Showing posts with label Big Boss. Show all posts
Showing posts with label Big Boss. Show all posts

Monday, January 16, 2012

बिग बॉस में नया बवाल

पोर्नोग्राफी या अश्लील साहित्य या वास्तविक सैक्स पर आधारित कामोत्तोजक फिल्मों के कारोबार से जुड़ी दुनिया भर में मशहूर भारतीय-कनाडाई मूल की कामोत्तोजक सिने कलाकार सुश्री सनी लिओन ने भारतीय टेलीविजन के विवादास्पद शो ‘बिग बॉस’ में आकर एक नया बवाल पैदा कर दिया है। जिस तरह इस महिला को इस शो में लाकर महिमा मण्डित किया गया उससे उसकी कामोत्तोजक वेबसाइट की सैक्स बाजार में माँग अचानक कई लाख गुना बढ़ गयी। इससे उत्साहित सनी लिओन का शो में दावा था कि अब वे इस शो की आमदनी से भी कई सौ गुना ज्यादा कमा रही हैं। ऐसा सनी लिओन ने तब कहा जबकि शो के भागीदारों ने सनी लिओन के अतीत को अनदेखा करने की विनम्र पेशकश की। इस पर सनी लिओन का मुँहफट जवाब था कि मुझे अपने अतीत की चर्चा पर कोई चिन्ता नहीं है और मैं यह काम भविष्य में भी गर्व के साथ करती रहूँगी। मुझे अपने आलोचकों की कोई परवाह नहीं है।

‘ब्रॉडकास्टिंग कन्टैन्ट कम्प्लैन्ट काउंसिल’ में जब बिग बॉस दिखाने वाले चैनल के विरूद्ध सनी लिओन की मार्फत पोर्नोग्राफी को बढ़ावा देने की शिकायत की गयी तो भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष न्यायमूर्ति माकण्र्डेय काटजू सनी लिओन की रक्षा में खड़े हो गये। उनका कहना था कि जनता को सनी लिओन के अतीत को लेकर इतना उत्तेजित नहीं होना चाहिये। जबकि हमारा इतिहास गवाह है कि आम्रपाली जैसी वैश्या भगवान बुद्ध के सम्पर्क में आकर बौद्ध भिक्षुणी बन गयी थी। उधर मैेरी मैग्डालेन नामकी वैश्या भी ईसा मसीह के सम्पर्क में आकर उनकी आध्यात्मिक शिष्या बन गयी थी। यह तुलना सही नहीं है। आम्रपाली और मैरी को जब सत्संग मिला तो उनका हृदय परिवर्तन हो गया। हरि को भजे सो हरि का होये। जब कोई भक्त बन ही गया और आध्यात्मिक मार्ग पर चल पड़ा तो उसके अतीत की कोई सार्थकता नहीं रह जाती है। ऋषि वाल्मीकि को संसार उनके आध्यात्मिक जीवन और उनके द्वारा रचित संस्कृत रामायण के माध्यम से जानता है न कि उनके उस अतीत से जब वे डाकू थे। जबकि सनी लिओन ने न तो आध्यात्मिक शिष्य बनना स्वीकार किया है और न ही वे वाल्मीकि ऋषि की तरह संत बनी हैं। वे तो डंके की चोट पर अपने सैक्स कारोबार की दुनिया भर में बढ़-चढ़ कर मार्केटिंग कर रही हैं । समझ में नहीं आता कि ऐसी महिला के बारे में हुई शिकायत पर न्यायमूर्ति काटजू इतने उखड़ क्यों गये ? क्यूँ वे बढ़-‘चढ़ कर सनी लिओन की रक्षा में उतरे ?

जबकि अभिव्यक्ति की आजादी और मीडिया के आचरण को लेकर लगातार उनके पास हजारों ऐसी शिकायतें आती हैं, जो इससे कहीं ज्यादा संवेदनशील मुद्दों को उठाती हैं। ऐसी शिकायतों का प्रेस काउंसिल में भण्डार लगा पड़ा है। उनको खंगालने में और उन पर कार्यवाही करने की जहमत क्यों नहीं उठायी जाती ? जबकि इन शिकायतों का सरोकार समाज के एक बड़े वर्ग से होता है। इस मामले में तो श्री काटजू के पास कोई शिकायत भी नहीं आयी थी। फिर वे क्यों इतने उत्तेजित हो गये कि उन्होंने सनी लिओन को सार्वजनिक रूप से बचाने का जिम्मा ले लिया। इससे वे क्या संदेश देना चाहते हैं ?

दरअसल ‘बिग बॉस’ जैसा फूहड़ टी वी शो मनोरंजन के नाम पर एक ऐसी संस्कृति परोस रहा है, जिससे समाज का अहित हो रहा है। एक घर में विभिन्न पृष्ठ भूमि के 12 लोगों को कैद करके रखना और उनके निजी व्यवहार को सार्वजनिक रूप से दिखाना बड़ी बेतुकी सी बात लगती है। एक करोड़ रूपया जीतने के लालच में ये लोग कुटिलता का आचरण करते हैं और एक दूसरे के साथ ऐसा भौंडा व्यवहार करते हैं, जो सभ्य समाज का हिस्सा नहीं है। यह एक काल्पनिक परिस्थिति है। ऐसा कब होता है जब इस तरह के लोगों को  मजबूरन शेष समाज से काटकर एक दड़बे में बन्द कर दिया जाये ? मसलन कोई हवाई दुर्घटना में बचे हुए यात्री किसी जंगल में फँस जाये या पानी का जहाज डूबने से उसके यात्री समुद्र में किसी निर्जन टापू पर अलग-थलग पड़ जायें। ऐसी विषम परिस्थिति में भी लोग ऐसा आचरण नहीं करते, जैसा बिग बॉस में दिखाया जाता है।

आपको याद होगा कि तीन दशक पहले अर्जेन्टीना की बर्फ से ढकी पहाड़ियों पर दुर्घटनाग्रस्त हुए हवाई जहाज के 35 यात्री 28 दिनों तक बर्फ में फँसे रहे थे। ठंड और भूख से बेहाल इन यात्रियों ने अनुकरणनीय मानवीय व्यवहार का प्रदर्शन किया था। जब परिस्थिति इतनी विकट हो गयी कि कोई विकल्प ही नहीं बचा तब इन्हें जहाज के मलबे में पड़ी लाशों को मजबूरन काट कर खाना पड़ा। इससे इनके मन में इतनी आत्म-ग्लानि पैदा हुई कि वे डिप्रेशन और मनोवैज्ञानिक बीमारियों का शिकार बन गये ।तब वेटिकन से पोप ने इनको इस कृत्य के लिये आम माफी देकर इन्हें दया का पात्र बताया था। कारगिल की बर्फ से ढकी पहाड़ियों पर तैनात हमारे फौजी हों या ओ एन जी सी के तेल निकालने के कूँए पर समुद्र में तैनात इंजीनियर या उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पर जाने वाले खोजी दल, नितांत अकेले रहकर भी यह समूह मानवीय व्यवहार खोते नहीं बल्कि अपने श्रेष्ठ गुणों का प्रदर्शन करते हैं। बिग बाॅस के घर में रहने वालों की तरह फूहड़ प्रदर्शन नहीं करते।

कितने आश्चर्य और दुर्भाग्य की बात है कि जिस देश में टेलीविजन का आगमन लोगों की शिक्षा, स्वस्थ मनोरंजन और आर्थिक विकास के लिये माहौल तैयार करने के उद्देश्य से किया गया था, वहाँ आज ‘बिग बाॅस’ जैसे कार्यक्रम समाज को पतन की ओर ले जा रहे हैं। उधर न्यायमूर्ति काटजू ने पदभार सँभालते ही पत्रकारों की योग्यता और विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किये थे। जिस पर मीडिया की तीखी प्रतिक्रिया हुई थी। पर हमने अपने इसी कॉलम में उनके कुछ विचारों का समर्थन किया था। पर सनी लिओन के मामले में अकारण कूद कर न्यायमूर्ति काटजू ने प्रेस परिषद के अध्यक्ष के नाते अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर जाकर जो टिप्पणी की है, उसका कोई अच्छा संदेश नहीं गया।