Friday, December 17, 2004

धरोहरों का विध्वंस क्यों ?


ताजमहल की दो मीनारें झुक रही हैं। इसकी चिन्ता भारत सरकार के पुरातत्व विभाग को अभी से सताने लगी है। मीडिया भी चैकन्ना हो गया है। ताज काॅरीडोर के निर्माण को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। यह शुभ लक्षण है कि हम अपनी 500 वर्ष पुरानी धरोहर के लिए कितने सतर्क हैं। पर क्या किसी को पता है कि हमारी 5000 वर्ष पुरानी धरोहर को डायनामाइट लगाकर तोड़ा जा रहा है और कोई कुछ नहीं कर रहा है। भगवान श्री राधा-कृष्ण की लीला स्थली ब्रज प्रदेश के कामां इलाके में खाट शिला अब नहीं रही। पिछले वर्ष तक लाखों दर्शनार्थी इसके दर्शन करने यहां आते थे। पर्वत श्रॅखला के मध्य में स्थित यह खाट शिला 5000 वर्षों से सभी हिन्दुओं की आस्था का केन्द्र थी। यह मान्यता थी कि गोचारण के समय भगवान श्रीकृष्ण गायों को चरने के लिए छोड़ कर इस बिस्तरनुमा शिला पर विश्राम करते थे। पर इसी वर्ष खान माफिया ने डायनामाइट लगाकर इसको उड़ा दिया। अब आने वाली पीढि़यां इस दिव्यस्थली के दर्शन कभी नहीं कर पायेंगी।

इस पहाड़ी के दूसरी तरफ एक फिसलनी शिला है। जिसका स्वरूप किसी भी पार्क में लगे स्लाइडर जैसा है। जिसपर एक तरफ से ऊंचा चढ़कर दूसरी तरफ से फिसलते हुए बच्चे नीचे आते हैं। यह वही शिला है जिसपर भगवान श्रीकृष्ण अपने सखाओं के संग फिसला करते थे। अभी कुछ महीनों पहले तक यह शिला चमचमाती यथावत थी। ब्रज 84 कोस की यात्रा को आने वाले लाखों तीर्थयात्री पिछले 5000 वर्षों से इस शिला पर फिसलने का आनन्द लेते थे। अनेक महान संत और आचार्य भी शिला पर फिसलकर भगवत् लीला का स्मरण करते थे। पर पड़ोस के पहाड़ पर होने वाले डायनामाइट के धमाकों से यह शिला कई जगह से फट गई है। इसका रहा-सहा स्वरूप भी कुछ दिनों में नष्ट हो जायेगा। हमारे शास्त्रों में कृष्ण लीला की जिन हजारों स्थलियों का जिक्र है वे सब ब्रज में यथावत मौजूद हैं। इन स्थलियों के दर्शन करने हर वर्ष हजारों तीर्थयात्री पूरी दुनिया से ब्रज में आते हैं। पर संरक्षण के अभाव और खान-माफियों की कुदृष्टि के कारण तेजी से इन दर्शन स्थलियों का लोप होता जा रहा है। कायदे से इन लीलास्थलियों को समेटे ब्रज को पहले ही संरक्षित धरोहर क्षेत्र घोषित कर देना चाहिए था। पर किसी सरकार ने इसकी चिन्ता नहीं की। ब्रज का जो हिस्सा राजस्थान में आता है वहीं ये दिव्य पहाडि़यां हैं, जिन पर रात-दिन    अवैध खनन जारी है। खनन के पट्टे कांग्रेस के शासनकाल में दिए गए थे। पर अब हिन्दूवादी भाजपा सरकार भी इन्हें रद्द नहीं कर रही है। नतीजतन हर दिन एक-एक करके सभी लीलास्थलियों के चिन्ह नष्ट होते जा रहे हैं। हम मुसलमानों पर हिन्दू मन्दिर तोड़ने का दोष मढ़ते आए हैं पर दुःख की बात है कि ब्रज में आज जो विनाश का तांडव हो रहा है उसे हिन्दू सेठ और नेता ही कर रहे हैं। ये वही लोग हैं जो बड़े-बड़े भण्डारे और जागरण करवाते हैं और रात-दिन ठाकुरजी की नित्य विहार स्थली को नष्ट करने पर तुले हैं।
राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेश पर 2 वरिष्ठ अधिवक्ताओं की एक समिति ने कामां में जांच करने पर हृदय विदारक सच्चाई का पता लगाया। इस समिति के एक सदस्य श्री अजय रस्तोगी  जी तो अब राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति बन चुके हैं और दूसरे जगमोहन सक्सेना अभी  भी ब्रज बचाने की लड़ाई में जुटे हैं। इन दोनों की रिपोर्ट बताती है कि भरतपुर के इलाके में 24 अधिकृत खानें हैं जिन्हें 20 वर्ष की लीज दी गई है। इन्हें औसतन 5 हेक्टेयर भूमि दी गई है।
20 मार्च 2004 को अचानक किए गए सर्वेक्षण से पता चला कि इन्हें पहले ही सूचना भिजवा दी गई थी, सो वे स्वागत के लिए तैयार थे। पर फिर भी टीम ने जांच की और पाया कि कोई भी खान पर्यावरण के हितों को ध्यान में रखकर काम नहीं कर रही थी जबकि ऐसा करना उनकी शर्तों में शामिल था। खानवालों द्वारा अपेक्षित वृक्षारोपण बिलकुल नहीं किया गया था। नियम विरुद्ध होने के बावजूद भूजल स्तर तक खनन किया जा रहा था। जिससे भूजल प्रदूषित हो रहा था। किसी भी खानवाले ने अपनी खान की सीमा पर अपेक्षित खम्भे या दीवार नहीं चिनी थी। साफ जाहिर था कि अधिकार से कहीं ज्यादा बड़े क्षेत्र में अवैध खनन जारी थी और खान विभाग के अधिकारी आंख मींचे बैठे थे। इस खनन से आसपास के पशुधन व कृषि को भारी नुकसान हो रहा था। सांस्कृतिक धरोहरों की रक्षा का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा था।
इस तरह लूट का नंगा नाच हो रहा था। राजस्थान सरकार का खान विभाग अपनी जेब गर्म होने के कारण इनके विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं कर रहा था। यह सभी हिन्दुओं के लिए शर्म की बात है कि उनके आराध्य भगवान श्रीकृष्ण की नित्य विहार स्थली ब्रज प्रदेश का ऐसा खुला विध्वंस किया जा रहा हो और हम भगवत् सप्ताह करवाने और छप्पन भोग करवाने में गौरवान्वित हो रहे हों। भजन संध्या में झूमने से क्या लाभ जब भजन के नायक ठाकुरजी की लीलास्थलियों को हम बचा नहीं पा रहे।
ब्रज के कुछ सन्त, अमरीका सेे आई कुछ हिन्दू महिलाएं और हम लोग 8 दिसम्बर 2004 को राजस्थान के खान मंत्री, सचिव व अतिरिक्त मुख्य सचिव से मिले। उनका कहना था कि हम एकदम से खान बन्द नहीं करवा सकते। यानी इस लूट को रोक नहीं सकते। जिनकी लीज 2010 में खत्म होगी उन्हें अभी से कैसे रद्द किया जा सकता है। फिर 5 करोड़ रूपये सालाना की राजस्व की भी क्षति होगी। हमारा उत्तर था कि 2010 तक तो कामां के पहाड़ बचेंगे ही नहीं। जहां तक राजस्व की बात है तो इस पूरे क्षेत्र को गोचर भूमि बना कर गाय, भेड़, बकरी से जुड़े उद्योगों को विकसित किया जा सकता है। इसके साथ ही तीर्थाटन का ताना-बाना बेहतर बनाकर काफी आमदनी की जा सकती है। इंग्लैड में शेक्सपियर के बाल को कांच के डिब्बे में बन्द करके रखा है। उसे दिखाने की टिकट 350 रूपये की लगती है फिर भी मीलों कतार लगी रहती है। ब्रज में 5000 साल की संस्कृति के हजारों अद्भत् चिन्ह मौजूद हैं जिन पर सूर और मीरा जैसे सन्तों ने अपना जीवन न्यौछावर कर दिया। 
इतनी महान सांस्कृतिक विरासत को नष्ट करना आत्महत्या जैसा होगा। फिर भाजपा शासित राज्य में ऐसा हो यह तो बड़े शर्म की बात है। जबकि ताजमहल को बचाने के लिए आसपास के सारे उद्योग बन्द करवा दिए गए थे। दिल्ली में प्रदूषण कम करने के लिए सारी फैक्टरियां भी बन्द करवा दी गईं। तब संकोच नहीं हुआ। फिर गीता का ज्ञान देने वाले श्रीकृष्ण की लीलास्थलियों की ऐसी उपेक्षा क्यों ? हर हिन्दू और भारत के पे्रमी को एक-एक पत्र भारत के प्रधानमंत्री, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश व राजस्थान की मुख्यमंत्री को लिखना चाहिए। ब्रज क्षेत्र में खनन कार्य तुरन्त रुकना चाहिए वर्ना भविष्य में कुछ नहीं बचेगा। हम भविष्य में 500 करोड़ रूपया खर्च करके नए मन्दिर तो बनवा सकते हैं पर क्या भगवान के पदचिन्हों को संजोए हुए इन पर्वतों को दुबारा बनवा पायेंगे ? हाथ पर हाथ धरकर बैठने का नहीं उठ खड़े होकर विरोध करने का समय है। वर्ना केवल पछताना ही पड़ेगा।

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