभी कागज के फूलों से
डाॅक्टर मनमोहन सिंह की ईमानदारी किसी के सर्टिफिकेट की मुरीद नहीं है। जब देश के भूखे किसान अपने परिवारों सहित जहर खाकर आत्महत्या कर रहे थे तब वाजपेई जी ने इस देश के गरीबों का उपहास उड़ाते हुए करोड़ों  रूपयों की बेहद मंहगी बी.एम.डब्ल्यू. कारों का काफिला अपने आराम के लिए खरीदा। डाॅक्टर सिंह ने इन मंहगी कारों के काफिलों को चुपचाप लौटा दिया। इस प्रशंसनीय कदम की कोई चर्चा तक जनता के बीच में नहीं की। टिकट की लाईन में खुद लगना, अपनी मारूति खुद चलाकर सार्वजनिक कार्यक्रमों में पहुंच जाना, दावे कम करना और काम ज्यादे करना, किसी विवाद में न पड़ना, गलत काम को अगर रोक न सकें तो स्वयं उससे बचकर रहना उनके कुछ ऐसे गुण हैं जिन्हें देशवासियों को जानना चाहिए। मेरा छोटा पुत्र बचपन से डाॅक्टर सिंह के नाती के साथ पढ़ता भी है और दोनों घनिष्ठ मित्र भी हैं। आमतौर पर बच्चे जब राजनेताओं के घर जन्मदिन की पार्टियों में जाते हैं तो उन पार्टियों के वैभव से दिग्भ्रमित हो जाते हैं। हम साधारण मध्यमवर्गीय लोग उस स्तर के जश्न जन्मदिन के नामपर मनाने की सोच भी नहीं सकते। इसलिए प्रायः ऐसी जगह जाना टाल जाते हैं। पर डाॅक्टर सिंह के घर हर वर्ष जन्मदिन की पार्टी में जाना ऐसा ही अनुभव होता है जैसा अपने जैसे लोगों के बीच। न कोई तामझाम, न कोई वैभव। घर के बने दो-चार सामान और नाना-नानी की आत्मीय आतिथ्य शैली जहां नौकरों का भी प्रवेश नहीं। ऐसे सहज, सरल और ईमानदार व्यक्ति को हर राजनैतिक दल का समर्थन मिलना चाहिए ताकि देश की राजनैतिक संस्कृति में बदलाव की शुरुआत हो सके। पर ये बदलाव चाहता कौन है ? राजग के नेता ऐसा क्यूं चाहेंगे ? राजग छोड़ इंका में भी बहुत से लोग इस स्थिति से खुश नहीं हैं। चाहे जो भी कारण रहे हों पर इस कदम के लिए श्रीमती सोनिया गांधी की जितनी प्रशंसा की जाये कम है। उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति के हाथ में देश की बागडोर सौंपी जिसके भाई तक उससे किसी लाभ की उम्मीद नहीं रखते। ऐसा व्यक्ति आज के बिगड़े राजनैतिक माहौल में अपने बूते पर चुनाव जीतकर कभी भी प्रधानमंत्री के पद पर नहीं पहुंच सकता था। देश को पता ही नहीं चलता कि प्रधानमंत्री के पद पर सच्चे और ईमानदार व्यक्ति भी बैठ सकते हैं। राजग की यही तड़प है। दागी मंत्रियों के हक में कोई नहीं है। पर राजग को यह नहीं भूलना चाहिए कि सुखराम के खिलाफ 13 दिन तक संसद न चलने देने वाली भाजपा ने बाद में उन्हीं सुखराम के साथ मिलकर सरकार चलाई थी। अगर ये दागी मंत्री आज राजग का दामन थाम लें तो उसे इनके साथ सरकार चलाने में कोई संकोच नहीं होगा। फिर ये ढोंग क्यों ?
दरअसल राजनीति के हमाम में सब नंगे हैं। हर दल सत्ता में रह कर वही करता है जो उसके अपने फायदे में होता है और विपक्ष में बैठ कर जनता के हितों की दुहाई देता है। दुर्भाग्य से लोकतंत्र का अब यही स्वरूप बन गया है। लोकतंत्र लोक आधारित न होकर कुलीन तंत्र बन गया है। नेता के बेटे-बेटी चाहे काबलियत न हो तो भी रातोरात नेता या टीवी स्टार बन जाते हैं। जबकि योग्य लोग वर्षों चप्पलें घिसते रहते हैं। सारी सत्ता कुछ कुलीनों के हाथ में केंद्रित है। इनमें से बहुत से भ्रष्ट तरीकों से ताकतवर बने हैं। जब ताकतवर बन ही गये तो फिर कुलीनों के क्लब में भी आसानी से शामिल हो जाते हैं। ऐसे तमाम राजनेता सत्ता अपने हाथ से निकलने नहीं देना चाहते। हर जा-बेजा काम कर सत्ता में बने रहना चाहते हैं और अपने गलत कामों को छिपाते हैं या उन्हें जनहित में बताकर जनता को गुमराह करते हैं। सत्ता से हट जाने के बाद वे हताशा में सरकार को गिराने में जुट जाते हैं। चूंकि देश में लोकतंत्र है और किसी को तलवार के जोर पर गद्दी से नहीं उतारा जा सकता। इसके लिए लोगों के पास वोट मांगने जाना होता है। लोग वोट उसी को देंगे जो उनकी गरीबी और बेरोजगारी को दूर करने के सपने दिखाये। इसलिए विपक्ष के सभी दल जब तक सत्ता के बाहर रहते हैं तब तक गरीबी, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के सवाल पर डटकर शोर मचाते हैं। खूब बयानबाजी करते हैं। सम्वाददाता सम्मेलन बुलाते हैं। संसद नहीं चलने देते। पर जब खुद सत्ता में होते हैं तो वही सब करते हैं जिसके विरुद्ध शोर मचा रहे थे। जब खुद घोटालों में फंस जाते हैं तो खतरनाक खामोशी अख्तियार कर लेते हैं। क्या राजग के नेता बतायेंगे कि देशद्रोह के जैन हवाला काण्ड की ईमानदारी से जांच करवाने की मांग उन्होंने कभी भी क्यों नहीं की? जिस काण्ड ने इस देश के दर्जनों मंत्रियों को कटघरे में खड़ा कर दिया क्या उसमें जांच की मांग करना भी जरूरी नहीं था ? फिर दागी मंत्रियों के विरुद्ध चल रहे हंगामें का नैतिक आधार क्या है ?