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Monday, January 4, 2016

पाकिस्तानी क्यों बना हिंदुस्तानी ?

प्रसिद्ध गायक अदनान सामी 1 जनवरी को पाकिस्तान की नागरिकता छोड़कर भारत के नागरिक बन गए। यह अपने आप में एक महत्वपूर्ण घटना है और उन सब लोगों के मुंह पर तमाचा है, जो भारत में असहिष्णुता का हल्ला मचाए हुए थे। जिनमें फिल्मी सितारे शाहरूख खान से लेकर सत्ता के गलियारों से खैरात बटोरने वाले कितने ही नामी कलाकार, साहित्यकार और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल थे। जिन्होंने अपने राजनैतिक आकाओं के इशारे पर बिहार चुनाव से पहले इतना तूफान मचाया कि लगा भारत में कोई मुसलमान सुरक्षित ही नहीं है। जबकि अगर ऐसा होता तो एक मशहूर गायक साधन संपन्न पाकिस्तानी अदनान सामी पाकिस्तान की अपनी नागरिकता छोड़कर भारत का नागरिक क्यों बनता ? साफ जाहिर है कि भारत में उनको पाकिस्तान से ज्यादा सुरक्षा, अमन, चैन, शोहरत और पैसा मिल रहा है। कोई अपना वतन छोड़कर दूसरे वतन में दो ही स्थितियों में पनाह लेता है। पहला तो जब उसके मुल्क में हालात रहने के काबिल न हों और दूसरा तब जब दूसरे मुल्क में हालात और आगे बढ़ने के अवसर अपने मुल्क से ज्यादा बेहतर हों, जैसे तमाम एशियाई लोग अमेरिका की नागरिकता ले लेते हैं। जाहिर है कि अपनी जिंदगी का दो तिहाई से ज्यादा हिस्सा पाकिस्तान में ऐश-ओ-आराम के साथ गुजार चुके अदनान सामी को पाकिस्तानी बने रहने में कोई तकलीफ नहीं थी। वहां भी उनको इज्जत और शोहरत मिल रही थी। फिर भी उन्होंने हिंदुस्तान को अपना घर बनाया और नागरिकता का आवेदन दिया, तो इसलिए कि हिंदुस्तान के हालात और यहां आगे बढ़ने का मौका उन्हें पाकिस्तान से बेहतर लगा।

 अब हर उस हिंदुस्तानी से सवाल पूछना चाहिए, जिसने अवार्ड लौटाने से लेकर तमाम तरह के प्रदर्शन और बयानबाजियां करके भारत की छवि पूरी दुनिया में खराब करने की हरकत की। उनसे पूछना चाहिए कि बिहार चुनाव के पहले देश के हालात में ऐसा क्या हो गया था कि शाहरूख खान जैसे राजसी जीवन जीने वाले को भी हिंदुस्तान में रहना खतरनाक लगने लगा था ? बिहार चुनाव के बाद अचानक ये सारे मेढ़क खामोश क्यों हो गए ? हिंदुस्तान के हालात में ऐसा क्या बदल गया कि अब इन्हें हिंदुस्तान फिर से रहने लायक लगने लगा है ? क्योंकि अब न तो असहिष्णुता के नाम पर कोई बयान आ रहा है, न कोई प्रदर्शन हो रहा है और न ही कोई अवार्ड लौटाए जा रहे हैं।


हमने इस कालम में तब भी लिखा था और आज फिर दोहरा रहे हैं कि जिन लोगों ने ऐसा शोर मचाया, उनके जीवन को भारत में कोई खतरा नहीं था। बस उन्हें तो अपने राजनैतिक आकाओं का हुक्म बजाना था। उन आकाओं का, जिन्होंने इन लोगों को अपने वक्त में तमाम फायदों और तमगो से नवाजा था। इसलिए नहीं कि ये अपने क्षेत्र के अव्वल दर्जे के लोग थे। इनसे भी ज्यादा काबिल और हुनरमंद लोगों की देश में एक लंबी फेहरिस्त तब भी मौजूद थी और आज भी मौजूद है। पर उन्हें कभी कोई अवार्ड नहीं दिया गया, क्योंकि उन्होंने अपने हुनर को बढ़ाने में जिंदगी खपा दी, पर सत्ताधीशों के तलवे नहीं चाटे। अक्सर ऐसे अवार्ड तो तलवा चाटने वालों को ही मिला करते हैं और जब इतने सालों तक आकाओं के रहमो-करम पर पर ऐश लूटा हो, तो उनकी राजनैतिक मजबूरी के वक्त ‘फर्ज चुकाना’ तो इनके लिए जायज था। इसीलिए नाहक शोर मचाया गया। हिंदुस्तान से ज्यादा सहिष्णुता दुनिया के किसी देश में आज भी नहीं मिलती। गंगा-जमुनी तहजीब का ये वो देश है, जो पिछले 2 हजार साल से दुनिया के हर कोने से आकर यहां बसने वालों को इज्जत से जीने के हक देता आया है। उन्हें न सिर्फ उनके मजहब को मानने और उसका खुला प्रदर्शन करने की छूट देता है, बल्कि उन्हें यहां अपने धर्म का प्रचार करने से भी नहीं रोका जाता। इन अवार्ड लौटाने वालों से पूछो कि मस्जिदों के ऊपर सुबह 5 बजे लाउडस्पीकर जिस तरह से गैरमुस्लिम इलाकों में नमाज का शोर मचाते हैं, वैसा क्या गैरमुसलमान किसी भी मुसलमानी देश में कहीं भी कर सकते हैं ?

 अदनान सामी ने भारत की नागरिकता लेते हुए इस बात को पुरजोर तरीके से कहा कि भारत से ज्यादा सहिष्णु देश कोई दूसरा नहीं है। इस बात के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की सरकार को बधाई दी जानी चाहिए कि उन्होंने एक ऐसे पाकिस्तानी को भारत की नागरिकता दी, जिसकी परवरिश पाकिस्तान की फौज के उस आलाअफसर के घर हुई, जिसने भारत-पाक युद्ध में भारत की सेना को अच्छी खासी क्षति पहुंचाई थी। जाहिर है कि अदनान की परवरिश भारत विरोधी माहौल में हुई होगी, जैसे कि आज हर पाकिस्तानी बच्चे की होती है। पर जब वो बड़ा होता है और बिना कठमुल्ले दबाव के खुली नजर से हिंदुस्तानी की तरफ देखता है, तो उसे एहसास होता है कि हिंदुस्तान के खिलाफ जो जहर उसे घुट्टी में पिलाया गया, उसमें कोई हकीकत नहीं थी, वह झूठ का अंबार था। अब जबकि भारत के प्रधानमंत्री ने अचानक लाहौर जाकर भारत की सहृदयता का एक और परिचय दिया है, तो कम से कम भारत के मुसलमानों को तो इस बात का बीड़ा उठा ही लेना चाहिए कि असहिष्णुता की बात करने वालों को आईना दिखा दें, ताकि फिर कोई भारत की छवि खराब करने की देशद्रोही हरकत न सके।