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Monday, October 10, 2016

भगवान भरोसे नागरिक उड्डयन मंत्रालय

अभी जेट एयरवेज और नागरिक विमानन मंत्रालय के घोटालों का तूफान थमा भी नहीं था कि एक नया मुद्दा सामने आया है। पहले जेट एयरवेज के 131 पायलेट बिना पायलेट प्रोफिशैंसी जांच के विमान उड़ाए जा रहे थे और लाखों यात्रियों की जान से खिलवाड़ कर रहे थे। यह मामला उजागर होने के बाद इन 131 पायलेटों को सस्पेंड किया गया और चेतावनी दी गई। यह एक अकेला ऐसा मामला नहीं है, जहां नागरिक उड्डयन मंत्रालय और उसके अधीन नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) की निजी एयरलाइंस के साथ सांठगांठ सामने आई हो। अब वो चाहे पायलेटों की प्रोफिशैंसी जांच हो या शुरूआत दौर में ही उनको विमान उड़ाने का लाइसेंस दिया जाना हो, हर जगह घोटाला है। मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी मानो आंख पर पट्टी बांधकर बैठे हैं। जैसी भी सिफारिश किसी भी निजी एयरलाइंस के मुखिया की तरफ से आती है, तो ये इन अधिकारियों के लिए फरमान से कम नहीं होती। उन्हें तो अपने इन आकाओं की हर बात को आंख मूंदकर मानना होता है। जाहिर है बिना मोटे फायदे के ऐसे गैर कानूनी काम कोइ क्यों करेगा?

उदाहरण के तौर पर एक अन्य निजी एयरलाइंस की महिला पायलेट सुश्री पारूल सचदेव ने शुरूआती दौर में ही अपनी शैक्षिक योग्यताओं को उस बोर्ड से दिखाया, जोकि भारत सरकार के द्वारा मान्यता प्राप्त ही नहीं था। अचंभे की बात है कि ये अधिकारी अपनी आंखों पर ऐसा चश्मा लगाते हैं कि इन्हें मान्यता प्राप्त संस्थाओं को जांचने का भी समय नहीं मिलता। इस महिला पायलेट ने मान्यता प्राप्त संस्थान केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) के नाम से मिलती-जुलती फर्जी संस्था केंद्रीय उच्च शिक्षा बोर्ड (सीबीएचई) के दस्तावेज जमा कराकर न सिर्फ पायलेट का लाइसेंस ले लिया, बल्कि कई सालों तक उस निजी एयरलाइंस का विमान उड़ाती रही और हजारों यात्रियों की जान खतरे में डालती रही।
 
ये मामला भी उजागर तब हुआ, जब कालचक्र समाचार ब्यूरो द्वारा मांगी गई आरटीआई के बाद मंत्रालय को मजबूरन सभी एयरलाइंसों के पायलेटों के लाइसेंस को जांचना पड़ा। तब इस महिला पायलेट को भी दंड मिला, पर आधा अधूरा। बजाय इसके कि इस जालसाजी की जुर्म में इस महिला पायलेट का लाइसेंस रद्द किया जाता और थाने में केस दर्ज होता, मौजूदा नागरिक उड्डयन सचिव श्री आर. एन. चैबे ने 16 सितंबर, 2016 के अपने आदेश में न जाने किस दबाव में इस महिला पायलेट को विमानन नियम 1937 की नियम संख्या-39(1) के तहत 5 साल के बजाय मात्र 2 साल के लिए ही सस्पेंड किया और आदेश दिया कि इन 2 सालों में वे सभी जरूरी कागजात ठीक कर लें। कैसा मजाक है ? अगर आपकी बुनियादी योग्यता ही सही नहीं है, तो आप लाइसेंस के हकदार कैसे बन जाते हैं ? अगर आपने गैर मान्यता प्राप्त संस्था का प्रमाण पत्र दिया है, तो क्या आपका प्रमाण पत्र स्वीकृत होना उचित था ? यदि नहीं, तो लाइसेंस का निरस्त होना ही सही न्याय होगा।
 
आप सबको मैंग्लौर हवाई हादसे की याद तो होगी। वह हादसा क्यों हुआ था ? अगर पायलेटों से बात की जाए तो उनका कहना है कि मैंग्लौर के हवाई अड्डे पर विमान उतारना हर किसी के बस का नहीं है। अगर आप थकान से चूर हो, ऐसे में आपको विमान उड़ाने की अनुमति नहीं मिलती है। जेट एयरवेज के लिए यह कानून भी मान्य नहीं है। जेट एयरवेज के एक वरिष्ठ पायलेट कैप्टन मनोज महाना, जो कि जेट एयरवेज में बतौर प्रशिक्षक भी कार्यरत् हैं, उन्होंने 3 सितंबर, 2015 की सुबह 8 बजे मुंबई से दिल्ली एक अतिरिक्त क्रू-मेंबर के नाते हवाई यात्रा की। दिनभर उन्होंने दिल्ली में कई सारी मीटिंग कीं और वापिस मुंबई शाम 5 बजे के विमान से ठीक उसी तरह अतिरिक्त क्रू-मेंबर के नाते मुंबई तक की यात्रा की। उसी रात 1.20 पर कैप्टन महाना ने मुंबई से हाॅगकाॅग की उड़ान बतौर कैप्टर के नाते भरी। यह विमान अगले दिन 4 सितंबर को भारतीय समयानुसार सुबह 9.40 पर हाॅगकाॅग में उतरा।  नागरिक विमानन नियमों के तहत किसी भी पायलेट को उड़ान भरने से पहले कम से कम 12 घंटे का विश्राम करना अनिवार्य है, जो कि कैप्टन महाना ने नहीं किया। यह इन नियमों के उल्लंघन का गंभीर मामला है। 

यह मामला जब कालचक्र समाचार ब्यूरो के हत्थे चढ़ा, तो हमारी लिखित शिकायत पर एक बहुत मोटी फाइल बनी। उस फाइल में हर एक अधिकारी ने तमाम नियम और कानूनों का हवाला देते हुए कैप्टन मनोज महाना को दोषी पाया और उनके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्यवाही करने की सलाह दी। ऐसा नहीं है कि कैप्टन महाना ने ये पहली बार किया हो, सितंबर, 2006 में भी उन्हें ऐसी ही गलती किए जाने पर दोषी पाया गया था और इनके खिलाफ कार्यवाही हुई थी।
 
नागरिक विमानन कानून के सैक्शन 7 व भारतीय विमान कानून 1934 के तहत 2 साल की सजा और 10 लाख रूपए के जुर्माने का प्रावधान है। जेट एयरवेज के इशारे पर चलने वाले नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने अपने आकाओं को खुश करने के लिए कैप्टन महाना को 1 मार्च, 2016 के अपने आदेश के तहत पहले 2 साल के बजाए 1 साल और फिर 1 साल के बजाए मात्र 6 महीने की सजा ही दी।
 
देश का एक बड़ा औद्योगिक घराना जीवीके प्रोजेक्ट्स भी कुछ संदेहास्पद सवालों के घेरे में है। यह औद्योगिक घराना भारत के एक प्रतिष्ठित हवाई अड्डे का संचालन करता है। नागरिक उड्डयन मंत्रालय के मौजूदा सचिव ने इस औद्योगिक घराने को ‘आउट आॅफ द वे‘ जाकर एक ऐसे कानून की अनदेखी कर दी है, जो बहुत ही गंभीर है। चाहे वो निजी एयरलाइन हो या हवाई अड्डे का प्रबंध करने वाली निजी कंपनी। उनके वरिष्ठ अधिकारियों की गृह मंत्रालय द्वारा सुरक्षा जांच होना अनिवार्य है। ये जिम्मेदारी हर उस निजी कंपनी की होती है, जो नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अधीन है।
 
उदाहरण के तौर पर आपको याद दिलाना चाहूंगा कि इसी काॅलम के माध्यम से हमने जेट एयरवेज के वरिष्ठ अधिकारी कैप्टन हामिद अली की सुरक्षा जांच के न होने का पर्दाफाश किया था। उसका नतीजा यह हुआ कि जेट एयरवेज ने कालचक्र समाचार ब्यूरो द्वारा नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अधिकारियों पर दबाव डाले जाने पर उस कैप्टन हामिद अली को रातों-रात अपने बोर्ड आॅफ डायरेक्टर के पद से हटाया। अब जीवीके ग्रुप के निदेशकों का भी कुछ ऐसा ही हाल है। ये निदेशक बिना अनिवार्य सुरक्षा जांच के कंपनी के बोर्ड पर बने रहे और नागरिक उड्डयन मंत्रालय आंख मूंदे खर्राटे भरता रहा। यहां पर फिर नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने इस कंपनी को ‘आउट आॅफ द वे‘ जा कर एक विशेष लाभ पहुंचाया और इस कंपनी व उसके निदेशक को मात्र चेतावनी देकर छोड़ दिया। ऐसा क्यों है कि मौजूदा नागरिक उड्डयन सचिव श्री चैबे सभी नियमों को ताक पर रखकर एक के बाद एक निजी एयरलाइंस या निजी कंपनी को सीधा फायदा पहुंचा रहे हैं ?
 
आज के दौर में जब हवाई यात्रा की संख्या काफी बढ़ गई है, तो नागरिक उड्डयन मंत्रालय की जिम्मेदारी भी कम नहीं हुई है। नागरिक उड्डयन मंत्रालय को अपना काम कानून के दायरे में रहकर ही करना चाहिए, न कि लाखों यात्रियों की जान से खिलवाड़ करना चाहिए। नहीं तो हर हवाई यात्रा करने वाले को विमान के पायलेट या मंत्रालय के अधिकारियों की इन बेईमानियो के चलते केवल भगवान भरोसे ही यात्रा करनी होगी।

Monday, August 15, 2016

कश्मीर की घाटी में तूफान: मीडिया की विफलता

कश्मीर की घाटी में जो बवाल हो रहा है, उसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार केंद्र सरकार की नाकारा मीडिया पाॅलिसी है। आज हालत ये है कि कश्मीर की घाटी में उपद्रव का संचालन पूरे तरीके से पाकिस्तान की आईएसआई के हाथ में है। जो सीमापार से गत 20 वर्षों में कश्मीरी युवाओं की ब्रेन वाॅशिंग करने में सफल रही है। आज यहां 10 साल के बच्चे के सिर पर जाली वाली टाॅपी और हाथ में पत्थर है। निशाने पर भारत की फौज। वही फौज, जिसने श्रीनगर की बाढ़ में सबसे ज्यादा राहत पहुंचाने का काम किया। तब न तो आईएसआई काम आयी और न ही पाकिस्तान की फौज। आज कश्मीर में भारत विरोधी माहौल बनाने का काम वहां का बुद्धिजीवी वर्ग, मीडिया, वकील, सामाजिक कार्यकर्ता और राजनेता कर रहे हैं। इन सबका एक ही नारा है - आज़ादी।

कोई इनसे यह नहीं पूछता कि किससे आज़ादी और कैसी आज़ादी ? जबकि हकीकत यह है कि कश्मीर के लोगों को भारतवासियों और पाकिस्तानियों से भी ज़्यादा आज़ादी मिली हुई है। भारत के किसी भी नागरिक को कश्मीर में संपत्ति खरीदने का अधिकार नहीं है। जबकि कश्मीर का कोई भी व्यक्ति हिंदुस्तान के किसी भी कोने में संपत्ति खरीद सकता है। नौकरी और व्यापार कर सकता है। यही कारण है कि चाहें गोवा के समुद्री तट हों या हिंदू और ईसाइयों के समुद्र तट पर बसे दर्जनों पारंपरिक नगर हों, हर ओर आपको कश्मीरी नौजवानों के एम्पोरियम नज़र आएंगे। देश की राजधानी दिल्ली से लेकर पूरे भारत में कश्मीरी खूब आर्थिक तरक्की कर रहे हैं। इज़्ज़त से जी रहे हैं। सरकारी नौकरियों एवं उच्च पदों पर तैनाती पा रहे हैं। इसके बावजूद खुलेआम भारत को गाली देते हैं।

जबकि दूसरी ओर पाकिस्तान में तबाही मची है। आपस में मारकाट हो रही है। सरकार विफल है। आर्थिक प्रगति का नाम नहीं है। पाकिस्तानी टीवी चैनलों पर वहां के अनेक बुद्धिजीवी यह कहते नहीं थकते कि पाकिस्तान किस मुंह से कश्मीर की बात करता है। जबकि वह खुद पूर्वी बंगाल को संभाल कर नहीं रख पाया। उसकी जगह बांग्लादेश बन गया। आज बलूचिस्तान बगावत का झंडा ऊंचा किए है और पाकिस्तान से आजादी चाहता है। हिंदुस्तान से गए हर मुसलमान को आज भी पाकिस्तान में मुजाहिर कह कर हिकारत से देखा जाता है। दुनिया का ऐसा कौन-सा मुल्क होगा, जो आपको तमाम रियायतें और सस्ती रसद दे और फिर भी आपसे गाली खाए।

पर ये बात कश्मीरियों को बताने वाला कोई नहीं। वहां का मीडिया बढ़ा-चढ़ाकर असंतोष की खबरें देता है। देश के टीवी चैनल भी कश्मीर की सड़कों पर बंद दुकानें और पसरा सन्नाटा दिखाते हैं। वहां खड़ी फौज के ट्रक और जवान दिखाते हैं। जबकि हकीकत यह है कि ये बंद का नाटक दोपहर तक ही चलता है। शाम होते ही घाटी के सारे लोग मस्ती करने डल झील, पार्कों और सैरगाहों पर निकल जाते हैं। खूब मौज-मस्ती करते हैं। सारे बाजार शाम को खुल जाते हैं। पर इसकी खबर कोई टीवी चैनल या अखबार नहीं दिखाता। न कोई ऐसी खबरें छापता और दिखाता है, जिससे कश्मीरियों को पाक अधिकृत कश्मीर या पाकिस्तान में हो रही बर्बादी की जानकारी मिले।

भारत सरकार ने फौज के स्तर पर तो कश्मीर में मोर्चा संभाला हुआ है, लेकिन मनोवैज्ञानिक युद्ध में सरकार बुरी तरह विफल हो रही है। भारत सरकार से अगर पूछो कि कश्मीर में आपकी प्रचार नीति क्या है, तो बोलेगी कि हमने दूरदर्शन को 500 करोड़ रूपए का स्पेशल कश्मीर पैकेज दे दिया है। ये कोई नहीं पूछता कि उस दूरदर्शन को देखता कौन है ?

मनोवैज्ञानिक लड़ाई जीतने के तमाम दूसरे तरीके हो सकते थे, जिन पर दिल्ली में कोई बात नहीं होती। सबसे तकलीफ की बात यह है कि कंेद्र सरकार का कोई भी कार्यालय कश्मीर में सक्रिय नहीं है। वेतन और भत्ते सब ले रहे हैं, पर अपनी ड्यूटी को अंजाम नहीं दे रहे। इससे उन लोगों को भारी क्षोभ है, जो इन विपरीत परिस्थितियों में वहां तैनात हैं और अपना मनोबल बनाए हुए हैं।

    आए दिन सत्तारूढ़ दल भाजपा और अन्य दलों के माध्यम से तमाम मुल्ला, मुसलमान नौजवान, बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ता प्रेस विज्ञप्तियां जारी करते हैं और अपने फोटो छपवाते हैं, जिनमें भारत के साथ एकजुटता दिखाई जाती है। ये लोग पाकिस्तान की बदहाली का जिक्र करना भी नहीं भूलते। यहां तक कि आग उगलने वाला मुस्लिम नेता और सांसद डा.असुद्दीन औवेसी तक पाकिस्तान में जाकर खुलेआम यह कहते हैं कि पाकिस्तान भारत के मुसलमानों के मामले में दखलंदाजी करना बंद कर दे और अपने मुल्क के हालात संभाले। क्यों नहीं ऐसे सारे मुसलमानों को भारत सरकार बड़ी तादाद में कश्मीर की घाटी में भेजती है ? जिससे ये वहां जाकर आवाम को अपनी खुशहाली और पाकिस्तान के मुसलमानों की बदहाली पर खुलकर जानकारी दें। जिससे कश्मीरियों को यकीन आए कि ये प्रचार भारत सरकार या हिंदू नेता नहीं कर रहे, बल्कि खुद उनके ही धर्मावलंबी उन्हें हकीकत बताने आए हैं।

    हाल ही के दिनों में प्रधानमंत्री मोदी ने एक बढ़िया काम किया है। उन्होंने जोरदार बयान दिया है कि कश्मीर की घाटी की बात नहीं, भारत तो अब आजाद पाक अधिकृत कश्मीर की आजादी की बात करेगा। आज तक किसी प्रधानमंत्री ने इस बात को इतनी जोरदारी से नहीं उठाया था। जबकि कानूनी स्थिति यह है कि कश्मीर का क्या हो, वो तो भविष्य की बात है। पर कश्मीर के एक बड़े भाग पर पाकिस्तान नाजायज कब्जा किए बैठा है। वहां का आवाम रात-दिन पाकिस्तान से आजादी के नारे लगा रहा है। ऐसे में भारत को हर मंच पर एक ही मांग उठानी चाहिए कि पाकिस्तान को कश्मीर से बाहर खदेड़ा जाए। चुनौती मुश्किल है। पिछली सरकारों ने कश्मीर की नीति में देश को लुटवाया ज्यादा है, पर अब भी देर नहीं हुई। सही समझ और कड़े इरादे से इस समस्या से निपटा जा सकता है।

Monday, March 28, 2016

अखिलेश यादव की छवि सुधरी

 साइकिल पर उत्तर प्रदेश की यात्रा करके 2012 में समाजवादी पार्टी को भारी विजय दिलाने वाले युवा नेता अखिलेश यादव सत्ता संभालने के बाद लगभग 2 वर्ष तक ऐसा कुछ नहीं कर पाए, जिससे वे अपने मतदाताओं की उम्मीदों पर खरा उतरते। जबकि उनमें उत्साह, ऊर्जा और सद्इच्छा की कमी नहीं थी। उनकी पार्टी के और परिवार के हालात कुछ ऐसे थे कि वे इन दोनों ही संदर्भों में बचपन वाले ‘टीपू’ ही समझे गए। बड़े-बुजुर्गों ने उन्हें स्वतंत्र फैसले नहीं लेने दिए, जिससे उन्हें कुछ करके दिखाने का मौका नहीं मिला। उधर संगठन के सम्मेलनों में और सार्वजनिक मंचों पर उनके पिता व सपा के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव को लगातार नसीहतें देते रहे और उनके नकारा मंत्रियों को फटकारते रहे। इससे भी ऐसा संदेश गया, मानो अखिलेश मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने में सक्षम नहीं हैं, लेकिन जल्दी ही उन्हें इसका एहसास हो गया कि अगर राजनीति में लंबी पारी खेलनी है, तो अपनी शख्सियत को एक योग्य प्रशासक और नेता के रूप में स्थापित करना होगा।


नतीजतन वे बहुत सावधानी से और धीरे-धीरे टीपू के सांचे से निकलकर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के सांचे में ढलने लगे। इसका सबसे बड़ा प्रमाण ये है कि पिछले लोकसभा चुनाव में सभी दलों के जो युवा चुनाव जीते थे, उन युवा नेताओं में अखिलेश यादव का नाम आज सबसे ऊपर है। चाहे वे कांग्रेस के राहुल गांधी, ज्योतिरादित्य सिंधिया आदि हों, भाजपा के अनुराग ठाकुर, लोजपा के चिराग पासवान या हाल में बिहार विधानसभा चुनाव में जीतकर नेता बने लालू यादव के दोनों सुपुत्र। ऐसा किस्मत से नहीं हो गया। अखिलेश ने इसके लिए बड़ी सूझबूझ और दूरदृष्टि से शासन की बागडोर संभाली।

 पिछले दिनों मथुरा की सांसद और भाजपा के नेता हेमामालिनी मुझसे अखिलेश की सहृदयता और पाॅजीटिव सोच की तारीफ कर रही थीं। किसी विपक्ष के नेता से ऐसा प्रमाण पत्र मिलना वास्तव में अखिलेश की योग्यता का परिचय देता है। अखिलेश की जिस बात ने सबका मनमोहा है, वह है उनकी शालीनता और विनम्रता। आप युवा पीढ़ी के किसी भी नेता में यह गुण नहीं पाएंगे। वे चाहे सत्ता में हो या विपक्ष में, उन्हें अपनी विरासत और अपनी हैसियत का अहंकार होता ही है। जबकि अखिलेश के पास इन सब युवा नेताओं से बड़ी ताकत है, देश के सबसे बड़े सूबे की बागडोर और एक मजबूत जनाधार। इसलिए भी उनकी विनम्रता मिलने वाले को प्रभावित करती है।

 पर्यावरण इंजीनियर होने के नाते और देश-विदेश के प्रतिष्ठित संस्थानों से शिक्षा हासिल करने के कारण अखिलेश की दृष्टि संतुलित विकास की है। इसलिए उन्होंने अनेक कार्यक्रम और नीतियां अपनाकर उत्तर प्रदेश को पर्यावरण सुधार के क्षेत्र में भारत के अग्रणी राज्यों के साथ खड़ा कर दिया है। पहले लोग उत्तर प्रदेश को ‘उल्टा प्रदेश’ कहते थे। पर आज प्रदेश का व्यापारी समुदाय हो या आम जनता, वह मानती है कि प्रदेश का शासन काफी कुछ ढर्रे पर चल रहा है। जातिगत पक्षपात के आरोप क्षेत्रीय दलों पर प्रायः लगा करते हैं। सपा इससे अछूती नहीं है, पर बावजूद इसके जाति के आधार पर उत्तर प्रदेश की जनता से भेदभाव हो, इसके उदाहरण थाना, प्रशासन स्तर पर कम ही देखने को मिलते हैं। जिससे ग्रामीण जनता को बहुत राहत मिली है।

 उत्तराखंड के अलग होने के बाद उत्तर प्रदेश में पर्यटन उद्योग को भारी झटका लगा था। पर अखिलेश यादव ने बुद्धा सर्किट, ताज सर्किट, ब्रज सर्किट जैसे अनेक नए पर्यटक सर्किट शुरू कर और उसमें स्वयं रूचि ले उत्तर प्रदेश के पर्यटन को सुधारने का काफी प्रशंसनीय कार्य किया है। यह बात दूसरी है कि योजनाओं के क्रियान्वयन में संस्थागत कमियों के कारण गुणवत्ता का अभाव अभी भी दिखाई देता है, जिसे सुधारने की जरूरत है। वह तभी संभव है, जब कार्यदायी संस्थाओं की जवाबदेही सुनिश्चित की जाए और योजनाओं के मानक लागू करने पर प्रशासनिक दबाव हो।

 दिल्ली के राजनैतिक गलियारों में उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं। एक वर्ग है, जो मानता है कि कुछ भी कर लो पहले नंबर पर बसपा ही रहेगी। दूसरा वर्ग है, जो उम्मीद करता है कि अमित शाह की रणनीति उत्तर प्रदेश के मतदाताओं को धु्रवीकरण में समेटकर भाजपा को सत्ता में ले आएगी। लेकिन जैसा हमने पिछले सप्ताह लिखा था कि आमजनता के स्तर पर उत्तर प्रदेश में भाजपा को लेकर आज की तारीख में कोई उत्साह नहीं है। आज की जमीनी हकीकत तो यह है कि उत्तर प्रदेश में मुकाबला सपा और बसपा में ही होता नजर आ रहा है। दोनों का ही नेतृत्व सशक्त है। अखिलेश यादव और मायावती दोनों में से जो जनता की कल्पनाशीलता में आश्वस्त करता नजर आएगा, उसे जनता उत्तर प्रदेश का शासन सौंप देगी। अब वो जमाने लद गए, जब सत्तारूढ़ दल को हराकर ही जनता संतुष्ट होती थी। अनेकों राज्यों के उदाहरण है, जहां सत्तारूढ़ दल 2 या 3 बार लगातार जीतकर सत्ता में रहा है। इधर यह स्पष्ट है कि अखिलेश यादव का आत्मविश्वास बढ़ा है और वे हर वो काम कर रहे हैं, जिससे उनको अगले चुनाव में फिर से जनता का विश्वास हासिल हो। इसके लिए जरूरी है कि वे जमीनीस्तर पर नौकरशाही को जवाबदेह और प्रभावी बनाएं और फैसले तीव्र गति से लें, जिनका परिणाम जमीन पर नजर आए।
 

Thursday, December 24, 2015

Was Hawala Case a conspiracy against Advani ji


Was Hawala Case a conspiracy against Advani ji
as he has told the nation and party workers ?

 Questions unanswered by Mr. Advani  since April 1997.......
 
Respected Advani ji,

Ever since you have been chargesheeted in the Jain Hawala Case, you have been branding it as a mere conspiracy against you. On being discharged by the Delhi High Court on April 8th 1997, you celebrated it like a moral victory. I am surprised how a leader of your stature can mislead the nation and his followers by concealing facts.

Don't you know that Hawala case is connected with the funding of Hijbul-Mujahideen in Kashmir ? You know that in March 1991, two Muslim youths were caught red-handed with several lacs of rupees in their possession.

This money was being sent to the militants in Jammu and Kashmir. On their tip off the Delhi Police and the CBI raided several 'Hawala' operators and subsequently the Jain brothers. A huge recovery of cash, gold bars, foreign exchange and several incriminating documents were seized in these raids. Yet CBI hushed up the investigation under political pressure.


1.    Do you feel that the police should not have raided the Hawala operators?

2.    Do you think that these youths should not have been booked under the provisions of TADA even when they were channelising the funds to the militants of Kashmir?

3.    Do you call it a conspiracy to safeguard national interest ?

4.    You know that once CBI came to know about the involvement of a number of top politicians with the Jain brothers, the entire investigation was put in cold storage? Was it a conspiracy against you or against the nation ?

5.    When everybody who matters in Indian politics is allegedly involved in the Hawala case then who did conspiracy against whom ?

6.    You know very well that whatever pretention of investigation CBI did, it did so after our petition was favorably taken up by the Hon'ble Judges of the SC? Then whom are you blaming for the conspiracy ? Us or the SC Judges?

7.    Why were you so scared of facing the Kalchakra's TV cameras in Aug. 1993, when in the past you had always welcomed us ? We were to ask you only two questions a) Do you know the Jain brothers ? b)Have you taken so much money from them ? If you had nothing to hide, you could have easily answered our questions.

8.    You were chargesheeted in Jan.1996 while your name started appearing in Hawala case since July 1993, if it was a conspiracy why didn't you raise an alarm during this long period ? Were you presuming that nothing will happen, no one will be caught so why trouble the trouble unless it troubles you ? Should it not be termed as a conspiracy of silence by you and your party ?

9.    Knowing fully well that it was case of treachery with the nation, yet why did you not raise any voice in the parliament or outside demanding a thorough probe into the matter ? As a leader of opposition was it moral on your part ? If not, then how it is your moral victory ?

10. Does your heart bleed for the Hindu refugees living in camps at Jammu? If yes why didn't it bother you to find out the roots of Hawala funding?

11. Was it moral for Mr. Ram Jethmalani to betray us and change side to protect your interest ? Was it moral for you to make him a Law Minister, by denying this opportunity to several of your senior party colleagues, when he was not even a member of your party ? What was the understanding ? That he will help you to get out of the Hawala case ? Otherwise how is it that such a brilliant legal brain did such an illegal act of making contemptuous statement? As a law minister he said that he would file an affidavit to say that you were innocent. This amounts to tampering with the process of law. With such immoral acts do you still call it a 'moral victory'?

12. You know that CBI filed false information in the SC to protect the politicians. CBI told lie that it was 'vigorously pursuing the investigation' while it had done nothing. It further told lies that Jains were absconding while they were throwing parties in Delhi. CBI told lies that it could not identify currencies of 50 unknown denomination seized from Jains. What a joke ? CBI underplayed the facts before the Delhi HC. It is a case based on repeated lies to protect the powerful politicians like you, yet how do you call it a victory of 'truth over untruth'?

13. Anyway now you feel 'relieved from the burden'. Do you now have the moral courage to demand honest probe into the Hawala case and punitive action against the officials of CBI who shamelessly connived with the accused? Can you explain the nation why you don't want thorough probe in Hawala, while you had shaken the whole nation demanding probe in the BOFORS case?

14. Finally, you do realise that your and your party's phenomenal rise in 1990 had been due to the mercy of Ayodhyapati Bhagwan Shri Ram. He can make or unmake our lives. Do you have the moral courage to swear by touching the lotus feet of Shri Ram Lala at Shri Ram Janmabhoomi and declare publicly that it was a conspiracy against you and you had accepted no money from the Jain brothers?


With respectful regards

Vineet Narain
April 1997

 
(It is surprising that these questions were not asked by TV interviewers when Advaniji brushed aside the allegations, why ?)


*********

Please Answer Mr.Home Minister Why Advani ji is avoiding these questions ?

 16 December 1999

Respected Advani ji,

Your enthusiasm to find the truth of BOFORS scam is worth appreciating. What impresses us is the persistence with which you and your close associates have been after this scam since 1987. You and your party has shown similar enthusiasm in the Fodder Scam and is all set to exploit this issue in the forth coming assembly elections of Bihar. In all fairness should you not show the same enthusiasm in finding the truth about the Jain Hawala scam ? The recent blast in the Pooja Express and repeated attacks on army camps in Kashmir are lethal blows on Indian state by the militants, who are flourishing without any check.

This is not the first time I am communicating with you. During the past 6 years I have been asking you some questions related to the Jain Hawala Case through my letters, Kalchakra newspapers, public and press statements and so on. It is unfortunate that you being such a senior and respected leader of the country have been avoiding all of them. If this was not enough you very easily branded the Jain Hawala case as a mere conspiracy against you, when you were chargesheeted in this case on 16th Jan1996. When you were let off by the Delhi High Court on 8th April 1997, you called it your "moral victory", "a victory of truth over untruth" and so on. It was then I had released a set of questions for you to answer, but you preferred to ignore them. Instead of respecting the democratic traditions of public accountability you directed your entire man power to launch a world wide misinformation campaign on Hawala case. In several public meetings in India and abroad I had to face some of your campaigners who were very hostile towards me for having "unnecessarily dragged" your name into this case. By God's grace I was able to satisfy them with logical explanations and correct information. On the contrary I have yet to receive your answers to my questions.

Let me tell you that this attitude of yours proved fatal for the country. The militants felt more secured than ever before. They realised that the ruling elite of India are really not interested in curbing their activities. They could see that all the concern Indian political leaders show for the growing militancy is nothing more than lip service. Their confidence grew so much that they could dare to plant a bomb in your public meeting at Coimbatoore. By God's grace you narrowly escaped, however, several innocent people of the town had to lay their lives in that gruesome blast.

Since the militants are gaining in strength day by day, they could dare to enter the army establishments in Kashmir and killed several of our officers. From across the border they are throwing open challenge to Indian state. They have already established a vast network in this country. It has become an alarming situation.

The people cannot be left at their mercy. You know that the Jain Hawala case is one major case related to the funding of militancy in India, which has yet not been properly investigated. Even the former Chief Justice of India, who monitored this case said on 28th August 1998 that CBI failed to properly investigate the Hawala case otherwise the politicians would not have been let off.

I am sure by now you must have read my book on this case. It explains how shamelessly and systematically the entire Hawala probe was scuttled by the ruling elite of this country.

In light of the above facts and the material published in this newspaper, don't you think that this case needs to be probed by a team of efficient and honest police officials ?

Don't you think that your continuation as the Union Home Minister will seal the possibility of honest probe into this significant case ?

Please do not think that we have an agenda to chase you on this issue. On the contrary we feel that you are a strong leader with a vision and we have some hopes from you for this nation, that is why we want you to have the moral courage to come-out openly and share the truth with the nation as several other Hawala payees including your cabinet colleague Mr. Sharad Yadav did. You know that the President of USA, Mr. Bill Clinton had no ego problem in accepting that he had lied and actually had relations with Monica Lewinsky.

People of USA forgave him thereafter. Will you do that respected Advani Ji and will also request the PM to ensure proper investigation in this case ?

Your well wisher

Vineet Narain
16 December 1999

Monday, December 14, 2015

गोडसे ने नहीं की महात्मा गांधी की हत्या

 दुनिया यही मानती है कि नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या की। पर भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं कि आत्मा अजर अमर है। इसे शस्त्र काट नहीं सकते, अग्नि जला नहीं सकती, जल गला नहीं सकता और वायु सुखा नहीं सकती। इस दृष्टि से महात्मा गांधी की आत्मा भी अजर अमर है। असली हत्या तो उनके विचारों की की गई और ये काम आजादी मिलते ही शुरू हो गया।
 
 जिस अखबार में आप यह लेख पढ़ रहे हैं, वो अखबार आपकी मात्र भाषा का है। अगर ये अंग्रेजी में होता तो क्या आप इसे पढ़ते ? भारत के कितने लोग अंग्रेजी लिख-पढ़ सकते हैं। पर विड़बना देखिए कि हमारी शिक्षा से लेकर न्याय पालिका तक, प्रशासन से लेकर स्वास्थ्य सेवाओं तक सब ओर अंग्रेजी का बोलबाला है। जबकि इस भाषा को समझने वाले देश में 2 फीसदी लोग भी नहीं हैं और यही 2 फीसदी लोग भारत के संसाधनों पर सबसे ज्यादा कब्जा जमाकर बैठे हैं, सबसे ज्यादा मौज भी इन्हीं को मिल रही है। शेष भारतवासियों का हक छीनकर ये पनप रहे हैं। पर आम भारतवासियों की आवाज इनके कानों तक नहीं पहुंचती। उनका दर्द इनके सीने में नहीं उठता। इन्हंे तो हर वक्त अपनी और अपने कुनबे की तरक्की की चिंता रहती है और हर तिगड़म लगाकर ये विकास का सारा फल हजम कर जाते हैं। इसका एक मात्र कारण यह है कि हमने गांधीजी के विचारों की हत्या कर दी। वे नहीं चाहते थे कि अंग्रेजों के जाने के बाद अंग्रेजी एक दिन भी हिंदुस्तानियों पर हावी हो, क्योंकि वे इसे गुलाम बनाने की भाषा मानते थे।
 
 इस लेख में आगे कुछ और बताने से ज्यादा जरूरी होगा कि हम जानें कि मातृभाषा के लिए और अंग्रेजी के विरूद्ध गांधीजी के क्या विचार थे और फिर देखें कि क्या आज उनकी भविष्यवाणी सच साबित हो रही है ? अगर हां तो फिर उस गलती को दूर करने की तरफ सोचना होगा।
 
अंग्रेजी शिक्षा के खिलाफ गांधीजी ने कहा, ‘‘करोड़ों लोगों को अंग्रेजी शिक्षण देना उन्हें गुलामी में डालने जैसा है। मैकाले ने जिस शिक्षण की नींव डाली, वह सचमुच गुलामी की नींव थी। ....अंग्रेजी शिक्षण स्वीकार करके हमने जनता को गुलाम बनाया है। अंग्रेजी शिक्षण से दंभ, द्वेष, अत्याचार आदि बड़े हैं। अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त लोगों ने जनता को ठगने और परेशान करने में कोई कसर नहीं रखी। भारत को गुलाम बनाने वाले तो हम अंग्रेजी जानने वाले लोग ही हैं।’’ वे आगे कहते हैं कि “यदि मैं तानाशाह होता तो आज ही विदेशी भाषा में शिक्षा देना बंद कर देता। सारे अध्यापकों को स्वदेशी भाषाएं अपनाने को मजबूर कर देता। जो आनाकानी करते उन्हें बर्खास्त कर देता।”
 
भागलपुर शहर में छात्रों के एक सम्मेलन में भाषण करते हुए उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है ‘‘मातृभाषा का अनादर मां के अनादर के बराबर है। जो मातृभाषा का अपमान करता है, वह स्वदेश भक्त कहलाने लायक नहीं है। बहुत से लोग ऐसा कहते सुने जाते हैं कि ‘हमारी भाषा में ऐसे शब्द नहीं जिनमें हमारे ऊंचे विचार प्रकट किये जा सकें। किन्तु यह कोई भाषा का दोष नहीं। भाषा को बनाना और बढ़ाना हमारा अपना ही कर्तव्य है। एक समय ऐसा था जब अंग्रेजी भाषा की भी यही हालत थी। अंग्रेजी का विकास इसलिए हुआ कि अंग्रेज आगे बढ़े और उन्होंने भाषा की उन्नति की। यदि हम मातृभाषा की उन्नति नहीं कर सके और हमारा यह सिद्धान्त रहे कि अंग्रेजी के जरिये ही हम अपने ऊँचे विचार प्रकट कर सकते हैं और उनका विकास कर सकते हैं, तो इसमें जरा भी शक नहीं कि हम सदा के लिए गुलाम बने रहेंगे। जब तक हमारी मातृभाषा में हमारे सारे विचार प्रकट करने की शक्ति नहीं आ जाती और जब तक वैज्ञानिक विषय मातृभाषा में नहीं समझाये जा सकते, तब तक राष्ट्र को नया ज्ञान नहीं मिल सकेगा।’’
 
एक अवसर पर गांधीजी ने विदेशी भाषा द्वारा दी जाने वाली शिक्षा से होने वाली हानियों का उल्लेख करते हुए कहा है ‘‘माँ के दूध के साथ जो संस्कार और मीठे शब्द मिलते हैं, उनके और पाठशाला के बीच जो मेल होना चाहिए, वह विदेशी भाषा के माध्यम से शिक्षा देने में टूट जाता है। इसके अतिरिक्त विदेशी भाषा द्वारा शिक्षा देने से अन्य हानियां भी होती है। शिक्षित वर्ग और सामान्य जनता के बीच में अन्तर पड़ गया है। हम जनसाधरण को नहीं पहचानते, जनसाधरण हमें नहीं जानता। वे हमें साहब समझते हैं और हमसे डरते हैं। यदि यही स्थिति अधिक समय तक रही तो एक दिन लार्ड कर्जन का यह आरोप सही हो जाएगा कि शिक्षित वर्ग जनसाधारण का प्रतिनिधि नहीं है।’’
 
उन्होंने यह भी कहा कि, “मुझे लगता है कि जब हमारी संसद बनेगी तब हमें फौजदारी कानून में एक धारा जुड़वाने का आन्दोलन करना पड़ेगा। यदि दो व्यक्ति भारत की एक भाषा जानते हों और इस पर भी उनमें से कोई दूसरे को अंग्रेजी में पत्र लिखे या एक-दुसरे से अंग्रेजी में बोले तो उसे कम से कम छः महीने की सख्त सजा दी जायेगी।’’
 
साफ जाहिर है कि गांधीजी को भारत की असलियत की गहरी समझ थी। वे जानते थे कि अगर भारत में आर्थिक विकास और शिक्षा का काम गांवों की बहुसंख्यक आबादी को केंद्र में रखकर किया जाए, तभी भारत का सही विकास हो पाएगा। अन्यथा चंद लोग तो मजे करेंगे और बहुसंख्यक आबादी बर्बाद होगी। यही आज हो रहा है। असहिष्णुता हिंदू और मुसलमान के बीच में नहीं, बल्कि 2 फीसदी अंग्रेजीदां वर्ग और 98 फीसदी आम हिंदुस्तानी के बीच है। जिसे दूर करने के लिए अपनी भाषा नीति को बदलना होगा। क्या संसद इस पर विचार करेगी ?

Monday, October 19, 2015

जेट एयरवेज़ कर रहा है यात्रियों से धोखा और मुल्क से गद्दारी

    पिछले वर्ष सारे देश के मीडिया में खबर छपी और दिखाई गई कि जेट एयरवेज़ को अपने 131 पायलेट घर बैठाने पड़े। क्योंकि ये पायलेट ‘प्रोफिशियेसी टेस्ट’ पास किए बिना हवाई जहाज उड़ा रहे थे। इस तरह जेट के मालिक नरेश गोयल देश-विदेश के करोड़ों यात्रियों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे थे। हमारे कालचक्र समाचार ब्यूरो ;नई दिल्लीद्ध ने इस घोटाले का पर्दाफाश किया, जिसका उल्लेख कई टीवी चैनलों ने किया। यह तो केवल एक ट्रेलर मात्र है। जेट एयरवेज़ पहले दिन से यात्रियों के साथ धोखाधड़ी और देश के साथ गद्दारी कर रही है। जिसके दर्जनों प्रमाण लिखित शिकायत करके इस लेख के लेखक पत्रकार ने केंद्रीय सतर्कता आयोग और सीबीआई में दाखिल कर दिए हैं और उन पर उच्च स्तरीय पड़ताल जारी है। जिनका खुलासा आने वाले समय में किया जाएगा।

फिलहाल, यह जानना जरूरी है कि इतने सारे पायलेट बिना काबिलियत के कैसे जेट एयरवेज़ के हवाई जहाज उड़ाते रहे और हमारी आपकी जिंदगी के खिलवाड़ करते रहे। हवाई सेवाओं को नियंत्रित करने वाला सरकारी उपक्रम डी.जी.सी.ए. (नागर विमानन महानिदेशालय) क्या करता रहा, जो उसने इतनी बड़ी धोखाधड़ी को रोका नहीं। जाहिर है कि इस मामले में ऊपर से नीचे तक बहुत से लोगों की जेबें गर्म हुई हैं। इस घोटाले में भारत सरकार का नागर विमानन मंत्रालय भी कम दोषी नहीं है। उसके सचिव हों या मंत्री, बिना उनकी मिलीभगत के नरेश गोयल की जुर्रत नहीं थी कि देश के साथ एक के बाद एक धोखाधड़ी करता चला जाता। उल्लेखनीय है कि जेट एयरवेज़ में अनेक उच्च पदों पर डी.जी.सी.ए. और नागर विमानन मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के बेटे, बेटी और दामाद बिना योग्यता के मोटे वेतन लेकर गुलछर्रे उड़ा रहे हैं। इन विभागों के आला अधिकारियों के रिश्वत लेने का यह तो एक छोटा-सा प्रमाण है।

डी.जी.सी.ए. और जेट एयरवेज़ की मिलीभगत का एक और उदाहरण कैप्टन हामिद अली है, जो 8 साल तक जेट एयरवेज़ का सीओओ रहा। जबकि भारत सरकार के नागर विमानन अपेक्षा कानून के तहत (सी.ए.आर. सीरीज पार्ट-2 सैक्शन-3) किसी भी एयरलाइनस का अध्यक्ष या सीईओ तभी नियुक्त हो सकता है, जब उसकी सुरक्षा जांच भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा पूरी कर ली जाय और उसका अनापत्ति प्रमाण पत्र ले लिया जाय। अगर ऐसा व्यक्ति विदेशी नागरिक है, तो न सिर्फ सीईओ, बल्कि सीएफओ या सीओओ पदों पर भी नियुक्ति किए जाने से पहले ऐसे विदेशी नागरिक की सुरक्षा जांच नागर विमानन मंत्रालय को भारत सरकार के गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय से भी करवानी होती है। पर देखिए, देश की सुरक्षा के साथ कितना बड़ा खिलवाड़ किया गया कि कैप्टन हामिद अली को बिना सुरक्षा जांच के नरेश गोयल ने जेट एयरवेज़ का सीओओ बनाया। यह जानते हुए कि वह बहरीन का निवासी है और इस नाते उसकी सुरक्षा जांच करवाना कानून के अनुसार अति आवश्यक था। क्या डी.जी.सी.ए. और नागर विमानन मंत्रालय के महानिदेशक व सचिव और भारत के इस दौरान अब तक रहे उड्डयन मंत्री आंखों पर पट्टी बांधकर बैठे थे, जो देश की सुरक्षा के साथ इतना बड़ा खिलवाड़ होने दिया गया और कोई कार्यवाही जेट एयरवेज़ के खिलाफ आज तक नहीं हुई। जिसने देश के नियमों और कानूनों की खुलेआम धज्जियां उड़ाईं।

ये खुलासा तो अभी हाल ही में तब हुआ, जब 31 अगस्त, 2015 को कालचक्र समाचार ब्यूरो के ही प्रबंधकीय संपादक रजनीश कपूर की आरटीआई पर नागरिक विमानन मंत्रालय ने स्पष्टीकरण दिया। इस आरटीआई के दाखिल होते ही नरेश गोयल के होश उड़ गए और उसने रातों-रात कैप्टन हामिद अली को सीओओ के पद से हटाकर जेट एयरवेज़ का सलाहकार नियुक्त कर लिया। पर, क्या इससे वो सारे सुबूत मिट जाएंगे, जो 8 साल में कैप्टन हामिद अली ने अवैध रूप से जेट एयरवेज़ के सीओओ रहते हुए छोड़े हैं। जब मामला विदेशी नागरिक का हो, देश के सुरक्षा कानून का हो और नागरिक विमानन मंत्रालय का हो, तो क्या इस संभावना से इंकार किया जा सकता है कि कोई देशद्रोही व्यक्ति, अन्डरवर्लड या आतंकवाद से जुड़ा व्यक्ति जान-बूझकर नियमों की धज्जियां उड़ाकर इतने महत्वपूर्ण पद पर बैठा दिया जाए और देश की संसद और मीडिया को कानों-कान खबर भी न लगे। देश की सुरक्षा के मामले में यह बहुत खतरनाक अपराध हुआ है। जिसकी जवाबदेही न सिर्फ नरेश गोयल की है, बल्कि नागरिक विमानन मंत्रालय के मंत्री, सचिव व डी.जी.सी.ए. के महानिदेशक की भी पूरी है।

    दरअसल, जेट एयरवेज़ के मालिक नरेश गोयल के भ्रष्टाचार का जाल इतनी दूर-दूर तक फैला हुआ है कि इस देश के अनेकों महत्वपूर्ण राजनेता और अफसर उसके शिकंजे में फंसे हैं। इसीलिए तो जेट एयरवेज़ के बड़े अधिकारी बेखौफ होकर ये कहते हैं कि कालचक्र समाचार ब्यूरो की क्या औकात, जो हमारी एयरलाइंस को कठघरे में खड़ा कर सके। नरेश गोयल के प्रभाव का एक और प्रमाण भारत सरकार का गृह मंत्रालय है, जो जेट एयरवेज़ से संबंधित महत्वपूर्ण सूचना को जान-बूझकर दबाए बैठा है। इस लेख के माध्यम से मैं केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह का ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहूंगा कि रजनीश कपूर की आरटीआई पर गृह मंत्रालय लगातार हामिद अली की सुरक्षा जांच के मामले में साफ जवाब देने से बचता रहा है और इसे ‘संवेदनशील’ मामला बताकर टालता रहा है। अब ये याचिका भारत के केंद्रीय सूचना आयुक्त विजय शर्मा के सम्मुख है। जिस पर उन्हें जल्दी ही फैसला लेना है। पर बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी। 8 साल पहले की सुरक्षा जांच का अनापत्ति प्रमाण पत्र अब 2015 में तो तैयार किया नहीं जा सकता।

    कालचक्र समाचार ब्यूरो का अपना टीवी चैनल या अखबार भले ही न हो, लेकिन 1996 में देश के दर्जनों केंद्रीय मंत्रियों, राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों, विपक्ष के नेताओं और आला अफसरों को जैन हवाला कांड में चार्जशीट करवाने और पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर करने का काम भारत के इतिहास में पहली बार कालचक्र समाचार ब्यूरो ने ही किया। भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीशों के अनेकों घोटाले उजागर करने की हिम्मत भी इसी ब्यूरो के संपादक, इस लेख के लेखक ने दिखाई थी। जुलाई, 2008 में स्टेट ट्रेडिंग कॉपोरेशन के अध्यक्ष अरविंद पंडालाई के सैकड़ों करोड़ के घोटाले को उजागर कर केंद्रीय सतर्कता आयोग से कार्यवाही करवा कर उसकी नौकरी भी कालचक्र समाचार ब्यूरो ने ही ली थी। ऐसे तमाम बड़े मामले हैं, जहां कालचक्र के बारे में मध्ययुगीन कवि बिहारी जी का ये दोहा चरितार्थ होता है कि कालचक्र के तीर “देखन में छोटे लगे और घाव करै गंभीर”।

अभी तो शुरूआत है, जेट एयरवेज़ के हजारों करोड़ के घोटाले और दूसरे कई संगीन अपराध कालचक्र सीबीआई के निदेशक और भारत के मुख्य सतर्कता आयुक्त को सौंप चुका है और देखना है कि सीबीआई और सीवीसी कितनी ईमानदारी और कितनी तत्परता से इस मामले की जांच करते हैं। उसके बाद ही आगे की रणनीति तय की जाएगी। 1993 में जब हमने देश के 115 सबसे ताकतवर लोगों के खिलाफ हवाला कांड का खुलासा किया था, तब न तो प्राइवेट टीवी चैनल थे, न इंटरनेट, न सैलफोन, न एसएमएस और न सोशल मीडिया। उस मुश्किल परिस्थिति में भी हमने हिम्मत नहीं हारी और 1996 में देश में इतिहास रचा। अब तो संचार क्रांति का युग है, इसीलिए लड़ाई उतनी मुश्किल नहीं। पर ये नैतिक दायित्व तो सीवीसी और सीबीआई का है कि वे देश की सुरक्षा और जनता के हित में सब आरोपों की निर्भीकता और निष्पक्षता से जांच करें। हमने तो अपना काम कर दिया है और आगे भी करते रहेंगे।

Monday, October 5, 2015

भारत सरकार ही बनाए देश का पैसा

    बैंकों के मायाजाल पर जो दो तथ्यपरक लेख पिछले हफ्तों में हमने लिखे, उन पर देशभर से जितनी प्रतिक्रियाएं आईं हैं, उतनी आज तक किसी लेख पर नहीं आईं। हर पाठक अब इस समस्या का समाधान पूछ रहा है। इसलिए इस कड़ी का यह तीसरा और अंतिम लेख समाधान के तौर पर है। ऐसा समाधान जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत बनें और हर भारतीय कर्ज के दबाव से मुक्त होकर सम्मानजनक जीवन जी सके। इसके लिए जरूरी होगा कि भारत सरकार देश का पैसा खुद बनाए और इन व्यवसायिक बैंकों को देश लूटने की छूट न दे। इसे हम विस्तार से आगे समझाएंगे। पहले देश की मौजूदा आर्थिक स्थिति पर एक नजर डाल लें। 2015-16 वित्तीय वर्ष के लिए जो बजट सरकार ने बनाया, उसमें 14,49,490 करोड़ रूपए एकत्रित किए। इसमें से 5,23,958 करोड़ रूपए राज्यों को उनके हिस्से के रूप में दे दिए। इस प्रकार जो बचा, उसमें सरकार ने अपनी आमदनी 2,21,733 करोड़ रूपए जोड़ ली और उसकी कुल आय हो गई 11,41,575 करोड़ रूपए। इस आय में से शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, उद्योग, विद्युत, संचार, परिवहन, विज्ञान व प्रौद्योगिकी जैसे जनकल्याण कार्यों में मात्र 58,127 करोड़ रूपए खर्च करने का प्रावधान किया। जबकि इसमें से 6,81,719 करोड़ रूपया बैंकों को ब्याज और किस्त के रूप में दे दिया। अब आप स्वयं ही देख लीजिए कि भारत सरकार अपने हिस्से के बजट का 60 फीसदी केवल बैंकों को दे देती है, फिर क्या खाक विकास होगा और हम कभी इस कर्जे के मकड़जाल से मुक्त नहीं हो पाएंगे। आप चाहे जितनी मेहनत कर लो। जितना उत्पादन कर लो। जितना कर दे दो सरकार को। सबका सब ये बैंक हजम कर जाते हैं, तो कैसे होगा आपका विकास ?

   
शोध से यह निकलकर आ रहा है कि लगभग 25 लाख करोड़ रूपया सालाना भारत की सरकार, राज्य सरकारों और जनता से लूटकर ये बैंक ले जा रहे हैं और अपनी तिजोरी भर रहे हैं। इस तरह हमारे रूपए की कीमत लगातार तेजी से गिरती जा रही है। इस व्यवस्था के पहले अगर हमारे पास 100 रूपए होते थे, तो उसका मतलब था 100 तौला यानि 1 किलो चांदी। पर आज अगर हमारे पास 100 रूपए हैं, तो उसकी कीमत रह गई मात्र 25 पैसे। 99.75 रूपए इस बैकिंग व्यवस्था ने डकार लिए और हमें और हमारे देश को कंगाल कर दिए, केवल खातों में कर्जे दिखाकर।

    समाधान के रूप में हमें अपनी इस पिरामिड वाली बैकिंग व्यवस्था को पलटना होगा। इंग्लैंड के दूसरे सबसे धनी व्यक्ति और बैंक आॅफ इंग्लैंड के डायरेक्टर सर जोशिया स्टाम्प ने टैक्सास विश्वविद्यालय में 1927 को भाषण देते हुए कहा था कि, ‘आधुनिक बैंकिंग प्रणाली जादुई तरीके से पैसा बनाती हैं। यह प्रक्रिया शायद जादू का अभी तक सबसे बड़ा अविष्कार है। बैकिंग की कल्पना में अन्याय है और यह पाप से जन्मा है। बैंकर पृथ्वी के मालिक हैं। अगर इसे तुम उनसे छीन भी लो, पर उन्हें पैसे बनाने की शक्ति देकर रखो, तो वे कलम के एक झटके के साथ, सारी धरती को फिर से खरीदने के लिए पर्याप्त पैसे बना लेंगे। उनसे यह भारी ताकत छीन लो। फिर ये दुनिया ज्यादा खुशहाल और रहने के लिए एक बेहतर जगह होगी। परंतु अगर आप बैंकरों के गुलाम बने रहना चाहते हो और अपनी खुद की ही गुलामी की लागत का भुगतान देना जारी रखना चाहते हों, तो बैंकरांे को पैसे बनाने और उसे नियंत्रित करने की शक्ति उन्हीं के पास रहने दो।’

    अगर भारत सरकार अपना पैसा खुद बनाए, तो उसे ब्याज देने की जरूरत नहीं होगी। आज की व्यवस्था के अनुसार कुल बजट का 40 फीसदी ही सरकार खर्च कर पाती है, शेष कर्जे में चला जाता है। अगले आर्थिक वर्ष से अगर सरकार ये 40 फीसदी पैसा खुद बना लें, तो पुराना कर्ज तो चुकाती रहे, पर नया कर्ज उस पर कुछ नहीं चढ़ेगा और जब नया कर्ज नहीं चढ़ेगा, तो उसे कर बढ़ाने की भी आवश्यकता नहीं होगी और इसके तुरंत प्रभाव से सरकार का बजट 3 गुना बढ़ जाएगा। ऐसा करने से सरकार अपनी आवश्यकता का पैसा खुद बना लेगी और उसे विकास योजनाओं के लिए कोई कर्ज नहीं लेना पड़ेगा। धीरे-धीरे पुराना कर्ज खत्म हो जाएगा और कुछ ही वर्षों में भारत की अर्थव्यवस्था इतनी मजबूत हो जाएगी कि उसका अपना बजट चीन के बजट से भी ज्यादा हो जाएगा और तब भारत दुनिया के अर्थव्यवस्थाओं में पहले नंबर पर पहुंच जाएगा, जैसा सन् 1700 में था।

दरअसल, ये कोई अजीब बात नहीं है। 1969 में प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण करके इस ओर एक मजबूत कदम बढ़ाया था। जिससे बैकिंग उद्योग में खलबली मच गई और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन और उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किंसिजर ने इंदिरा गांधी को और भारतीयों को भद्दी गालियां दीं और भारत पर पाकिस्तान से हमला करवाकर हमें जबर्दस्ती युद्ध में धकेल दिया। 1971 में की गई उनकी यह निजी बातचीत अमेरिकी सरकार के दस्तावेजों के 2005 में सार्वजनिक होने पर प्रकाश में आई। ये बात दूसरी है कि भारत ने पाकिस्तान को 1971 के युद्ध में हरा दिया। इस तरह इंदिरा गांधी ने देश को बैंकरों के शिकंजे से छुड़ाने में एक मजबूत और सफल कदम बढ़ाया। ये बात आगे जाती, पर इंदिरा गांधी कुछ भ्रष्टाचार में फंस गईं। जिसकी आड़ में बैंकिंग समुदाय ने उन्हें सत्ता से उखाड़ फेंका। बाद की सरकारों ने बैंकों को फिर से निजी हाथों में देना शुरू कर दिया और हम फिर इनके मायाजाल में फंस गए। अब अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पैसा खुद बनाने का छोटा, लेकिन कड़ा निर्णय लेते हैं, तो जनता और व्यापारी वर्ग को कर और कर्ज से मुक्त कर सकते हैं, देश को कर्जमुक्त कर सकते हैं और अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ कर सकते हैं। तब देश को कभी भी महंगाई और मंदी का मुंह नहीं देखना पड़ेगा और तब फिर से बनेगा भारत सोने की चिड़िया।

Monday, December 22, 2014

यूं नहीं खत्म होगा आतंकवाद


पेशावर में आर्मी स्कूल के बच्चों की हत्या ने बर्बरता की सारी हदें पार कर दी | आतंकवादियों ने इसे सेना के खिलाफ बदले की कार्रवाई बाते है | पूरी दुनिया इस हमले से स्तब्ध है | अब तक आतंक का जो रूप देखा जाता था उससे यह हमला बहुत अलग है | अब तक बेकसूरों और मासूमों और साधारण नागरिकों की हत्याओं से ही भय और सनसनी फैलाई जाती थी | और आतंकवादियों की वैसी हरकतों पर राजनितिक व्यवस्था का जवाब या प्रतिक्रिया यही रहती थी यह आतंकवादियों की कायराना हरकत है | हालांकि आतंकवाद के खिलाफ सरकारी युद्ध में सेना और सुरक्षा बलों के सिपाहियों की हत्याएं भी कम नहीं होती हैं | लेकिन उन्हें हम सैनिकों की शहादत कहते हैं और आतंकवाद के खिलाफ निरंतर युद्ध का माहौल बनाये रखते आये हैं | लेकिन इस हमले में सबसे ज्यादा सुविचारित काम यह हुआ है कि सेना कर्मियों के बच्चों को निशाना बनाया गया है |

पूरी दुनिया के मीडिया ने इस हमले को वीभत्स और बर्बर कहते हुए इसे अब तक की सबसे सनसनीखेज हरकत बतया है | और खास तौर पर ज्यादा अमानवीय इस कारण बताया है क्योंकि हत्याएं बच्चों की की गई | उधर हमले पर प्रतिक्रिया के बाद आतंकवादियों का रुख और भी ज्यादा कडा और सनसनीखेज़ है | उनकी धमकी है कि अब वे नेताओं के बच्चों को निशाना बनाएंगे | शनिवार को जिस तरह से मीडिया में आतंकवादियों के धमकी वाले वीडियो टेप जारी किये गए और उन्हें बार बार दिखाया गया उससे यह भी साफ़ ज़ाहिर है कि आतंकवाद और राजनितिक व्यवस्थाओं के बीच यह लड़ाई केद्रिकृत हो चली है |

अगर आतंकवाद पर राजनीतिकों की दबिश की समीक्षा करें तो यह कहने में संकोच नहीं होना चाहिए कि सरकारें अब तक आतंकवाद के खिलाफ कोई कारगर उपाय कर नहीं पायी है | राजनितिक तबका आतंकवाद को व्यवस्था के खिलाफ एक अलोकतांत्रिक यंत्र ही मानता रहा है | और बेगुनाह नागरिकों की हत्याओं के बाद येही कहता रहा है कि आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा | होते होते कई दशक बीत जाने के बाद भी विश्व में आतंकवाद के कम होने या थमने का कोई लक्षण हमें देखने को नहीं मिलता |

बहरहाल आतंकवाद के नए रूप को देखें तो संकेत मिलता है कि नेताओं के बच्चों को निशाना बनाने की धमकी के बाद नेताओं के बच्चों की सुरक्षा का नया इन्तेजाम करना होगा | कुलमिलाकर सेना, पुलिस, सुरक्षाकर्मियों और राजनीतिकों के बच्चों व परिवारों की सुरक्षा को किस परिमाण में सुनिश्चित किया जा पाएगा यह हमारे सामने नई चुनौती है |

आज की तारीख तक आतंकवाद के कुछ और महत्वपूर्ण पहलुओं की समीक्षा करें तो यह भी कहा जा सकता है कि आतंकवाद अब और उग्र रूप में हमारे सामने है | यानी उसकी तीव्रता और बढ़ गयी | इतनी ज्यादा बढ़ गयी है कि वह बेख़ौफ़ हो कर खुलेआम राजनेताओं को चुनौती देने लगा है |

नए हालात में ज़रूरी हो गया है कि आतंकवाद के बदलते स्वरुप पर नए सिरे से समझना शुरू किया जाए | हो सकता है कि आतंकवाद से निपटने के लिए बल प्रयोग ही अकेला उपाए न हो | क्या उपाय हो सकते हैं उनके लिए हमें शोधपरख अध्ययनों की ज़रूरत पड़ेगी | अगर सिर्फ 70 के दशक से अब तक यानी पिछले 40 साल के अपने सोच विचार – अपनी कार्यपद्धति पर नज़र डालें तो हमें हमेशा तदर्थ उपायों से ही काम चलाना पड़ा है | इसका उदाहरण कंधार विमान अपहरण के समय का है जब विशेषज्ञों ने हाथ खड़े कर दिए थे कि आतंकवाद से निपटने के लिए हमारे पास कोई सुनियोजित व्यवस्था ही नहीं है |

सिर्फ भारतवर्ष ही नहीं बल्कि दूसरे देशों को भी देखें तो राजनितिक व्यवस्थाओं में जिस तरह बाहुबल और धनबल का दबदबा बढा है उससे येही लगता है कि हिंसा और शोषण को हम उतनी तीव्रता के साथ निंदनीय नहीं मानते | यदि वाकई ऐसा ही है तो राजनितिक व्यवस्था को चुनौती देने के लिए आतंकवाद सिर क्यों नहीं उठा लेगा | धर्म, जाति, धनबल और बाहुबल अगर राजनीति के प्रभावी यंत्र मने जाते हैं तो आतंकवाद के खिलाफ उपाय ढूँढने में हम कितने कारगर हो सकते हैं |

खैर जब तक हमें कुछ सूझता नहीं तब तक आतंकवाद के खिलाफ बल प्रयोग का उपाय करने के इलावा हमारे पास कोई चारा भी नहीं है | लेकिन इसी बीच साथ-साथ अप्राध्शास्त्रियों, मनोविज्ञानियों, समाजशास्त्रियों और दर्शनशास्त्रियों को इस काम के लिए सक्रीय किया जा सकता है | बहुत संभव है कि ऐसा करते हुए हम आतंकवाद के साथ भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता, शोषण और बेरोज़गारी जैसी समस्याओं का भी समाधान पा लें | इसके लिए विश्वभर के शीर्ष नेतृत्त्व को एकजुट हो कर कुछ ठोस कदम उठाने होंगे तभी कुछ होने की उम्मीद है |

Monday, July 28, 2014

बदले बदले से मेरे सरकार नजर आते हैं

नई सरकार को आए 60 दिन पूरे हो गए हैं और अब नई सरकार के काम की समीक्षाएं भी शुरू हो गई हैं। जो लोग कहा करते थे कि देश में हालात बदलना आसान नहीं है, उन्हें अब फिर से सोचने की जरूरत पड़ रही है। 60 साल की रफ्तार से चलती गाड़ी को एकदम से तो ब्रेक लगाकर यू-टर्न नहीं लिया जा सकता। पर भारत सरकार की नौकरशाही के बदले रवैए से आने वाले समय का आगाज होना शुरू हो गया है। पिछले हफ्ते का एक रोचक वाकया इस बदली स्थिति को समझने के लिए उचित रहेगा।
 
दिल्ली-आगरा राजमार्ग-2 पर मथुरा रिफाइनरी के पास ‘बाद’ गांव में एक कृष्णकालीन सरोवर है। जिसका जीर्णोद्धार 500 वर्ष पहले अकबर के वित्त मंत्री टोडरमल ने करवाया था। इस आशय का एक शिलालेख मथुरा संग्रहालय में संग्रहित है। पिछले वर्षों में इस कुण्ड की वृह्द खुदाई का काम ब्रज फाउण्डेशन नाम की संस्था ने किया। जिसके बाद इसके नवनिर्माण व सौंदर्यीकरण की व्यापक योजना बनाकर उत्तर प्रदेश सरकार के माध्यम से अनुदान के लिए भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय को 2 वर्ष पहले भेज दी गई। इसी बीच सीमा सुरक्षा बल ने इस कुण्ड के पीछे लगभग 60 एकड़ भूमि खरीदकर उस पर अपने कैंप कार्यालयों और आवास का निर्माण शुरू कर दिया। जबकि इस क्षेत्र तक पहुंचने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग से कोई रास्ता नहीं था। सीमा सुरक्षा बल ने कृष्ण सरोवर के जल संग्रहण क्षेत्र में से 80 फुट सड़क काटकर रास्ता बना लिया, जो सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के विरूद्ध है। इस निर्देश के अनुसार किसी भी पुराने जलाशय की भूमि पर इस तरह का निर्माण नहीं किया जा सकता। जब बीएसएफ को अपनी भूल का अहसास हुआ तो उन्होंने इस कुण्ड के निर्माण और रखरखाव करने का प्रस्ताव किया। उनके इस व्यवहारिक प्रस्ताव पर ब्रज फाउण्डेशन ने भारत सरकार के गृह मंत्रालय की सहमति से भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय को यह आवेदन किया कि वे इस कुण्ड के लिए स्वीकृत धनराशि बीएसएफ को आवंटित कर दें, ताकि बीएसएफ का इंजीनियरिंग विंग इस कार्य को पूरा कर सके।
 
जब इस प्रस्ताव को लेकर फाउण्डेशन के लोग भारत सरकार के पर्यटन सचिव परवेज दीवान से मिले तो उन्हें बहुत सुखद अनुभव हुआ। उनकी मीटिंग के तय समय पर इस योजना से संबंधित सभी अधिकारी फाउण्डेशन के प्रस्ताव की फाइलें लेकर सचिव महोदय के कक्ष में पहले से मौजूद थे। श्री दीवान ने उनकी बात सुनी और उनके पारदर्शी व जनोपयोगी प्रस्ताव पर 5 मिनट के भीतर स्वीकृति की मोहर लगा दी। रोचक बात यह है कि बीएसएफ, गृह मंत्रालय और पर्यटन मंत्रालय इस पूरी प्रक्रिया को चलाने में उन्हें मात्र 2 महीने का समय लगा। यह बात दूसरी है कि यह धनराशि केंद्र सरकार के ही एक विभाग से दूसरे विभाग को जा रही है और इसमें ब्रज फाउण्डेशन का कोई दखल नहीं। फाउण्डेशन के लोगों का कहना है कि उनका अब तक का अनुभव यही रहा कि उनके ऐसे सही, सार्थक व जनोपयोगी प्रस्तावों पर भी महीनों और वर्षों तक कोई निगाह नहीं डालता। ऐसे तमाम प्रस्ताव देशभर के सरकारी दफ्तरों में वर्षों धूल खाते रहते थे। यह मोदी युग की शुरूआत है। यही है वह गुजरात मॉडल, जिसका इतना शोर देश में मचा था। केंद्र सरकार को छोड़ दे तो बाकी राज्य सरकारों में इसकी झलक अभी नहीं दिखाई देगी, क्योंकि वहां अन्य दलों की सरकारें हैं, इसलिए ‘मोदी प्रभाव’ नहीं पड़ा है।
 
सुबह से रात तक लगातार काम में जुटे प्रधानमंत्री ने सभी मंत्रियों और सचिवों को पिछले 60 दिन से इसी तरह काम में जोत रखा है। उन्हें निर्देश दिए हैं कि 15 दिन से ज्यादा किसी भी फाइल के ‘‘मूवमेन्ट’’ में समय नहीं लगना चाहिए। इसका असर अब केंद्र सरकार में खूब दिखने लगा है। अगर यह इसी तरह चलता रहा, तो जाहिर है कि प्रांतीय सरकारें भी अपना रवैया बदलने पर मजबूर होंगी।
 
आज तो ज्यादातर प्रांत सरकारों की हालत यह है कि आप कितना भी अच्छा प्रस्ताव ले जाएं, कितना ही केंद्र से अनुदान आ जाएं, पर काम अपने ही तरीके से होता है। काम नहीं होता, काम करने का नाटक होता है। पैसा जिले तक पहुंचते पहुंचते कपूर की तरह काफूर हो जाता है। इससे जनता में भारी हताशा और आक्रोश फैलता है। जो सरकारें इस अव्यवस्था को दूर करने में सफल रही हैं, उन्हें जनता बार-बार चुनकर भेजती है। पर मोदी की कार्यशैली इस सबसे बहुत आगे है। वे हर व्यक्ति से समयबद्ध कार्यक्रम के तहत लक्ष्यपूर्ति की अपेक्षा करते हैं। ऐसा न करने वालों को दरवाजा दिखाने में उन्हें संकोच नहीं होता। क्या हमारी प्रांतीय सरकारें इससे कुछ सबक लेंगी ?

Monday, July 14, 2014

बढ़ती जा रहीं है देश की समस्याएं और चिंताएं


देश में समस्याएं और चिंताएं बढ़ती जा रही है | हाल ही में लोकसभा के चुनावों के दौरान इन समस्याओं को जनता के सामने बार बार रख कर सभी राजनेतिक दलों ने अपनी अपनी समझ से उपाए रखे और वादे किये | लोगों ने नरेन्द्र मोदी में भरोसा जताया | उनकी स्पष्ट बहुमत की सरकार बन गयी |

स्थायी समस्याओं के रूप में सरकार के सामने – महंगाई भ्रष्टाचार और बेरोज़गारी है | महंगाई घटती नहीं दिखती, भ्रष्टाचार की स्थिति का पता नहीं है और रोज़गार इतनी बड़ी समस्या है कि विकास की बात कहने के अलावा किसी के पास कभी कोई योजना होती ही नहीं है |

महंगाई को लेकर पिछली सरकार के खिलाफ सतत विरोध अभियान चलाया गया था | मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि यूपीए सरकार इसी मुद्दे पर हारी थी | इस आधार पर हम अनुमान लगा सकते हैं कि नई सरकार के सामने सबसे पहले करने के लिए यही काम होना चाहिए था | संयोगवश और परंपरावश रेल बजट और आम बजट को इन्ही दिनों पेश होना था | रेल बजट के पहले रेल किराये और भाड़ा बढ़ाना पड़ा | सरकार ने खूब तर्क दिए और मजबूरियां बताई लेकिन नई सरकार की छवि को मजबूरी से किये गए इस काम से काफी नुक्सान पहुंचा है | जबकि सरकार चाहती तो यही काम करने के पहले जनता को जागरूक बना सकती थी | रेलवे पर श्वेतपत्र लाकर यह काम किया जा सकता था | और अगर श्वेतपत्र लाने में देर हो जाने का तर्क था तो वैसे में कम से कम रेलवे की वास्तविक स्थिति का प्रचार तो सरकार कर ही सकती थी |

लगातार रोजी-रोटी के जुगाड़ में लगी जनता बजट की बारीकी और आर्थिक बातों की गहराई समझ नहीं पाती | वह तो अपनी रोज़मर्रा की समस्याओं से निजात चाहती है और जबतक निजात ना मिले तो कुछ राहत चाहती है | महंगाई के मोर्चे पर वह राहत जनता को महसूस नहीं हुई | हालांकि वित्त मंत्री ने अपने व्यक्तित्व के हिसाब से दलीलें दीं, लेकिन इन्ही वित्त मंत्री को लोगों ने चुनाव के दौरान भी सुना था | उनके भाषणों के उस दौर को गुज़रे हुए अभी दो महीने भी नहीं हुए हैं | जो भी हुआ हो लेकिन अब एक ही स्थिति बनती है कि देश के वास्तविक हालात की जानकारी समझने लायक अंदाज़ में दी जाये और महंगाई से निपटने के कुछ फौरी उपाए भी किये जायें | यह बात कुछ ज्यादा गंभीर इसलिए भी है क्योंकि – अच्छा मौसम आने वाला है इस खुशफ़हमी में नहीं रहा जा सकता | इस साल बारिश के अब तक के आंकड़े निराशाजनक हैं | इस आसमानी आफत से सुल्तानी तरीके से कैसे निपटा जाये यह चुनौती खड़ी हो गयी है | वैसे बारिश के चार महीनों में अभी सिर्फ एक महीना ही गुज़रा है | इसमें हमें 40-50 फीसद पानी मिला है | लेकिन इसके आधार पर पता नहीं क्यों सूखे की आशंकाएं जताए जाने लगी हैं | यानी ऐसी आशंकाएं जताने में कहीं जल्दबाजी तो नहीं हो रही है | और अगर दुर्भाग्य से वैसा हुआ भी तब भी अभी से ऐसी आशंकाओं से महंगाई के हालात और ज्यादा बिगड़ सकते है |

साग सब्जियों, दाल और अनाज के व्यापारी बाज़ार की ‘धारणाओं’ से चलते हैं | सूखे और दूसरी आसमानी आफत की ज्यादा बातें फ़िज़ूल इसलिए भी हैं क्योंकि ऐसी आफतों से निपटने का उपाय हम जैसे देश अभी ढूंढ नहीं पाए हैं | प्रकृति बार बार चेता कर हमें जल संरक्षण सीखने का सुझाव देती है | लेकिन पता नहीं क्यों यह राजनैतिक मुद्दा नहीं बनता | यह बात चुनावी घोषणापत्रों में नहीं आती | हो सकता है इसका कारण यह हो कि इस काम के लिए लंबा समय चाहिए | जबकि सामान्य अनुभाव यह है कि हम चाहे सरकार गिराना हो और चाहे सरकार बनाना हो सिर्फ फौरी बातों का ही सहारा लेते हैं |

नए राजनैतिक माहौल में ऐसी बातें किन्हें पसंद आएँगी इसका अनुमान तो अभी नहीं लगाया जा सकता | लेकिन यह तय है कि जटिल समस्याओं के समाधान में लंबे सोच विचार की ज़रूरत पड़ती है और मजबूरी में दीर्घकालिक योजनाएं बनानी पड़ती हैं | खासतौर पर महंगाई जैसी फौरी समस्याओं के समाधान को भी हम जलप्रबंधन जैसे उपायों के संदर्भ में क्यों नहीं देख सकते |

पिछले एक महीने की बारिश में हमें सामान्य से आधा पानी मिला | अगर दुनिया के कुछ क्षेत्रों को देखें तो उनके यहाँ अपने देश की कुल औसत बारिश से एक चौथाई औसत बारिश से ही काम चल जाता है यह उनके जलप्रबंधन का कमाल है | और हैरत की बात यह है कि हमारे देश के और प्रदेशों के जल संसाधान मंत्री लगभग हर साल उन क्षेत्रों में दौरा करने जाते हैं और लौट कर तारीफें भी करते हैं लेकिन वैसा कुछ कर नहीं पाते | सामान्य अनुभव है कि वैसा करने के लिए पैसे की कमी का रोना रोया जाता है | लेकिन सवाल यह उठता है कि जब दूसरे क्षेत्रों में विदेशी निवेश का उपाय हम अपना लेते हैं तो इतने महत्वपूर्ण क्षेत्र में यानी जलप्रबंधन के क्षेत्र में विदेशी निवेश की छूट के नफे नुक्सान पर हम क्यों नहीं सोचते?

Monday, June 30, 2014

मोदी सरकार का मूल्यांकन करने में जल्दबाजी न करें

    महंगाई कुछ बढ़ी है और कुछ बढ़ने के आसार हैं। इसी से आम लोगों के बीच हलचल है। जाहिर है कि सीमित आय के बहुसंख्यक भारतीय समाज को देश की बड़ी-बड़ी योजनाओं से कोई सरोकार नहीं होता। उसे तो अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में राहत चाहिए। थोड़ी-सी हलचल उसे विचलित कर देती है। फिर कई छुटभइये नेताओं को भड़काने का मौका मिल जाता है। यह सही है कि जब-जब महंगाई बढ़ती है, विपक्षी दल उसके खिलाफ शोर मचाते हैं। पर इस बार परिस्थितियां फर्क हैं। नरेंद्र मोदी को सत्ता संभाले अभी एक महीना भी नहीं हुआ। इतने दिन में तो देश की नब्ज पकड़ना तो दूर प्रधानमंत्री कार्यालय और अपने मंत्रीमंडल को काम पर लगाना ही बड़ी जिम्मेदारी है। फिर दूरगामी परिणाम वाले नीतिगत फैसले लेने का तो अभी वक्त ही कहां मिला है।
    वैसे भी अगर देखा जाए तो आजादी के बाद पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी है। अब तक जितनी भी सरकारें बनीं, वे या तो कांग्रेस की थीं या कांग्रेस से निकले हुए नेताओं की थी। अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार भी उन बैसाखियों के सहारे टिकी थी, जिनके नेता कांग्रेस की संस्कृति में पले-बढ़े थे। इसलिए उसे भी गैर कांग्रेसी सरकार नहीं माना जा सकता। जबकि नरेंद्र मोदी की सरकार पूरी तरह गैर कांग्रेसी है और संघ और भाजपा की विचारधारा से निर्देशित है। इसलिए यह उम्मीद की जानी चाहिए कि यह सरकार अपनी नीतियों और कार्यशैली में कुछ ऐसा जरूर करेगी, जो पिछली सरकारों से अलग होगा, मौलिक होगा और देशज होगा। जरूरी नहीं कि उससे देश को लाभ ही हो। कभी-कभी गलतियां करके भी आगे बढ़ा जाता है। पर महत्वपूर्ण बात यह होगी कि देश को एक नई सोच को समझने और परखने का मौका मिलेगा।
    नरेंद्र मोदी सरकार को लेकर सबसे बड़ा आरोप यह लग रहा है कि इसके मंत्रिमंडल में नौसिखियों की भरमार है। इसलिए इस सरकार से कोई गंभीर फैसलों की उम्मीद नहीं की जा सकती। यह सोच सरासर गलत है। आज दुनिया के औद्योगिक जगत में महत्वपूर्ण निर्णय लेने की भूमिका में नौजवानों की भरमार है। जाहिर है कि ये कंपनियां धर्मार्थ तो चलती नहीं, मुनाफा कमाने के लिए बाजार में आती हैं। ऐसे में अगर नौसिखियों के हाथ में बागडोर सौंप दी जाए, तो कंपनी को भारी घाटा हो सकता है। पर अक्सर ऐसा नहीं होता। जिन नौजवानों को इन औद्योगिक साम्राज्यों को चलाने का जिम्मा सौंपा जाता है। उनकी योग्यता और सूझबूझ पर भरोसा करके ही उन्हें छूट दी जाती है। परिणाम हमारे सामने है कि ऐसी कंपनियां दिन दूनी रात चैगुनी तरक्की कर रही हैं। मोदी मंत्रिमंडल में जिन्हें नौसिखिया समझा जा रहा है, हो सकता है वे अपने नए विचारों और छिपी योग्यताओं से कुछ ऐसे बुनियादी बदलाव करके दिखा दें, जिसका देश की जनता को एक लंबे अर्से से इंतजार है।
    रही बात महंगाई की तो विशेषज्ञों का मानना है कि सब्सिडी की अर्थव्यवस्था लंबे समय तक नहीं चल सकती। लोगों को परजीवी बनाने की बजाय आत्मनिर्भर बनाने की व्यवस्था होनी चाहिए। इसके लिए कुछ कड़े निर्णय तो लेने पड़ेंगे। जो शुरू में कड़वी दवा की तरह लगंेगे। पर अंत में हो सकता है कि देश की अर्थव्यवस्था को निरोग कर दें। हां, इस दिशा में एक महत्वपूर्ण सवाल कालेधन को लेकर है। कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करने के लिए भाजपा ने विदेशों में जमा कालाधन भारत लाने की मुहिम शुरू की थी। जिसे बड़े जोरशोर से बाबा रामदेव ने पकड़ लिया। बाबा ने सारे देश में हजारों जनसभाएं कर और अपने टी.वी. पर हजारों घंटे देशवासियों को भ्रष्टाचार खत्म करने और विदेशों में जमा कालाधन वापिस लाने के लिए कांग्रेस को उखाड़ फेंकने का आह्वान किया था। बाबा मोदी सरकार से आश्वासन लेकर फिर से अपने योग और आयुर्वेद के काम में जुट गए हैं। अब यह जिम्मेदारी मोदी सरकार की है कि वह यथासंभव यथाशीघ्र कालाधन विदेशों से भारत लाएं। क्योंकि जैसा कहा जा रहा था कि ऐसा हो जाने पर हर भारतीय विदेशी कर्ज से मुक्त हो जाएगा और अर्थव्यवस्था में भारी मजबूती आएगी। इसके साथ ही देश में भी कालेधन की कोई कमी नहीं है। चाहे राजनैतिक गतिविधियां हों या आर्थिक या फिर आपराधिक, कालेधन का चलन बहुत बड़ी मात्रा में आज भी हो रहा है। इसे रोकने के लिए कर नीति को जनोन्मुख और सरल बनाना होगा। जिससे लोगों में कालाधन संचय के प्रति उत्साह ही न बचे। जिनके पास है, वे बेखौफ होकर कर देकर अपने कालेधन को सफेद कर लें।
    जैसा कि हमने मोदी की विजय के बाद लिखा था, राष्ट्र का निर्माण सही दिशा में तभी होगा, जब हर भारतीय अपने स्तर पर, अपने परिवेश को बदलने की पहल करे। नागरिक ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित हो, इसके लिए प्रधानमंत्री को जनता का विशेषकर युवाओं का राष्ट्रव्यापी आह्वान करना होगा। उन्हें आश्वस्त करना होगा कि अगर वे जनहित में सरकारी व्यवस्था से जवाबदेही या पारदर्शिता की अपेक्षा रखते हैं, तो उन्हें निराशा नहीं मिलेगी। इसकी शुरूआत नरेंद्र भाई ने कर दी है। दिल्ली की तपती गर्मी में ठंडे देशों में दौड़ जाने वाले बड़े अफसर और नेता आज सुबह से रात तक अपनी कुर्सियों से चिपके हैं और लगातार काम में जुटे हैं। क्योंकि प्रधानमंत्री हरेक पर निगाह रखे हुए हैं। उनका यह प्रयास अगर सफल रहा, तो राज्यों को भी इसका अनुसरण करना पड़ेगा। साथ ही नरेंद्र भाई को अब यह ध्यान देना होगा कि जनता की अपेक्षाओं को और ज्यादा न बढ़ाया जाए। जितनी अपेक्षा जनता ने उनसे कर ली हैं, उन्हें ही पूरा करना एक बड़ी चुनौती है। इसलिए हम सबको थोड़ा सब्र रखना होगा और देखना होगा कि नई सरकार किस तरह बुनियादी बदलाव लाने की तरफ बढ़ रही है।