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Sunday, October 9, 2011

चौपट होते पर्यटन स्थल

Rajasthan Patrika 09 Oct 2011
केरल की राजनीति हमेशा चर्चा में रहती है। केरल के लोग जब राष्ट्रीय क्षितिज पर आते हैं, तो भी तरंगें पैदा करते हैं। पर आज बात केरल की राजनीति की नहीं, केरल के समुद्र तट पर उठने वाली तरंगों की करनी है। इन तरंगों की कोई सुध भारत सरकार का पर्यटन मंत्रालय नहीं ले रहा। नतीजतन आय का बहुत बड़ा स्रोत बेकार गंवाया जा रहा है।

हजारों साल से दुनियाभर के लोगों को भारत आकर्षित करता रहा है। तीर्थाटन, व्यापार या पर्यटन के लिए सैलानी दुनिया के हर कोने से भारत आते रहे हैं। उदारीकरण के दौर में जब भारत के झण्डे दुनिया में गढ़ रहे हैं, तो भारत के प्रति उत्सुकता और भी बढ़ रही है। पर ऐसा लगता है कि भारत सरकार का पर्यटन मंत्रालय आज भी बेसुध पड़ा सो रहा है। उसे देश के पर्यटन को बढ़ाने की कोई चिंता नहीं है।

मैं इन दिनों केरल के दौरे पर हूँ। मुझे यह जानकर भारी तकलीफ हुई कि भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय या जहाजरानी मंत्रालय ने आज तक केरल के खूबसूरत समुद्री तट का अन्तर्राष्ट्रीय सैलानियों के लिए रास्ता नहीं खोला है। दुनिया के छोटे-छोटे देशों में पानी के जहाज पर पर्यटकों को ले जाने के लिए क्रूज के अनेको विकल्प प्रस्तुत किए गये हैं, जिनसे इन देशों को अच्छा-खासा मुनाफा हो रहा है। केरल के समुद्र तट पर मुम्बई, गोवा से कोचीन और तिरूवंतपुरम होते हुए कन्याकुमारी जाने तक का समुद्री मार्ग इतना आकर्षक है कि अगर इस पर क्रूज की व्यवस्था की जाती, तो अब तक सैंकड़ों करोड़ रूपये का मुनाफा हो जाता। लोग केरल के तट से लक्षद्वीप या मालद्वीप जैसी जगह तो जाते ही, तट पर ही रूके रहने का भी आनन्द लेते। कोचीन पोर्ट ट्रस्ट पर आकर पता चला कि भारत का अपना कोई भी क्रूज नहीं है। जिससे स्थानीय लोगों में भी भारी आक्रोश है। क्योंकि उन्हें लगता है कि उनकी आमदनी और रोजगार को बढ़ाने वाला यह काम सरकार की अदूरदर्शिता के कारण आज तक नहीं किया गया।

विदेशी ही क्यों, देशी पर्यटक भी कोई कम उत्साही और साधन सम्पन्न नहीं हैं। ताजा आंकड़ों के अनुसार भारत से यूरोप, दक्षिण पूर्वी एशिया, ईजिप्ट और तुर्की व चीन घूमने जाने वाले पर्यटकों की तादाद में पिछले कुछ वर्षों में भारी इजाफा हुआ है। एक उदाहरण से इस बात को अच्छी तरह समझा जा सकता है। स्विट्जरलैंड के पर्यटन स्थल ‘इंटरलाकेन’ में दस वर्ष पहले हिन्दुस्तानी इक्के-दुक्के दिखाई देते थे। आज इस ‘हिल स्टेशन’ पर ऐसा लगता है, मानो यह शिमला हो। क्योंकि हर तरफ हिन्दुस्तानी ही नजर आते हैं। जब भारत के लोग इतना खर्चा करके विदेशों में नये-नये पर्यटन स्थलों की खोज में भटक रहे हैं, तो क्यों नहीं देश के पर्यटन स्थलों को तेजी से विकसित किया जाता? इससे न सिर्फ रोजगार बढ़ेगा, बल्कि देश का पैसा, विदेश जाने से रूकेगा और विदेशी पर्यटकों के आने से आमदनी भी बढ़ेगी। जितनी विविधता भारत में है, उतनी दुनिया के दो-चार देशों में ही है। एक तरफ कश्मीर के बर्फ से ढके पहाड़, दूसरी तरफ तट से टक्करें मारतीं समुद्री लहरें; पश्चिम में रेगिस्तान की खूबसूरत संस्कृति और पूर्वोत्तर भारत में जनजातीय संस्कृति के अनूठे नमूने किसी भी पर्यटक को विभोर करने में सक्षम हैं। पर पर्यटन की दृष्टि से हमारे यहाँ आधारभूत सुविधाओं की भारी कमी है। जो कुछ अच्छा है, उसे निजी क्षेत्र ने विकसित किया है। स्थानीय नगरपालिकाऐं व प्रांतीय सरकारें अपने पर्यटन स्थलों को चैपट करने में कसर नहीं छोड़ते। राजनैतिक दखलअंदाजी के चलते, इन पर्यटन स्थलों पर अवैध निर्माण, प्रकृति से खिलवाड़, कूड़े के अम्बार, यात्री सुरक्षा की नाकाफी सुविधाऐं, कुछ ऐसे कारण हैं जो भारी मात्रा में पर्यटकों को हमारे देश की ओर आकर्षित नहीं कर पाते।

एक समग्र दृष्टि की जरूरत है। ऐसी पहल हो कि क्षेत्रीय प्रशासन से केन्द्रीय सरकार तक, निजी क्षेत्र से लेकर सार्वजनिक क्षेत्र तक के लोग मिल-बैठकर भारत के पर्यटन स्थलों को समयबद्ध कार्यक्रम के तहत विकसित करने की योजनाऐं बनाऐं और उन्हें समय से पूरा करें, तो भारत की अर्थव्यवस्था में काफी लाभ हो सकता है।

मेरा खुद का अनुभव इस विषय में बहुत ज्यादा उत्साहवर्धक नहीं है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश और हरियाणा की सीमा से लगे ‘ब्रज क्षेत्र’ को सुन्दर स्वरूप देने के लिए मैं स्वंयसेवी स्तर पर गत् 7 वर्षों से सक्रिय हूँ। पर व्यवस्था का सहयोग इतना धीमा और थका देने वाला होता है कि कभी-कभी लगता है कि हमारे पर्यटन क्षेत्र विकसित होने से पहले ही अनियोजित विस्तार के कारण कूड़े के ढेर में बदल जाऐंगे। जैसा आज हो रहा है। इस तरह हम न सिर्फ वर्तमान को नष्ट कर रहे हैं, बल्कि भविष्य की पीढ़ी को भी निराश कर रहे हैं।