Monday, May 19, 2014

मोदी को न समझने की भूल महेंगी पड़ी

    पिछले 10 वर्षों में पद्मश्री, राज्य सभा की सदस्यता या अपने अखबार या चैनल के लिए आर्थिक मदद की एवज में मीडिया का एक बहुत बड़ा वर्ग नरेन्द्र मोदी के ऊपर लगातार हमले करता रहा। 2007 में एक स्टिंग ऑपरेशन भी किया गया। पर यह सब वार खाली गए क्योंकि इस तरह की पत्रकारिता करने वाले इस गलतफहमी में रहे कि जनता मूर्ख है और उनका खेल नहीं समझेगी। पर जनता ने बता दिया कि वह अपनी राय मीडिया से प्रभावित होकर नहीं बल्कि खुद की समझ से बनाती है। पिछले 10 वर्षों में जब-जब किसी मुद्दे पर मीडिया का एक बड़े वर्ग ने मोदी पर हमला बोला तो मैने 22 राज्यों में छपने वाले अपने साप्ताहिक लेखों में इन हमलावरों के खिलाफ कुछ प्रश्न खड़े किए। जिनका मकसद बार-बार यह बताना था कि उनके हर हमले से जनता के बीच मोदी की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। क्योंकि मोदी वो काम कर रहे थे जिनकी जनता को नेता से अपेक्षा होती है। नतीजा सबके सामने हैं। यह बात दूसरी है कि गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले अब मोदी का गुणगान करने में नहीं हिचकेंगे। पर मोदी ने भी ऐसे लोगों की लगातार उपेक्षा कर यह बता दिया कि उन्हें अपने लक्ष्य हासिल करने का जुनून है और वो उसे पा कर ही रहेंगे।
    मोदी को लेकर साम्प्रदायिकता का जो आरोप लगाया गया उसे मुसलमानों की युवा पीढ़ी तक ने नकार दिया। 2010 में गुजरात के दौरे पर जब हर जगह मुसलमानों ने मोदी के काम के तरीके की तारीफ की तो मैंने लेख लिखा, ‘मुसलमानों ने मोदी को वोट क्यों दिया?’ हाल ही में वाराणसी की यात्रा में जब मैंने मुसलमानों से बात की तो पता चला कि पुराने विचारों के मुसलमान मोदी के खिलाफ थे वहीं युवा पीढ़ी ने मोदी के विकास के वायदों पर भरोसा जताया और उसका परिणाम सामने है। मोदी को कट्टर हिन्दूवादी बताने का अभियान चला रहे उन सभी लोगों को मैं यह बताना चाहता हूं कि उन्होंने आज तक हिन्दू धर्म की उदारता को समझने का प्रयास ही नहीं किया है। विविधता में एकता और हर जल को गंगा में मिलाकर गंगाजल बनाने वाली भारतीय संस्कृति न सिर्फ देश के लिए आवश्यक है बल्कि पूरी मानव जाती के लिए सार्थक है। जिसमें धर्माधता की मोई जगह नहीं। मुझे विश्वास है कि नरेन्द्र मोदी अपने कड़े इरादे और कार्यशैली से भारत के मुसलमानों को भी तरक्की की राह पर ले जाएंगे। तब इन लोगों को पता चलेगा कि बिना मुस्लिम तुष्टिकरण के भी सबका भला किया जा सकता है।
    जब चुनाव परिणाम आ रहे थे तो मैं एक टीवी चैनल पर टिप्पणियां देने के लिए बुलाया गया था। उस वक्त कई साथी विशेषज्ञों ने प्रश्न किए कि मोदी ने जो बड़े-बड़े वायदे किए हैं, उन्हें कैसे पूरा करेंगे? मेरा जवाब था कि जिस तरह उन्होंने तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद चुनाव में अभूतपूर्व सफलता हासिल की है वह एक सोची-समझी लंबी रणनीति के कारण हो सका है। ठीक इसी तरह देश की हर बड़ी समस्या के समाधान के लिए मोदी ने चुनाव लड़ने से भी बहुत पहले से अपनी नीतियों के ब्लूप्रिंट तैयार कर रखे हैं। वे हर उस व्यक्ति पर निगाह रखे हुए है जो इन नीतियों के क्रियान्वयन में अच्छे परिणाम ला सकता है। मोदी किसी आईएएस या दल के नेताओं को भी अनावश्यक तरजीह नहीं देते। जिस कार्य के लिए जो व्यक्ति उन्हें योग्य लगता है उसे बुला कर काम और साधन सौप देते हैं। हाल ही में एक टीवी साक्षात्कार में मोदी ने कहा भी कि मैं कुछ नहीं करता केवल अनुभवी और योग्य लोगों को काम सौप देता हूं और वे ही सब काम कर देते हैं।
    अपनी सरकार के मंत्रिमण्डल और प्रमुख सचिवों की सूची वे पहले ही तैयार करे बैठे हैं। मंत्रिमण्डल का गठन होते ही उनकी रफ्तार दिखाई देने लगेगी। पर यहां एक प्रश्न हमें खुद से भी करना चाहिए। एक अकेला मोदी क्या कश्मीर से क्न्या कुमारी और कच्छ से आसाम तक की हर समस्या का हल फौरन दे सकते हैं। शायद देवता भी यह नहीं कर सकते। इसी लिए गंगा मैया की आरती करने के बाद मोदी ने पूरे देश के हर नागरिक का आह्वान किया कि वे अगर एक कदम आगे बढ़ाएंगे तो देश सवा सौ करोड़ कदम आगे बढ़ेगा। पिछले कुछ वर्षों में कुछ निहित स्वार्थों ने, जीवन में दोहरे मापदण्ड अपनाते हुए देश के लोकतंत्र को पटरी से उतारने की भरपूर कोशिश की। उन्हें देश विदेश से भारी आर्थिक सहायता मिली और उन्हें गलतफहमी हो गई कि मोदी के रथ को रोक देंगे। पर खुद उनका ही पत्ता साफ हो गया। उनका ही नहीं 10 साल से सत्ता में रही कांग्रेस का पत्ता साफ हो गया। दरअसल इस देश की जनता को एक मजबूत इरादे वाले नेतृत्व का इंतजार था। श्रीमती इंदिरा गांधी के बाद आज तक देश को ऐसा नेतृत्व नहीं मिला। इसलिए देश मोदी के पीछे खड़ा हो गया। सांसद तो राजीव गांधी के मोदी से ज्यादा जीत कर आए थे। पर एक भले इन्सान होने के बावजूद राजीव गांधी राजनैतिक नासमझी, अनुभवहीनता, कोई राजनैतिक लक्ष्य का न होने के कारण अधूरे मन से राजनीति में आए थे। उन्हें स्वार्थी मित्र मण्डली ने घेर लिया था। इसलिए जल्दी विफल हो गए। जबकि नरेन्द्र मोदी के पास अनुभव, समझ, विश्वसनीयता, कार्यक्षमता और पूर्व निधारित स्पष्ट लक्ष्य है। इसलिए उनकी सफलता को लेकर किसी के मन में कोई संदेह नहीं होना चाहिए। हां यह तभी होगा जब हर नागरिक राष्ट्रनिर्माण के काम में, बिना किसी पारितोषिक की अपेक्षा के, उत्साह से जुट़ेगा। ‘साथी हाथ बढ़ाना साथी रे, एक अकेला थक जाएगा मिलकर बोझ उठाना।’ वन्दे मातरम्।

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