Sunday, July 10, 2011

मन्दिर का खजाना किसके पास जाए?

Rajasthan Patrika 10 July 2011
तिरूवंतपुरम के सुप्रसिद्ध पद्मनाभ स्वामी मन्दिर के तहखानों से लगभग 1 लाख करोड़ रूपये की सम्पदा अचानक प्रकाश में आयी है, उसको लेकर देशभर में अनेक किस्म की चर्चाऐें चल पड़ी हैं। एक तरफ केरल सरकार है, जो इस मन्दिर का अधिग्रहण कर इसकी सम्पत्ति को अपने नियंत्रण में लेना चाहती है। दूसरी तरफ केरल के साम्यवादी हैं, जिनकी मांग है कि इस बेशुमार दौलत से केरल के गरीब लोगों के लिए स्कूल, अस्पताल आदि की व्यवस्था की जानी चाहिए। तीसरी तरफ त्रावणकोर का राजपरिवार है, जिसके पारिवारिक ट्रस्ट की सम्पत्ति यह मन्दिर है। उनका कहना है कि इस सम्पत्ति पर केवल ट्रस्टियों का हक है और किसी भी बाहरी व्यक्ति को इसके विषय में निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं है। राजपरिवार के समर्थन में खड़े लोग यह कहने में नहीं झिझकते कि इस राजपरिवार ने भगवान की सम्पत्ति की धूल तक अपने प्रयोग के लिए नहीं ली। ये नित्य पूजन के बाद, जब मन्दिर की देहरी से बाहर निकलते हैं, तो एक पारंपरिक लकड़ी से अपने पैर रगड़ते हैं, ताकि मन्दिर की धूल मन्दिर में ही रह जाए। इन लोगों का कहना है कि भगवान के निमित्त रखी गयी यह सम्पत्ति केवल भगवान की सेवा के लिए ही प्रयोग की जा सकती है। इन सबके अलावा हिन्दू धर्मावलंबियों की भी भावना यही है कि देश के किसी भी मन्दिर की सम्पत्ति पर नियन्त्रण करने का, किसी भी राज्य या केन्द्र सरकार का कोई हक नहीं है। वे तर्क देते हैं कि जो सरकारें मुसलमानों, ईसाइयों, सिखों व अन्य धर्मावलंबियों के धर्मस्थानों की सम्पत्ति का अधिग्रहण नहीं कर सकतीं, वे हिन्दुओं के मन्दिरों पर क्यों दांत गढ़ाती हैं? खासकर तब जबकि आकण्ठ भ्रष्टाचार में डूबी हुई सरकारें और नौकरशाह सरकारी धन का भी ठीक प्रबन्धन नहीं कर पाते हैं।

Hind Samachar 11 July
जहाँ तक त्रावणकोर रियासत की बात है, स्थानीय लोगों की भावना कुछ और ही है। उनका कहना है कि राजपरिवार ने जनता पर बहुत अत्याचार कर इस धन का संग्रह किया था। उनके खिलाफ बगावतें भी हुईं थीं। इन लोगों का यह भी कहना है कि राजपरिवार जन्म से क्षत्रिय नहीं है। बल्कि ब्राह्मण समाज ने उन्हें क्षत्रीय का दर्जा दे रखा है। जिसकी ऐवज में हर छटे साल राजपरिवार हर ब्राह्मण परिवार को एक-एक स्वर्ण मुद्रा भेंट करता आया है। इन लोगों का यह भी कहना है कि त्रावणकोर रियासत के अत्याचारों के खिलाफ मामला ब्रिटिश संसद में भी गया था। तब भारत की अंग्रेज सरकार ने इस धन के संरक्षण की व्यवस्थाऐं की थीं। इसलिए जो भी धन आज प्रकाश में आया है, उसका प्रयोग त्रावणकोर रियासत के विकास में किया जाना चाहिए।

यह बड़ा संवेदनशील मामला है। त्रावणकोर का राजपरिवार ही क्यों, देश का हर बड़ा पैसे वाला पसीने बहाकर धनी नहीं बनता। प्रकृति के संसाधनों का नृशंस दोहन, करों की भारी चोरी, बैंकों के बिना चुकाए बड़े-बड़े ऋण, एकाधिकारिक नीतियों से बाजार पर नियंत्रण और सरकारों को शिकंजे में रखकर अपने हित में कर नीतियों का निर्धारण करवाकर बड़े मुनाफे कमाए जाते हैं। ऐसे में केवल त्रावणकोर के राजपरिवार को ही सजा क्यों दी जाए? यदि असीम धन संग्रह के अपराध की सजा मिलनी ही है तो वह राजपरिवारों, धर्माचार्यों को ही नहीं, बल्कि उद्योगपतियों, राजनेताओं, नौकरशाहों और मीडिया के मठाधीशों को भी मिलनी चाहिए। उन सब लोगों को जो अपनी इस विशिष्ट स्थिति का लाभ उठाकर समाज के एक बड़े वर्ग का हक छीन लेते हैं।

Jag Baani 11 July
दरअसल धार्मिक आस्था एक ऐसी चीज है जिसे कानून के दायरों से नियंत्रित नहीं किया जा सकता। आध्यात्म और धर्म की भावना न रखने वाले, धर्मावलंबियों की भावनाओं को न तो समझ सकते हैं और न ही उनकी सम्पत्ति का ठीक प्रबन्धन कर सकते हैं। इसलिए जरूरी है कि जहाँ कहीं ऐसा विवाद हो, वहाँ उसी धर्म के मानने वाले समाज के प्रतिष्ठित और सम्पन्न लोगों की एक प्रबन्धकीय समिति का गठन अदालतों को कर देना चाहिए। इस समिति के सदस्य बाहरी लोग न हों और वे भी न हों जिनकी आस्था उस देव विग्रह में न हो। जब साधन सम्पन्न भक्त मिल बैठकर योजना बनाएंगे तो दैविक द्रव्य का बहुजन हिताय सार्थक उपयोग ही करेंगे। जैसे हर धर्म वाले अपने धर्म के प्रचार के साथ समाज की सेवा के भी कार्य करते हैं, उसी प्रकार से पद्मनाभ स्वामी जी के भक्तों की एक समिति का गठन होना चाहिए। जिसमें राजपरिवार के अलावा ऐसे लोग हों, जिनकी धार्मिक आस्था तो हो पर वे उस इलाके की विषमताओं को भी समझते हों। ऐसी समिति दैविक धन का धार्मिक कृत्यों व समाज व विकास के कृत्यों में प्रयोग कर सकती है। इससे उस धर्म के मानने वालों के मन में न तो कोई अशांति होगी और न कोई उत्तेजना। वे भी अच्छी भावना के साथ ऐसे कार्यों में जुड़ना पसन्द करेंगे। अब वे अपने धन का कितना प्रतिशत मन्दिर और अनुष्ठानों पर खर्च करते हैं और कितना विकास के कार्यों पर, यह उनके विवेक पर छोड़ना होगा।

Punjab Kesari 11 July
हाँ, इस समिति की पारदर्शिता और जबावदेही सुनिश्चित कर देनी चाहिए। ताकि घोटालों की गुंजाइश न रहे। इस समिति पर निगरानी रखने के लिए उस समाज के सामान्य लोगों को लेकर विभिन्न निगरानी समितियों का गठन कर देना चाहिए। जिससे पाई-पाई पर जनता की निगाह बनी रहे। हिन्दू मन्दिरों का धन सरकार द्वारा हथियाना, हिन्दू समाज को स्वीकार्य नहीं होगा। अदालतों को हिन्दुओं की इस भावना का ख्याल रखना चाहिए। अभी तो एक पद्मनाभ मन्दिर का तहखाना खुला है। देश में ऐसे हजारों मन्दिर हैं, जहाँ नित्य धन लक्ष्मी की वर्षा होती रहती है। पर इस धन का सदुपयोग नहीं हो पाता। समाज को आगे बढ़कर नई दिशा पकड़नी चाहिए और दैविक द्रव्य का उपयोग उस धर्म स्थान या धर्म नगरी या उस धर्म से जुड़े अन्य तीर्थस्थलों के जीर्णोद्धार और विकास पर करना चाहिए। जिससे भक्तों और तीर्थयात्रियों को सुखद अनुभूति हो। इससे धरोहरों की रक्षा भी होगी और आने वालों को प्रेरणा भी मिलेगी।

2 comments:

  1. बहुत ही गहन विवेचन इस खबर का किया है.

    पर लोग चाहे कुछ भी कर लें, ऐसे तत्व हैं जो जहाँ भी पैसा है उसे हरपने में सानी नहीं रखते,

    भगवान पद्मनाभ स्वामी ही रक्षा करें.

    अशोक गुप्ता
    दिल्ली

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  2. भगवन करे क़ि मंदिर का धन ट्रस्ट,आस्थावान भक्तों,सम्बद्ध परिवार और सभी सम्बंधित पक्छों में सहमती बने और धन गरीबों के विकास, शिछा,healthcare आदि जैसे मुद्दों पर खर्च हो.

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