Monday, September 12, 2016

केजरीवाल: बिछड़े सभी बारी-बारी



            सर्वोच्च न्यायालय ने अरविंद केजरीवाल की यह मांग मानने से इंकार कर दिया कि दिल्ली में मुख्यमंत्री उपराज्यपाल से ऊपर है। दिल्ली उच्च न्यायालय ऐसी याचिका पहले ही खारिज कर चुका है। अब इसका मतलब साफ है कि पिछले 3 वर्षों से अरविंद केजरीवाल दिल्ली के उपराज्यलपाल पर केंद्र का एजेंट होने का जो आरोप बार-बार लगा रहे थे, उसकी कोई कानूनी वैधता नहीं थी। क्योंकि न्यायपालिका ने मौजूदा प्रावधानों को देखते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि दिल्ली के मामले में उपराज्यपाल का निर्णय ही सर्वोपरि माना जाएगा।
            यह पहली बार नहीं है, जब अरविंद केजरीवाल को मुंह की खानी पड़ी है। जिस दिन से आम आदमी पार्टी वजूद में आयी है, उस दिन से उसके तानाशाह संयोजक अरविंद केजरीवाल नित्य नई नौटंकी करते रहते हैं। जिसका मकसद केवल अखबार और टेलीविजन की सुर्खिया बटोरना है। ठोस काम करने में अरविंद का दिल कभी नहीं लगा। टाटा समूह की अपनी पहली नौकरी से लेकर आज तक अरविंद केजरीवाल ने नाहक विवाद खड़ा करना सीखा है। काम करने वाले शोर नहीं किया करते। विपरीत परिस्थितियों में भी काम कर ले जाते हैं। अरविंद को अगर दिल्लीवासियों की चिंता होती, तो उनकी समस्याओं को हल करते। पर आज दिल्ली देश की राजधानी होने के बावजूद निरंतर नारकीय स्थिति की ओर बढ़ती जा रही है। हर दिन दिल्लीवासी शीला दीक्षित के शासन को याद करते हैं। अरविंद केजरीवाल को तो राष्ट्रीय नेता बनने की हड़बड़ी है| इसलिए कभी पंजाब, कभी बंगाल, कभी बिहार, कभी गुजरात, कभी गोवा जाकर नए-नए शगूफे छोड़ते रहते हैं। जाहिर है कि जिन राज्यों में जनता पारंपरिक राजनैतिक दलों से नाखुश है, उन राज्यों में सपने दिखाना केजरीवाल के लिए बहुत आसान होता है। वे आसमान से तारे तोड़ लाने के वायदे करते हैं, पर भूल जाते हैं कि दिल्लीवासियों से चुनाव के पहले उन्होंने क्या-क्या वादे किए थे और आज उनमें से कितने पूरे हुए? वैसे दावा करने को केजरीवाल सरकार सैकड़ों करोड़ रूपए के विज्ञापन छपवा चुकी है।
            नवजोत सिंह सिद्धू ने भी केजरीवाल के मुंह पर करारा तमाचा जड़ा है। जिस सिद्धू को अपनी पार्टी में लेने के लिए केजरीवाल पलक-पांवड़े बिछाए बैठे थे, उसने एक ही बयान में यह साफ कर दिया कि केजरीवाल की न तो कोई विचारधारा है, न उनमें जनसेवा की कोई भावना। कुल मिलाकर केजरीवाल का फलसफा ‘मैं और मेरे लिए’ के आगे नहीं जाता। सिद्धू को चाहिए कि अगर वे भाजपा और कांग्रेस से नाखुश हैं, तो पूरे पंजाब में अपने प्रत्याशी खड़े करें और केजरीवाल की तानाशाही से त्रस्त, परिवर्तन के हामी, सभी लोगों को अपने साथ जोड़ लें। इससे कम से कम केजरीवाल पंजाब की जनता को गुमराह तो नहीं कर पाएंगे।
            ऐसा नहीं है कि केजरीवाल की तरह स्वार्थी, दोहरे चरित्र वाला और झूठ बोलने वाला का कोई दूसरा नेता नहीं है। राजनीति में तो अब यह आम बात हो गई है। फर्क इस बात का है कि केजरीवाल ने पिछले 5 वर्षों में ताल ठोककर ये घोषणा की थी कि उनसे अच्छा कोई नेता नहीं, कोई दल नहीं और कोई कार्यकर्ता नहीं। कार्यकर्ताओं की तो छोड़ो केजरीवाल मंत्रीमंडल के एक-एक मंत्री धीरे-धीरे किसी न किसी घोटाले या चारित्रिक पतन के मामले में कानून की गिरफ्त में आते जा रहे हैं। कहां गया केजरीवाल का वो दावा कि जब ये कहा गया था कि उनके दल में केवल ईमानदार और चरित्रवान लोगों को ही टिकट मिलेगा। हम तो केजरीवाल से हर टीवी बहस में ये लगातार कहते आए कि जिन आदर्शों की बात तुम कर रहे हो, वैसे इंसान खोजने बैकुंठ धाम जाना पड़ेगा। पृथ्वी पर तो ऐसा कोई मिलेगा नहीं। फिर भी केजरीवाल का दावा था कि लोकपाल का चयन उनके जैसे मेगासेसे अवार्ड जीते हुए लोग ही करें। तभी देश भ्रष्टाचार से मुक्त हो पाएगा। ये तो गनीमत है कि केजरीवाल के विधायक और मंत्री ही बेनकाब हो रहे हैं।
            अगर कहीं बंदर के हाथ में उस्तरा लग जाता, तो क्या होता? सोचिए वो स्थिति कि केजरीवाल जैसे लोग एक ऐसा लोकपाल बनाते, जो प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक के ऊपर होता और उसकी डिग्री केजरीवाल के कानून मंत्री रहे तोमर जैसी फर्जी पाई जाती। पर केजरीवाल के सुझाए कानून अनुसार वो लोकपाल देश में किसी को भी जेल भेज सकता था। केजरीवाल एंड पार्टी के ऐसे वाहियात और बचकाने आंदोलन का पहले दिन से मैंने पुरजोर विरोध किया। जब ये लोग अन्ना हजारे के साथ राजघाट धरने पर बैठे, तो मेंने इनके खिलाफ पर्चे छपवाकर राजघाट पर बंटवाए। ये बतलाते हुए कि इनकी निगाहें कहीं हैं और निशाना कहीं पर। उस वक्त कोई सुनने को तैयार नहीं था। दाऊद के एजेंट हो या भूमाफियाओं के दलाल, भ्रष्ट राजनेता हों या नंबर 2 की मोटी कमाई करने वाले फिल्मी सितारे। सबके सिर पर 2 तरह की टोपी होती थी, ‘मैं अन्ना हूं’ या ‘मैं आम आदमी हूं’। आज उन सबसे पूछो कि केजरीवाल के बारे में क्या राय है, तो कहने में चूकेंगे नहीं कि हमसे आंकने में बहुत बड़ी गलती हो गई।
            जस्टिस संतोष हेगड़े हों, अन्ना हजारे हों, प्रशांत भूषण हों, योगेंद्र यादव हों, किरण बेदी हों और ऐसे तमाम नामी लोग, जिन्होंने केजरीवाल के साथ कंधे से कंधा लगाकर लोकपाल की लड़ाई लड़ी, आज वे सब केजरीवाल के गलत आचरण के कारण उनके विरोध में खड़े हैं। बिछड़े सभी बारी-बारी। पंजाब की जनता को केजरीवाल का चरित्र अब तक समझ में आ जाना चाहिए, वरना दिल्लीवासियों की तरह वे भी रोते, कलपते नजर आएंगे।

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