Monday, May 6, 2013

सीवीसी और सीबीआई को बाहरी दवाब से मुक्त करना होगा

हाल ही में कोल गेट मामले की सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने कानून मंत्री व सीबीआई के बीच हुई बैठक पर कड़ा एतराज जताते हुए कहा कि 15 वर्ष पहले इसी अदालत के ‘विनीत नारायण फैसले‘ में सीबीआई की स्वायत्ता के जो निर्देश दिए गए थे, उनका आज तक अनुपालन नहीं हुआ। ‘कोलगेट केस‘ में उपलब्ध साक्ष्यों से यह स्पष्टतः स्थापित हो रहा है कि सीबीआई के लिए पेश होने वाले कानूनी अफसर, जाँच ऐजेन्सी की तर्ज पर ही चलते हैं और यह भूल जाते हैं कि उनसे अदालत को सच तक पहुँचने में मदद करने की अपेक्षा की जाती है। जैसा कि पहले कई बार इस कॉलम में उल्लेख किया जा चुका है कि जैन हवाला केस में भी कानूनी अधिकारियों ने सर्वोच्च अदालत से तथ्य छिपाने में सीबीआई की मदद की थी। इसलिए सीबीआई द्वारा नियुक्त किए जाने वाले कानूनी अधिकारियों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर भी विचार करने की आवश्यकता है।

अभी तक तो यही हुआ है कि हवाला मामले में 1997 दिसम्बर का वह ‘प्रसिद्ध फैसला‘ एक दन्तविहीन सीवीसी का गठन कर दरकिनार कर दिया गया। इसलिए यह देश के हित में बहुत महत्वपूर्ण है कि माननीय न्यायधीशगणों द्धारा 1997 के फैसले के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए समुचित निर्देश जारी किये जाएं। आगामी 8 मई को कोल गेट मामले में सुनवाई के दौरान इसकी संभावना व्यक्त की जा रही है।
आवश्यकता इस बात की है कि सीवीसी अधिनियम मे सुधार कर इसे 8/10 सदस्यों वाला ‘केन्दªीय सतर्कता आयोग‘ बना देना चाहिए, जोकि लोकपाल के लिए सोची जा रही भूमिका का निर्वहन कर सके। सीवीसी के सदस्यों के चयन की प्रक्रिया को व्यापक बनाते हुए यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इसमें चहेते और विवादास्पद व्यक्ति सदस्य न बनें। मौजूदा तीन सदस्यों मे से एक आइएएस, दूसरा आइपीएस व तीसरा बैंकिग सेवाओं से लिया जाता है। इसमें सर्वोच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश को भी नियुक्त किया जाना चाहिए। जिनका चयन भारत के मुख्य न्यायाधीश अपने बाद वरिष्ठता क्रम में तीन न्यायधीशों की सहमति से करें। क्योंकि विधायिका का हमारे देश के लोकतंत्र और शासन में भारी महत्व है इसलिए संसद के दोनों सदनों के वरिष्ठतम सांसदों मे से एक का चयन भी इस आयोग के सदस्य के रुप मे किया जाना चाहिए। इसके अलावा काँमनवैल्थ खेलों के घोटाले जैसे मामलों की जाँच के लिए इंजीनियरिंग योग्यता वाले दो-तीन विशेषज्ञ व वित्तीय घोटालों को समझने के लिए एक चार्टर्ड एकाउटेन्ट को भी इस आयोग का सदस्य बनाना चाहिए। ये सभी चयन यथासम्भव पारदर्शी होने चाहिए।
सीवीसी की सलाहाकार समिति मे कम से कम 11 सदस्य अपराध शास्त्र विज्ञान और फोरेन्सिक विज्ञान के विशेषज्ञ होने चाहिए। जो इस आयोग की कार्य क्षमता में प्रोफेशनल योगदान करेगें। साथ ही कार्य बोझ कम करने के लिए सीवीसी को बाहर से विशेषज्ञों को बुलाने की छूट होनी चाहिए, जो शिकायतों के ढ़ेर को छाँटने मे मदद करें। सीवीसी के दायरे मे फिलहाल केन्द्रीय सरकार और केन्द्रीय सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के सभी कर्मचारी आते हैं, यह व्यवस्था ऐसे ही रहे। पर इस व्यवस्था को ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए मंत्रालयों व विभागों के सीवीओ के चयन और कार्य पर सीवीसी का पूर्ण नियंत्रण होना चाहिए।
सीवीसी को जाँच करने के लिए तकनीकी रुप से अनुभवी और सक्षम लोगो की टीम दी जानी चाहिए जो शिकायत की गंभीरता को जाँच कर यह तय कर सके कि किस मामले की जाँच सीबीआई को सौंपी जानी है या सीवीसी की टीम ही करेगी। शिकायत को पूरी तरह परख लेने के बाद की कारवाई के लिए सीवीसी को सरकार से पूर्वानुमति लेने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। जिन मामलों को सीवीसी सीबीआई को सौंपती है उनकी जाँच के लिए सीबीआई को सरकार के मंत्रालय या विभाग के वित्तीय नियन्त्रण से मुक्त रहना चाहिए। सीबीआई की जाँच पर निगरानी का अधिकार केवल सीवीसी का होना चाहिए, इसकी मौजूदा व्यवस्था मे सुधार किया जाना चाहिए। इसी तरह सीवीसी के सदस्यों की भाँति सीबीआई के निदेशक की नियुक्ति भी व्यापक पारदर्शिता के साथ होनी चाहिए और सीबीआई के बाकी अधिकारियों की नियुक्ति और निगरानी का अधिकार सीवीसी को दिया जाना चाहिए।
भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों और इससे सम्बन्धित शिकायतों के संदर्भ मे शिकायतकर्ताओं के मामलों को सीवीसी के अधीन कार्यक्षेत्र में दे देना चाहिए जिससे इन सबके बीच बेहतर तालमेल स्थापित हो सके। निचले स्तर पर भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों का प्रभावी तरीके से लागू होना भी सुशासन के लिए अनिवार्य है। इसलिए यह जरूरी होगा कि राज्यों की भ्रष्टाचार विरोधी ऐजेन्सियों को भी राज्य सरकारों के हस्तक्षेप से इसी तरह मुक्त किया जाए।
यह सभी प्रस्ताव हमने सर्वोच्च न्यायालय के  माननीय न्यायधीशों के विचारार्थ भेज दिए हैं। पर इसके साथ ही हम यह भी जानते हैं कि व्यवस्था कोई भी बना लो, जब तक उसको चलाने वाले ईमानदार नहीं हैं, वो नहीं चल सकती। रिश्वत लेने वालों से ज्यादा दोष देने वालों का होता है। अपने फायदे के लिए मोटी रिश्वत लेने वाले व्यवस्था को भ्रष्ट बनाने के लिए ज्यादा जिम्मेदार है। जब तक रिश्वत देने वाले रिश्वत देना बंद नहीं करेंगे, तब तक लेने वाले मौजूद रहेंगे। सिंहासन तो चीज ही ऐसी है जहां बैठकर बड़े-बड़े फिसल जाते है।  ‘माया तू ठगनी, हम जानी।‘ 

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