Monday, December 12, 2016

भारत सुंदर कैसे बने?



नोटबंदी में मीडिया ऐसा उलझा है कि दूसरे मुद्दों पर बात ही नहीं हो रही। प्रधानमंत्री नरेन्द मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान बड़े जोर-शोर से शुरू किया था। देश की हर मशहूर हस्ती झाडू लेकर सड़क पर उतर गयी थी। पर आज क्या हो रहा है? क्या देश साफ हुआ ? दूर दराज की छोड़िये देश की राजधानी दिल्ली के हर इलाके में कूड़े के पहाड खड़े हैं, चाहे वह खानपुर-बदरपुर का इलाका हो या नारायण का, रोहिणी का हो, वसंत कुञ्ज का या उत्तरी व पूर्वी दिल्ली के क्षेत्र। जहां चले जाओ सड़कों के  किनारे कूड़े के ढेर लगे पडे हैं। यही हाल बाकी देश का भी है। रेलवे के प्लेटफार्म हों, बस अड्डे हों, बाजार हों या रिहायशी बस्तियां सब ओर कूड़े का साम्राज्य फैला पड़ा है। कौन सुध लेगा इसकी ? कहाँ गयी वो मशहूर हस्तियां जो झाड़ू लेकर फोटो खिंचवा रही थीं ?

प्रधानमंत्री का यह विचार और प्रयास सराहनीय है। क्योंकि सफाई हर गरीब और अमीर के लिए फायदे का सौदा है। गंदगी कहीं भी सबको बीमार करती है। भारतीय समाज में एक बुराई रही कि हमने सफाई का काम एक वर्ण विशेष पर छोड़ दिया। बाकी के तीन वर्ण गंदगी करने के लिए स्वतंत्र जीवन जीते रहे। नतीजा ये कि सफाई करना हम अपनी तौहीन मानते हैं । यही कारण है कि अपना घर तो हम साफ कर लेते हैं, पर दरवाजे के सामने का कूड़ा साफ करने में हमारी नाक कटती है। नतीजतन हमारे बच्चे जिस परिवेश में खेलते हैं, वो उनकी सेहत के लिए अच्छा नहीं होता। हम जब अपने घर, दफ्तर या दुकान पर आते-जाते हैं तो गंदगी से बच-बचकर चलना पड़ता है।  फिर भी हमें अपने कर्तव्य का एहसास क्यों नहीं होता ?

इसका कारण यह है कि हम भेड़ प्रवृत्ति के लोग हैं। अगर कोई डंडा मारे तो हम चल पड़ते है। जिधर हाँके उधर चल पडते हैं। इसलिए स्वच्छ भारत अभियान की विफलता का दोष भी मैं नरेन्द भाई मोदी पर ही थोपना चाहता हूँ। क्योंकि अगर वो चाहें तो उनका यह सुंदर अभियान सफल हो सकता है।

नोट बंदी के मामले में नरेन्द्र भाई ने जिस तरह आम आदमी को समझाया है कि यह उसके फायदे का काम हो रहा है वह बेमिसाल है। आदमी लाइनों में धक्के खा रहा है और उसके काम रूक रहे हैं, फिर भी गीता ज्ञान की तरह यही कहता है कि जो हो रहा है अच्छा हो रहा है और जो आगे होगा वो भी अच्छा ही होगा। अगर नोट बंदी पर मोदी जी इतनी कुशलता से आम आदमी को अपनी बात समझा सकते हैं तो सफाई रखने के लिए क्यों नहीं प्रेरित करते?

मैने पहले भी एक बार लिखा है कि सप्ताह में एक दिन अचानक माननीय प्रधानमंत्री जी को देश के किसी भी हिस्से में, जहां वे उस दिन सफर कर रहे हों, औचक निरीक्षण करना चाहिए। गंदगी रखने वालों को वहीं सजा दें और खुद झाड़ू लेकर सफाई शुरू करवायें। अगर ऐसा वे हफ्ते में एक घंटा भी करते हैं, तो देश में सफाई रखने का एक माहौल बन जायेगा। हर ओर अधिकारियों में डर बना रहेगा कि पता नहीं कब और कहां प्रधानमंत्री आ धमकें ।  जनता में भी उत्साह बना रहेगा कि वो सफाई अभियान में बढ-चढकर भाग ले।

देश में लाखों सरकारी मुलाजिम सेवानिवृत्त होकर पेशन ले रहे हैं। उन्हें अपने -अपने क्षेत्र की सफाई के लिए जिम्मेदार ठहराना चाहिए। इसी तरह सभी स्कूल, कालेजों को अपने परिवेश की सफाई पर ध्यान देने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए। मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारों को भी ये आदेश दिये जाने चाहिए कि वे अपने परिवेश को अपने खर्च पर साफ रखें। अन्यथा उनको मिलने वाली आयकर की छूट खत्म कर दी जायेगी। इसी तरह हर संस्थान को चाहे वो वकीलों का संगठन हो, चाहे व्यापार मंडल और चाहे कोई अन्य कामगार संगठन सबको अपनी परिवेश की सफाई के लिए जिम्मेदार ठहराना होगा। सफाई न रखने पर सजा का और साफ रखने पर प्रोत्साहन का प्रावधान भी होना चाहिए। इस तरह शुरू में जब लगातार डंडा चलेगा तब जाकर लोगों की आदत बदलेगी।

इसके साथ ही जरूरी है कचरे के निस्तारण की माकूल व्यवस्था। इसकी आज भारी कमी है। देश-दुनिया में ठोस कचरा निस्तारण के विशेषज्ञों की  भरमार है। जिन्हें इस समस्या के हल पर लगा देना चाहिए। इसके साथ ही प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड-चाहे वो केन्द्र के हों या राज्यों के, उन्हें सक्रिय करने की जरूरत है। आज वे भारी भ्रष्टाचार से ग्रस्त हैं, इसलिए अपने कर्तव्यों का निर्वाहन नहीं करते। नदियों का प्रदूषण उनकी ही लापरवाही के कारण ही हो रहा है। वरना मौजूदा कानूनों में इतना दम है कि कोई नदी, तालाब या धरती को इतनी बेदर्दी से प्रदूषित नहीं कर सकता।

इसलिए प्रधानमंत्री जी हर विभागाध्यक्ष को सफाई के लिए जिम्मेदार ठहरायें और सेवा निवृत्त कर्मचारियों और छात्रों को निगरानी के लिए सक्रिय करें। तभी यह अभियान सिरे चढ सकता है। जिसका लाभ हर भारतवासी को मिलेगा और फिर सुंदर आत्मा वाला ये देश, सुदर शरीर वाला भी बन जायेगा।

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