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Sunday, January 4, 2009

नये साल में हो नैतिकता की बात

Rajasthan Patrika 04-01-2009
जब देश में चारों ओर प्रशासनिक ढाँचें में तेजी से नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा हो तो सकारात्मक सोच की मशाल जलाना असम्भव लगता है। पर संतोष की बात यह है कि आज इस माहौल में भी ऐसे तमाम लोग देश में हैं जो सरकार और समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना के लिए लगातार तत्पर हैं। नये वर्ष में नकारात्मक जीवन मूल्यों पर टिप्पणियों की बजाय बेहतर होगा कि ऐसी सकारात्मक सोच पर एक नजर डाली जाए। 

पहला उदाहरण उत्तर प्रदेश का है। जहाँ शासन में बैठे लोगों में सकारात्मक सोच और नैतिक मूल्यों की स्थापना के उद्देश्य से गत 18 वर्षों से कबीर शांति मिशनचलाने वाले व्यक्ति कोई संत या समाज सुधारक नही हैं। बल्कि उत्तर प्रदेश काॅडर के ही एक वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारी श्री राकेश मित्तल हैं। श्री मित्तल से मिलने वाला आम आदमी ही नहीं आई.ए.एस. अधिकारी भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। पिछले दिनों एक युवा आई.ए.एस. अधिकारी श्री राजन शुक्ला के कक्ष में जिस तरह का स्वागत हुआ, वैसा आज के माहौल में कल्पना करना असम्भव है। श्री शुक्ला ने पहली ही मुलाकात में तत्परता से स्वागत किया और अपना जरूरी काम छोड़कर ब्रज की धरोहरों की रक्षा के संदर्भ में हमारी बात ध्यान से सुनी और उस पर फौरन कार्यवाही करी। जब हम उठने को हुए तो शुक्ला लौंग इलायची का डिब्बा खोलकर खड़े हो गए। इस अप्रत्याशित व्यवहार का कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि वे कबीर शांति मिशन के सदस्य हैं। जिसके संस्थापक श्री मित्तल से वे बेहद प्रभावित हैं। उत्तर प्रदेश शासन में ऐसे अनेक उदाहरण हैं। श्री मित्तल सेवा, सादगी, विनम्रता, सद्भावना और कर्तव्यपरायणता का पर्याय हैं। उनका निजी जीवन जितना दुःखद है, उतना ही सुख उन्होंने जीवनभर दूसरों को बाँटा है। उनके दो जवान खूबसूरत, पढ़े-लिखे बेटे एक ऐसी गम्भीर बीमारी से ग्रस्त हैं कि उनकी शौच आदि जैसी प्रतिदिन की नितांत निजी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी उन्हें अपने माता-पिता की मदद लेनी पड़ती है क्योंकि उनके अंग उनका साथ नहीं देते। आई.आई.टी. रूढकी के टाॅपर रहे श्री मित्तल ने इस चुनौती को भी सेवा का अवसर मानकर जीया है। वे किसी भी नकारात्मक विचार को अपने पास फटकने नहीं देते। परनिन्दा में उनकी रूचि नहीं है। वे कहते हैं कि अपना व्यक्तित्व इतना ऊँचा बनाओ कि दूसरे को छोटा कहने की आवश्यकता ही न पड़े। 
ऐसा ही एक उदाहरण दक्षिण भारत में केरल का भी है। वायुसेना में पायलट रहे श्री सच्चिदांनंद एक दुर्घटना के बाद ऐसे जगे कि जीवन की धारा ही बदल गयी। धर्म भारती मिशननाम की संस्था के माध्यम से वे देश और समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना के लिए जुटे हैं। अपने इस मिशन को वे आजादी की दूसरी लड़ाई बताते हैं। उनके प्रयास से केरल के एक महत्वपूर्ण तबके में भारी बदलाव आया है। 
उधर पश्चिमी भारत में अन्ना हजारे की पीढ़ी से बहुत बाद के एक युवा अविनाश धर्माधिकारी आई.ए.एस. की नौकरी भरी जवानी में छोड़कर युवा पीढ़ी के निर्माण में जुटे हैं। अविनाश एक प्राथमिक पाठशाला के शिक्षक के पुत्र हैं। जिन्होंने आर्थिक अभाव और नैतिक सम्पन्नता बचपन से भोगी। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के निजी सचिव पद पर रहते हुए अविनाश को लगा कि जितना आकर्षण इस नौकरी का है, वैसा इसमें कुछ भी नहीं। तुम गुलाम की जिन्दगी जीते हो और चाहकर भी कुछ बहुत ज्यादा समाज के लिए नहीं कर पाते। नौकरी छोड़ दी और अपने गृहनगर पुणे में युवाओं को पढ़ाने के लिए चाणक्य एकेडमी की स्थापना की। इसके माध्यम से अविनाश युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयार करते हैं। पर साथ ही साथ उन्हें नैतिक और सनातन मूल्यों के संस्कार भी देते हैं। चाणक्य एकेडमी की शाखाएँ अब पूरे महाराष्ट्र में फैल चुकी हैं।
देश की राजधानी दिल्ली भी ऐसे प्रयासों से अछूती नहीं। दिल्ली की मैट्रो रेल को ऐतिहासिक सफलता बनाने वाले श्री ई. श्रीधरन अपने व्यस्त जीवन में से समय निकालकर देश में राष्ट्रीय मूल्यों की स्थापना का प्रयास कर रहे है। उनकी संस्था फाउण्डेशन फाॅर रेस्टोरेशन आॅफ नेशनल वैल्यूजइस काम में जुटी है।

राजस्थान के तिलोनिया क्षेत्र में काम करके मजदूरों को उनका हक दिलाने वाली और सूचना के अधिकार की लड़ाई को निर्णायक दौर तक ले जाने वाली अरूणा राय को अब पूरा देश जानता है। अरूणा ने भी युवावस्था में आई.ए.एस. की नौकरी को तिलांजली देकर सच्ची जनसेवा का संकल्प लिया और उसे आज तक निभा रही है।

आज मन्दी का दौर है। कुछ महीनों पहले तक उपभोक्तावाद की आँधी बह रही थी। दोनों ही माहौल में देश का युवा दिग्भ्रमित है। न तो उसे परिवार में और न ही समाज या शिक्षा संस्थानों में नैतिक मूल्यों की खुराक मिल रही है। भटकाव, हवस, असीमित इच्छाएँ, बिना करे मोटा धन कमाने की लालसा उसमें हताशा और हिंसा पैदा कर रही है। चिन्ता की बात तो ये है कि एन.सी.ई.आर.टी. हो या मानव संसाधन मंत्रालय, राज्यों के शिक्षा विभाग हों या शिक्षा संस्थान चलाने वाले इस गम्भीर समस्या के प्रति उतने सचेत नहीं हैं जितना उन्हें होना चाहिए। पिछली पीढ़ी ने तो झेल लिया, क्योंकि तब लोगों की जरूरतें कम थीं। पर अबकी पीढ़ी झेल नहीं पायेगी। समाज में अशांति बढ़ेगी। इसलिए देश में विशेषकर युवाओं में नैतिक मूल्यों के प्रति आदर और उनकी पुर्नस्थापना की भारी जरूरत है। श्री राकेश मित्तल जैसे लोग इस समस्या का हल दे सकते हैं। आवश्यकता है उनके जीवन पर फिल्में बनाकर देश के विद्यालयों में दिखायी जाऐं। ऐसे सभी स्वंयसिद्ध लोगों को एक मंच पर लाया जाए। उनसे देश की शिक्षा और समाज के लिए कुछ नीति और कुछ कार्यक्रम बनाने को कहा जाए। फिर उन कार्यक्रमों को लागू करने में ऐसे लोगों की ही मदद ली जाए। अगर ऐसा होता है तो पतन को काफी हद तक रोकने में मदद मिलेगी। वरना तो देश राम भरोसे चल ही रहा है।