Sunday, July 26, 2009

कलाम की बेकद्री या वी.आई.पी. बनने की होड़

अमरीका की का¡टींनेंटल एअरलाइंस ने भारत के पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के जूते क्या उतरवा दिए कि हिन्दुस्तान के वी.आई.पीयों ने तूफान खड़ा कर दिया। मजे की बात ये है कि आम आदमी की तरह शालीनता से जिन्दगी जीने वाले डा¡. कलाम को इसमें कुछ भी नागवार नहीं लगा। उन्हें आश्चर्य है कि जिस मुद्दे पर वे चार महीने तक कुछ नहीं बोले उस पर आज अचानक शोर क्यों मचाया जा रहा है? वैसे तो एअरलाइंस ने इस मामले पर माफी मांग ली है। लेकिन यह पूरा मामला कई बुनियादी सवाल खड़े करता है।

हमारे देश के संविधान में कानून की नजर में सब समान है। पर हकीकत में ऐसा नहीं है। इस देश में दो जाति हैं, एक वोटर की और एक लीडर की। सारे कानून वोटरों पर लागू होते हैं। लीडर का मतलब ही है, जिस पर कोई कानून लागू न होता हो। मसलन अगर कहीं नो एण्ट्रीं का बोर्ड लगा है तो आम आदमी चुपचाप वहाँ से मुड़ जाता है। पर लाल बत्ती वाली गाड़ी में बैठा हुआ लीडर जिद्द करता है कि वो वहीं से आगे जायेगा। दिल्ली के प्रगति मैदान में औद्योगिक मेले के दौरान हर आदमी अपनी कार बहुत दूर बनी पार्किंग में खड़ी करके चलकर आता है। पर कितनी भी भीड़ क्यों न हो, कितने भी लोगों को असुविधा क्यों न हो, वी.आई.पी. गाड़ी उसी भीड़ को चीरकर गेट तक जाती है और उससे उतरने वाले साहब-मेमसाहब चारों ओर ऐसे नजर घुमाते हैं मानों वे किसी दूसरे ग्रह से उतरकर आये हों!

अस्पताल में भर्ती होना हो या रेलवे में आरक्षण कराना हो। इतना ही नहीं मन्दिर में दर्शन करने के लिए भी वी.आई.पी. कतार अलग लगती है। ये कैसा लोकतंत्र है? का¡टींनेंटल एअरलाइंस उस अमरीकी देश की है जहाँ एक विद्वान या वैज्ञानिक को राजनेता से ज्यादा सम्मान दिया जाता है। यह उस अमरीका की है जहाँ किसी हवाई जहाज में वी.आई.पी. के लिए कोई सीट आरक्षित नहीं होती। यह उस देश की है जहाँ सुरक्षा जाँच में केवल मौजूदा राष्टपति जैसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों को छोड़कर और किसी को जाँच के नियमों से मुक्त नहीं किया जाता। जहाँ कोई वी.आई.पी. पार्किंग नहीं होती। जहाँ सांसद और अफसर सुरक्षा कर्मियों के साथ रौब गांठते नहीं घूमते बल्कि आम आदमी की तरह खरीदारी करते हैं, होटल और सिनेमा हा¡ल में जाते हैं और लाइन में लगकर टिकट खरीदते हैं। ऐसे में अगर उस देश की एअरलाइंस में डा¡. कलाम की सुरक्षा जाँच की तो उनके कानून के मुताबिक इसमें कुछ भी असमान्य नहीं है। हाँ हमने कानून बनाकर कुछ विशिष्ट व्यक्तियों को हवाई अड्डों पर सुरक्षा जाँच से मुक्त रखा है। जिनमें भारत के सभी पूर्व राष्टपति भी आते हैं। इस लिहाज से एअरलाइंस के कर्मचारियों का व्यवहार भारतीय कानून का उल्लंघन जरूर है। पर इस क्रिया के पीछे की मानसिकता को समझने की जरूरत है। काॅटींनेंटल एअरलाइंस के कर्मचारियों के लिए अपने कर्तव्य का पालन बहुत महत्वपूर्ण है। जिसमें वे कोई कोताही नहीं बरतना चाहते। इसलिए उन कर्मचारियों ने जो कुछ किया वह उनकी कर्तव्यनिष्ठा के रूप में देखा जाना चाहिए। इस घटना पर शोर मचाकर हम अपनी भावनाओं को भड़का तो सकते हैं, पर इससे हम अपने ही लिए कांटें बोते हैं। अगर अमरीकी वायुसेवाऐं और वहाँ के हवाई अड्डे सुरक्षा जाँच के नियमों का इतनी कड़ाई से पालन नहीं करते तो क्या यह कैसे सम्भव था कि 11 सितम्बर के बाद से आज तक अमरीका में एक भी आतंकवादी घटना नहीं हुई। हमारे यहाँ जब बार-बार आतंकवादी घटना होती है तो हम सुरक्षा व्यवस्था की खामियों की ओर नजर दौड़ाते हैं और सरकार की लचर व्यवस्था की धज्जियाँ उड़ाते हैं। इसीलिए हमारे  देश में बार-बार आतंकवादी घटनाऐं होती हैं। इस तरह अपने को वी.आई.पी. बताकर धौंस जमाने वाले लोग सुरक्षा कर्मियों का मनोबल गिरा देते हैं। उन्हें चिल्ला-चिल्लाकर जलील करते हैं। बात-बात पर अपने कौन हूँ मैं, बता दूंगाका उद्घोष करते हैं। निष्ठापूर्वक सुरक्षा जाँच में जुटे कर्मचारियों को तबादला करवाने की धमकी देते हैं। ऐसे माहौल में रहकर हमारे सुरक्षाकर्मी कई बार मन से टूट जाते हैं। फिर उनसे लापरवाही हो जाना स्वाभाविक है।

जरूरत इस बात की है कि का¡टींनेंटल एअरलाइंस की इस घटना पर उत्तेजित होने की वजाए संसद में एक खुली बहस हो जिसमें इस बात पर विचार किया जाए कि हमारे देश में जो वी.आई.पी. बनने की होड़ लग गयी है उसे कैसे रोका जाए? गृहमंत्री चिदंबरम बिना सुरक्षा कवच के रहकर काम करना चाहते हैं, तो विधायकों, सांसदों और मंत्रियों को इतने सुरक्षाकर्मियों और एस्का¡र्ट गाडि़यों की जरूरत क्यों पड़ती है? यह भी बहस होनी चाहिए कि लोकतंत्र में इस तरह विशिष्ट व्यक्तियों को रेखांकित करने से क्या देश का भला हो रहा है या नुकसान? प्रस्ताव आना चाहिए कि केवल राष्टपति, प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश, मुख्यमंत्री और राज्यपाल के अलावा और किसी भी पद पर बैठे व्यक्ति को वी.आई.पी. न माना जाए। पर ऐसा प्रस्ताव लायेगा कौन? कौन चाहेगा कि उसके कमाण्डो हटा दिये जायें और उसे बिना लालबत्ती की गाड़ी में घूमने को मजबूर किया जाये। इसलिए इस गम्भीर विषय पर कभी चर्चा नहीं हुई। चर्चा होगी तो इस बात पर कि देश के पूर्व राष्ट्रपति की सुरक्षा जाँच करके का¡टींनेंटल एअरलाइंस ने देश को अपमानित किया है। यह भावना से जुड़ा मुद्दा है और इस पर कितना भी शोर मचाया जा सकता है। पर उससे कोई समाधान नहीं निकलेगा। डा¡. कलाम को चाहिए कि वे खुद ही वी.आई.पी. मानसिकता के खिलाफ एक अभियान शुरू करें और देशवासियों को यह बतायें कि कानून की नजर में सब बराबर हैं। न कोई वी.आई.पी. है और न कोई वी.ओ.पी.। सब समान हैं और सबके लिए नियम और कानून एक से ही लागू होते हैं।

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