Monday, May 23, 2011

जन लोकपाल या लोकतांत्रिक लोकपाल ?

Panjab Kesari 23-05-2011
लोकपाल विधेयक बनाने की साझी समिति अपना काम कर रही है। पर इसके साथ ही सरकारी विधेयक और भूषण पिता-पुत्र द्वारा तैयार विधेयक, दोनों की ही खामियों को दूर करता हुआ एक लोकतांत्रिक लोकपाल विधेयक एक और टीम ने तैयार किया है। जिसमें लोकसभा के महासचिव रहे सुप्रसिद्ध संविधान विशेषज्ञ श्री सुभाष कश्यप, सर्वोच्च न्यायालय के वकील श्री अरूणेश गुप्ता, क्रांतिकारी विचारक भरत गाँधी आदि अन्य लोग शामिल हैं। इन तीनों विधेयकों की तुलना करने से पाठकों को स्पष्ट हो जायेगा कि यदि भ्रष्टाचार को दूर करना है तो भूषण पिता-पुत्र का लोकपाल विधेयक नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक विधेयक ही कारगर रहेगा।

लोकतांत्रिक मूल्य
सरकारी लोकपाल का लोकतांत्रिक मूल्य प्रधानमंत्री पद के मूल्य से कम होगा, क्योंकि वह निर्वाचित नहीं होगा। कमोबेश जनलोकपाल का लोकतांत्रिक मूल्य भी सरकारी विधेयक जैसा ही है। जबकि लोकतांत्रिक लोकपाल देश-भर के ब्लाॅक प्रमुखों द्वारा निर्वाचित होगा। अतः लोकतांत्रिक मूल्य में अधिक होगा और प्रधानमंत्री पर निगरानी करने का उसका अधिकार पूरी तरह तर्क संगत होगा।

विचारधारा की लोक परीक्षा
सरकारी लोकपाल विधेयक द्वारा बनाये गये लोकपाल की राजनीतिक-आर्थिक विचारधारा क्या है यह केवल देश के बडे राजनेता ही जान पाएंगे, क्योंकि वही लोग लोकपाल को नियुक्त करेंगे। आम जनता अन्धेरे में रहेगी। जनलोकपाल की नियुक्ति संवैधानिक पदों पर बैठे ह्रुए लोगों के अलावा उद्योगपतियों द्वारा समर्थित कुछ तथाकथित समाजसेवी व विदेशी हुकूमतों से ईनाम पाने वाले उनके कृपापात्र भी करेंगे। इन मुठ्ठीभर लोगों के अलावा लोकपाल की विचारधारा और आचरण से पूरा देश अनजान रहेगा। चूंकि लोकतांत्रिक लोकपाल का चुनाव होगा, अतः उसके प्रतिद्वन्दी जनता के सामने उसकी सारी पोल खोल देंगे। पूरा देश जान पाएगा कि जो व्यक्ति लोकपाल की कुर्सी पर बैठने जा रहा है उसकी राजनीतिक व आर्थिक विचारधारा क्या है और उसका चरित्र व आचरण कैसा रहा है?

निजी सनक और राजनीतिक अनुभवहीनता
सरकारी लोकपाल विधेयक के अनुसार निर्वाचित न होने के कारण लोकपाल सनकी हो सकता है और देश के संवैधानिक पदों पर बैठे लोग उसकी सनक के शिकार हो सकते हैं। इसी तरह जनलोकपाल और सरकारी लोकपाल दोनों के सनकी होने की पूरी सम्भावना है। इससे देश के संवैधानिक पद जनलोकपाल की राजनीतिक अनुभवहीनता का शिकार हो सकते हैं। जबकि लोकतांत्रिक लोकपाल व्यक्तिगत सनक व राजनीतिक अनुभवहीनता से मुक्त होगा। क्योंकि उसे चुनाव लडना पडेगा। चुनाव के दौरान उसका व्यवहार व क्रियाकलाप चर्चाओं का विषय बनेगा।

रिश्वत देने वालों का बचाव
सरकारी लोकपाल विधेयक के अनुसार लोकपाल रिश्वत देने वालों पर किसी तरह का अनुशासन नहीं लगाता। भूषण पिता-पुत्र का जनलोकपाल विधेयक भी कुछ इस प्रकार बनाया गया है जिसे देखकर लगता है कि यह रिश्वत देने वालों के संगठित प्रयास से बनाया गया हो। क्योंकि यह विधेयक रिश्वत देने वालों को या रिश्वत लेने के लिए विवश करने वालों को दण्डित करने का कोई प्रावधान नहीं करता। जबकि लोकतांत्रिक लोकपाल विधेयक रिश्वत देने वालों, रिश्वत लेने वालों और रिश्वत लेने के लिए विवश करने वालों तीनों को दण्डित करने का प्रावधान करता है।

औद्योगिक घरानों के भ्रष्टाचार को बढावा
सरकारी लोकपाल विधेयक औद्योगिक घरानों के द्वारा भ्रष्टाचार किए जाने पर मौन है। क्योंकि सरकार पर औद्योगिक घरानों का शासन चलता है इसलिए ऐसा होना स्वभाविक ही है। जनलोकपाल विधेयक भी सरकारी विधेयक की तरह औद्योगिक घरानों के भ्रष्टाचार पर कोई अंकुश नहीं लगाता। इसके विपरीत लोकपाल की चयन प्रक्रिया द्वारा औद्योगिक घरानों को बढावा भी देता है। औद्योगिक घराने कुछ स्तर पर चन्दा देकर उसी नेता और उसी पार्टी को राजनीतिक अखाडे पर पहुचाते हैं जो भ्रष्ट होते हैं। चूंकि उच्च स्तर पर रिश्वत देने वाले औद्योगिक घराने संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को रिश्वत लेने के लिए मजबूर करते हैं और रिश्वत लेने की बात न मानने पर सरकार गिरा देते हैं। इसलिए लोकतांत्रिक लोकपाल विधेयक में लोकपाल के अधीन एक ऐसे उपलोकपाल का पद बनाया गया है जो केवल औद्योगिक घरानों द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार को रोकने के लिए और रिश्वत देने वालों को दण्डित करने के लिए ही काम करेगा।

अंतर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार पर रोक
सरकारी लोकपाल विधेयक अंतर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार के मामले पर चुप है। जबकि इसी रास्ते देश का अधिकांश काला धन विदेश जाता है और इस पर सक्षम अंतर्राष्ट्रीय कानूनों द्वारा रोक न लगाई गई तो विदेश का धन देश में वापस नही लाया जा सकता। यदि यह काम किसी तरह हो भी गया तो यह सारा धन वापस विदेश फिर से चला जाएगा। देश के बडे भ्रष्टाचारी, चाहे वे नेता हों, चाहे अधिकारी हों या व्यापारी हों, सभी भ्रष्टाचार से प्राप्त रकम की सुरक्षा के लिए दूसरे देश के भ्रष्ट लोगों से गठजोड कर लेते हैं। भूषण पिता-पुत्र जनलोकपाल विधेयक के अनुसार भ्रष्टाचार से प्राप्त उनकी रकम और उस रकम से बनी सम्पत्ति को देश के अन्दर बरामद नहीं किया जा सकता। जबकि लोकतांत्रिक लोकपाल के अधीन एक ऐसा लोकपाल जो अंतर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार को रोकने के कानूनी उपाय भी करेगा।

लोकपाल के लिए अनोखे चरित्र वाले व्यक्ति की तलाश का तरीका
संवैधानिक संस्थाओं पर सामान्य चरित्र के लोग पहुँचने लगें, इसीलिए लोकपाल की जरूरत पडी। परन्तु सरकारी विधेयक में कोई ऐसा तरीका नही बतलाया जा सका, जिससे कि अलग ढंग के चरित्र वाले व्यक्ति को तलाश कर लोकपाल बनाया जा सके। जनलोकपाल विधेयक बनाने वाले शब्दों में तो दावा करते हैं कि उन्होंने अलग ढंग के चरित्र के आदमी को तलाशने का तरीका ढूंढ लिया है। लेकिन उनका दावा विधेयक के प्रावधानों में दिखाई नहीं देता। लोकपाल को तलाशने वाले मुठ्ठी भर लोग जिस तरह के भ्रष्टाचार में खुद लिप्त होंगे उस तरह के भ्रष्टाचार को खत्म करने में रुचि रखने वाले किसी व्यक्ति को लोकपाल बनाना क्यों पसन्द करेंगे? अगर भ्रष्टाचार में विश्वास करने वाला व्यक्ति ही लोकपाल बनेगा तो वह भ्रष्टाचार को कैसे रोकेगा?

लोकतांत्रिक लोकपाल को व्यक्तिगत सम्पत्ति रखने पर विधेयक में रोक है। इस प्रावधान के कारण लोकपाल के पद पर केवल वही व्यक्ति बैठ सकेगा जो देश के सभी लोगों को अपने परिवार का सदस्य मानता हो। परिवार का अभिभावक भ्रष्टाचार क्यों करेगा? संवैधानिक पदों पर आज जो लोग बैठे हैं, वे ऊँचे-ऊँचे वेतन-भत्ते लेते हैं। भोगविलास करते हैं। उन्हें इस बात की बिल्कुल परवाह नहीं कि दूसरे लोग किस तरह की जिंदगी जी रहे हैं। इसीलिए लोकतांत्रिक लोकपाल विधेयक में ऐसे व्यक्ति को तलाशने का प्रावधान किया गया है जो सम्पत्ति व संतति मोह से मुक्त हो और ईमानदार होने के साथ-साथ योग्य भी हो।

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