Monday, April 23, 2018

छोटी पहल, बड़ी बात

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कहा था कि दिल्ली से विकास योजना का 100 रूपये जमीन तक पहुंचते-पहुंचते मात्र 14 रूपये रह जाते हैं, शेष भ्रष्टाचार की बलि चढ़ जाते हैं। 32 साल बाद वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी  यही बात दोहराई और  कोशिश की भ्रष्टाचार रूके और लोगों तक उनका हक पहुंचे। पर ये लड़ाई इतनी आसान नहीं है।

राजनीति के महान आचार्य चाणक्य पंडित ने कहा था कि व्यवस्था कोई भी हो, अगर उसके चलाने वाले ईमानदार नहीं हैं, तो वह व्यवस्था विफल हो जाती है। सभी प्रांतों के मुख्यमंत्री चाहते हैं कि उनका मतदाता उनके शासन से संतुष्ट रहे। इसके लिए वे तमाम योजनाऐं बनाते हैं और निर्देश जारी करते हैं। पर अगर जिले और तहसील स्तर की प्रशासनिक ईकाई अपनी जिम्मेदारी को ईमानदारी से अंजाम न दें, तो जनता में हताशा फैलती है। व्यवस्था ही ऐसी हो गई है कि अधिकतर अधिकारी कुछ नया करने से बचते हैं। जो ढर्रा चल रहा है, उसे ही चलाओ, फालतू क्यों पचड़े में पड़ते हो। पर जो नदी की धारा के विरूद्ध चलने की हिम्मत दिखाते हैं, वे ही कुछ नया कर पाते हैं।

उ.प्र. के मथुरा जिले की छाता तहसील वर्षों से उपेक्षित पड़ी थी। पिछले एक वर्ष में इसका कायापलट हो गया है। आज इसे प्रदेश की सर्वश्रेष्ठ तहसील का दर्जा प्राप्त हो चुका है, जहां आम नागरिकों को जाकर ऐसा नहीं लगता कि वे किसी सरकारी दफ्तर में आऐं हों, बल्कि ऐसा लगता है, मानो किसी कारर्पोरेट आफिस में आए हैं। यह संभव हुआ है, एक युवा आईएएस अधिकारी राजेन्द्र पैंसिया के प्रयास व जन सहयोग के कारण।

भगवान श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा में सारी दुनिया से तीर्थयात्री आते हैं। पर जिले की साफ सफाई सोचनीय है। वहीं राष्ट्रीय राजमार्ग-2 पर स्थित छाता तहसील में प्रवेश करते ही, आपको सुखद अनुभति होती है। जहां पहले ये भी नारकीय अवस्था को प्राप्त था। अब सुंदर गेट, दोनों ओर पार्किंग एवं सुंदर बगीचे का निर्माण किया गया है। पहले ये पता ही नहीं चलता था कि हम किसी दफ्तर में आऐं हैं और कहां-कौन अधिकारी बैठा है। लेकिन अब तहसील भवन में एक सक्रिय पूछताछ केंद्र स्थापित किया गया है, जिसमें सभी कर्मचारियों व अधिकारियों के नाम, पदनाम, मोबाईल नंबर इत्यादि की सूची भी चस्पा है। अब जनता को यहां भटकना नहीं पड़ता।

जहां पहले चारों तरफ कूड़े के ढेर और पान की पीक से रंगी दीवारे दिखाई देती थी, वहीं अब दीवारों पर भारतीय संस्कृति, धरोहरों, ब्रज संस्कृति आदि के फ्लैक्स एवं पेंटिंग लगाई गई हैं। पूरे परिसर में प्रतिदिन साफ-सफाई को प्राथमिकता दी जाती है। जगह-जगह कूड़ेदान रखवाये गये हैं।

पूरे तहसील में सुरक्षा की दृष्टि से 32 सीसीटीवी कैमरे लगवाये गये हैं। पेयजल के लिए आर.ओ. सिस्टम लगवाया गया है। महिला और पुरूषों के लिए अलग अलग शौचलाय बनवाये गऐ हैं। चाहरदीवारों को उंचा किया गया है। बंदरों के आतंक से बचने के लिए लोहे की ग्रिल आदि लगवाये गईं हैं। इस पूरे कायाकल्प में सरकार से कोई वित्तीय सहायता नहीं ली गई। राजेन्द्र पैंसिया ने स्थानीय व्यापारियों के आर्थिक सहयोग से ये कायाकल्प की है। इस तहसील को आई एस ओ सर्टिफिकेशन भी मिला है।

उत्तर प्रदेश राजस्व परिषद के अध्यक्ष प्रवीर कुमार ने पैंसिया का उत्साहवर्धन किया है और अब वे मुख्यमंत्री योगी जी से संस्तुति कर रहे हैं कि छाता का मॉडल पूरे प्रदेश में अपनाया जाय।

ग्राम पंचायत का कार्यालय हो, ब्लाक का हो, तहसील का हो या जिला स्तर का आम जनता का साबका इन्ही कार्यालयों से पड़ता है। जनता की निगाह में यही सरकार हैं । प्रदेश की राजधानी या देश की राजधानी तक तो विरले ही जा पाते हैं। इसलिए ये दफ्तर किसी भी सरकार का चेहरा होते हैं। अगर यहां आम जनता को सम्मान और समाधान मिल जाता है, तो उसकी निगाह में सरकार अच्छा काम कर रही होती है। इसके विपरीत यदि इन कार्यालयों में जनता को लाल फीता शाही वाला रवैया, नारकीय रखरखाव, भ्रष्ट नौकरशाही से पाला पड़े, तो जनता की निगाह में प्रदेश की सरकार निकम्मी मानी जाती है। इसलिए हर मुख्यमंत्री अपने प्रांत के इन कार्यालयों को लेकर बहुत चिंतित रहते हैं। पर हालात बदलने के लिए कुछ ठोस कर नहीं पाते। अकेला चना क्या भाड़ तोड़ेगा। ऐसे में किसी भी मुख्यमंत्री को वह अधिकारी बहुत अच्छा लगता है, जो अपना काम निष्ठा और मजबूती से करता है। इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि योगी सरकार, छाता तहसील को सुधारने में लगे सभी लोगों को प्रोत्साहित करेगी और इस माडल को बाकी जिलों में लागू करने के लिए अपने अफसरों को स्पष्ट और कड़े निर्देंश देगी। साथ ही राजेन्द्र पैंसिया जैसे युवा अधिकारियों और भी चुनौतीपूर्णं काम सौंपेगी। जिससे वे मुख्यमंत्री की ‘ब्रज विकास’ परियोजनाओं को निष्ठा से लागू कराने में, अपने अनुभव और योग्यता का प्रदर्शन कर सके।

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