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Monday, February 25, 2013

महाकुम्भ की व्यवस्था सराहनीय

इलाहाबाद का कुम्भ अब अपने अंतिम दौर में है। इस बार कुम्भ की व्यवस्थाओं को लेकर हर ओर उ0प्र0 शासन की वाहवाही हो रही है। हालांकि भाजपा नेता डा0 मुरली मनोहर जोशी ने कुम्भ के लिए केन्द्र सरकार से मिले सैंकड़ों करोड़ के अनुदान के दुरूपयोग की जांच का मुद्दा उठाया है। इतने बड़े आयोजन में इस तरह का आरोप लगना कोई असामान्य बात नहीं है। अगर घोटाला हुआ होगा तो जांच भी होगी और जांच होगी तो कुछ तथ्य बाहर भी आयेंगे। अभी हम उस पचड़े में नहीं पड़ना चाहते।
व्यवस्था में खामियां देखने की आदत वाले लोग चाहें विपक्ष में हों या मीडिया में, सबने एक सुर से इलाहाबाद कुम्भ के आयोजन की खूब तारीफ की है। मौनी अमावस्या को रेलवे स्टेशन पर हुए हादसे को अगर एक अप्रत्याशित दुःखद घटना माना जाऐ तो बाकी सब मामलों में कुम्भ मेला अब तक पूरी तरह सफल रहा है। उ0प्र0 सरकार का आरोप है कि रेलवे स्टेशन का हादसा रेल मंत्रालय की लापरवाही से हुआ, जबकि रेल मंत्रालय इसके लिए मेला प्रशासन को जिम्मेदार ठहराता है। इसके अलावा कोई ऐसी महत्वपूर्ण घटना नहीं हुई जहाँ जान और माल की हानि हुई हो। यह तारीफ की बात है। वरना करोड़ों लोगों के जमावाड़े को अनुशासित और नियन्त्रित रखना एक बहुत बड़ी चुनौती थी। जिसके लिए मेला प्रभारी आजम खान, उ0प्र0 के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उ0प्र0 के मुख्य सचिव जावेद उस्मानी विशेषरूप से बधाई के पात्र हैं। जिन्होंने रात-दिन बड़ी तत्परता से अपने अफसरों की टीम को निर्देश दिये और उनके काम पर निगरानी रखी।
इससे यह सिद्ध होता है कि कोई भी आयोजन क्यों न हो, अगर आयोजक कमर कस लें और संभावित समस्याओं के हल पहले ही ढूंड लें, तो इन सामाजिक उत्सवों और मेलों में कोई अप्रिय हादसे होए ही न। इसके लिए जरूरत होती है ऐसे अफसरों की टीम की, जिसे इस तरह के आयोजन का पूर्व अनुभव हो। जरूरत होती है ऐसी ट्रैफिक व्यवस्था की जो निर्बाध गति से चलता रहे। इसके साथ ही जरूरत होती है ऐसी एजेंसियों की जो मेलों में जमा होने वाले कूड़े-करकट और गन्दगी को आनन-फानन में साफ कर दे ताकि वहाँ गन्दगी न फैले और बीमारी फैलने की संभावना न रहे। इसके साथ ही शहर में जब करोड़ों लोग बाहर से आते हैं, तो फल सब्जी, दूध, राशन आदि की मांग अचानक हजारों गुना बढ़ जाती है। ऐसे में दुकानदार दाम बढ़ाकर तीर्थयात्रियों को निचोड़ने में कसर नहीं रखते। पर इतने बड़े आयोजन के बावजूद इलाहाबाद के कुम्भ के कारण इलाहाबाद शहर में कहीं कोई अभाव नहीं रहा और दाम भी बाजिव रहे।  इन सब मामलो में इस बार के कुंभ की व्यवस्थाओं की काफी तारीफ हुई है।
जहाँ एक तरफ प्रशासन ने कुम्भ मेले के आयोजन में कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी, वहीं देश के नामी मठाधीशों ने अपने-अपने सम्प्रदाय के अखाड़े गाढ़कर कुंभ को काफी रंग-बिरंगा बना दिया। कुछ अखाड़े तो पाँच सितारा होटलों को भी मात कर रहे हैं। जहाँ सबसे ज्यादा विदेशी और अप्रवासी आकर ठहर रहे हैं। इतने विशाल आयोजन में बच्चों के अपहरण और महिलाओं के साथ अशोभनीय व्यवहार की काफी संभावना रहती है। लेकिन उ0प्र0 पुलिस की मुस्तैदी से ऐसी घटनाओं की यहाँ झलक देखने को नहीं मिली।
पिछले बारह सालों में देश का टी.वी. मीडिया कई गुना बढ़ गया है। इसलिए इस बार का विशेष आकर्षण यह रहा कि पचासों चैनलों ने रात-दिन इलाहाबाद कुम्भ के हर पल को खूब विस्तार से प्रस्तुत किया। इसका असर यह हुआ कि सीमांत भावना वाले वे लोग जो प्रायः ऐसे धार्मिक मेले उत्सवों में जाने से घबराते हैं, बड़ी तादाद में इलाहाबाद कुम्भ नहाने पहुँचे। खासकर युवाओं में इसका भारी क्रेज देखा गया। देश के कोने-कोने से युवा व अन्य लोग संगम पर डुबकी लगाने आये।
यह उल्लेख करना अनुचित न होगा कि देश के मन्दिरों व अन्य तीर्थस्थलों पर मेलों और पर्वों के समय बदइंतजामी के कारण अक्सर बड़ी-बड़ी दुर्घटनाऐं होती रहती हैं, जिनमें सैंकड़ों जाने चली जाती हैं। पर फिर भी स्थानीय प्रशासन कोई सबक नहीं सीखता। जिस तरह भारत सरकार ने आपदा प्रबन्धन बोर्ड़ बनाया है उसी तरह देश को एक उत्सव प्रबन्धन बोर्ड की भी जरूरत है। जिसमें ऐसे योग्य और अनुभवी अधिकारी विभिन्न राज्यों से बुलाकर तैनात किये जायें। यह बोर्ड मेले आयोजनों की आचार संहिता तैयार करें और कुछ मानक स्थापित करें। जिनकी अनुपालना करना हर जिले व राज्य में अनिवार्य किया जाये। इससे न सिर्फ हादसे होने से बचेंगे, बल्कि पूरे देश में उत्सवों के प्रबन्धन की कार्यक्षमता में गुणात्मक सुधार आयेगा। इसके साथ ही ऐसी परिस्थितियों में राज्य सरकारों को अनुभवहीन अधिकारियों के निर्णयों पर निर्भर रहना नहीं पड़ेगा। उनके पास हमेशा कुशल और अनुभवी सलाह मौजूद रहेगी। इसके साथ ही मेलों के आयोजन में काम आने वाले ढांचों को स्थायी, फोल्डिंग और व्यवहारिक बनाने की जरूरत है। जिससे साधनों का दुरूपयोग बचे और हर मेले के आयोजन में एक सुघड़ता दिखाई दे। फिलहाल इलाहाबाद कुंभ में भारी मात्रा में बांस, बल्ली और रस्सी का सहारा लिया गया है। जबकि इस सबके लिए प्री-फैब्रिकेटेड ढांचे तैयार किये जा सकते थे। कई दशकों से गणतंत्र दिवस की परेड की तैयार ऐसे ही बांस, बल्ली गाढ़कर की जाती थी। पर पिछले कुछ वर्षों से इसमें गुणात्मक परिवर्तन आया है। अब राजपथ पर लगने वाले स्टॉल प्री-फैब्रिकेटेड होते हैं। वे जल्दी लगते हैं। टिकाऊ और मजबूत होते हैं और जल्दी ही उन्हें समेटा जा सकता है। इससे पैसे की भी भारी बचत होगी।