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Sunday, June 12, 2011

आन्दोलन से उठे सवाल

Rajasthan Patrika 12 June11
कौन नहीं चाहता कि देश भ्रष्टाचार से मुक्त हो व कौन नहीं चाहता कि जनता के धन को लूटने वालों को सख्त सजा मिले? सभी राजनैतिक दल अगर ईमानदारी से प्रयास करते तो इन समस्याओं से निज़ात मिल सकती थी। राजनेताओं की इस कोताही से पैदा हुए शून्य को भरने का काम सिविल सोसाइटी के सदस्य करते रहे हैं। हर प्रांत में और लगभग हर मुद्दे पर। चाहें जंगल और पहाड़ काटने का सवाल हो या नदियाँ प्रदूषित करने का या किसानों की भूमि अधिग्रहण का या महिलाओं पर बड़े लोगों के अत्याचार का या पुलिसिया जुल्म का या न्यायपालिका के निकम्मेपन का। अनेक नामों से, अनेक विचारधाराओं के बैनरतले, देश के अलग-अलग हिस्सों के जागरूक नागरिक व्यवस्था के खिलाफ हमेशा से आवाज उठाते रहे हैं। इसलिए यह सोचना कि जो अब हो रहा है, वह अनूठा है या यह सोचना कि जिन पाँच लोगों ने देश के 122 करोड़ लोगों के भविष्य के लिए लोकपाल विधेयक तैयार करने का जिम्मा लिया है, वही सिविल सोसाइटी है-ठीक नहीं होगा। वैसे भी पिछले दिनों की घटनाओं ने यह सिद्ध कर दिया है कि वो चाहें बाबा रामदेव हों या अन्ना हजारे वाली सिविल सोसाइटी, दोनों ही गुटों के कई कार्यकलापों और भाषणों ने समाज में भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है। जबकि दावा यह किया जा रहा है कि देश की विशेषकर भ्रष्टाचार की हर बीमारी का इलाज इनके पास है। 

1970 से आज तक देश में भ्रष्टाचार के विरूद्ध लगातार कई जनान्दोलन हुए और लड़ाईयाँ लड़ी गयीं। पर इन दोनों गुटों ने मीडिया का पूरा उपयोग करके देशभर में उम्मीद जगा दी कि देश से भ्रष्टाचार को ये मिटा देंगे और विदेशों में जमा धन वापस ले आयेंगे। इसके लिए इन्हें बधाई दी जानी चाहिए। 27 फरवरी, 2011 को दिल्ली के रामलीला मैदान में इन सबने मिलकर एक ऐतिहासिक रैली की। जिससे यह सन्देश गया कि अब देश उठ खड़ा होगा और इन लोगों के सद्प्रयास से देशवासियों को इन बुराईयों से मुक्ति मिलेगी।

आश्चर्य की बात है कि अन्ना हजारे ने 27 फरवरी को उसी मंच से जन्तर मन्तर पर अपने उपवास और धरने की कोई घोषणा नहीं की। जबकि उन्होंने उसी समय में अपने करीबी लोगों से दिल्ली में अपने भावी उपवास की चर्चा की थी। अगर उसी मंच पर यह घोषणा भी की होती तो सबके साझे प्रयास से देश में बड़ा भारी माहौल बनता। यह चर्चा नहीं होती कि अन्ना हज़ारे और रामदेव अलग-अलग चल रहे हैं और स्वार्थी तत्व इस स्थिति का फायदा नहीं उठा पाते। अपने इस आचरण के लिए अन्ना हजारे देश की जनता के प्रति जबावदेह हैं। बाबा रामदेव के धरने वाले दिन और उसके बाद राजघाट के अपने धरने के दिनों में बाबा रामदेव को लेकर अन्ना हजारे गुट ने बार-बार विरोधाभाषी बयान दिये हैं। जिससे यह मुहिम कमजोर पड़ी है।

इनके धरने की उपलब्धि यही रही कि इन लोगों ने सरकार के साथ मिलकर लोकपाल विधेयक को समयबद्ध कार्यक्रम के तहत बनाना तय किया। इनका समूह यह दावा करता रहा है कि जनलोकपाल विधेयक को इन लोगों ने कई वर्षों की कड़ी मेहनत से, गहरी कानूनी समझ से, दूरदृष्टि से, सभी सम्भावनाओं को ध्यान में रखते हुए तैयार कर रखा था। जिसे इन लोगों ने देश के सामने भी प्रस्तुत किया। यह बात दूसरी है कि देश के अनेक न्यायविद्, संविधान विशेषज्ञ, व्यवस्था को समझने वाले ईमानदार अधिकारी और भ्रष्टाचार से लम्बी लड़ाई लड़ चुके जागरूक लोग नहीं मानते कि लोकपाल बिल भ्रष्टाचार के हर मर्ज की दवा है।

जो भी हो, अपने विधेयक को सरकारी समिति के सामने प्रस्तुत करने के बाद अब इन पाँचों की इस समिति में कोई भूमिका नहीं बचती। फिर ये बार-बार मीटिंग का नाटक क्यों किया जा रहा है? क्यों मीडिया का इस्तेमाल करके, मुद्दे से हटा जा रहा है? आखिर इनका एजेण्डा क्या है? हमारा सुझाव है कि अब इन पाँच लोगों को सरकारी मीटिंगों का सिलसिला यहीं खत्म कर देना चाहिए। अगर सरकार में इनका विश्वास है तो यह इनके विधेयक को गम्भीरता से लेगी और अगर विश्वास नहीं है तो ये लोग बैठक से कुछ नहीं कर सकते। अन्ना हज़ारे और उनकी टीम बार-बार सरकार के मंत्रियों की कड़ी शब्दों में भत्र्सना कर रही है। फिर क्यों बैठक में जाना चाहती है?

हाँ, इनके विधेयक के सम्बन्ध में कुछ सुझाव हैं जिनके बिना भ्रष्टाचार से लड़ाई में कामयाबी नहीं मिल सकती। मसलन (1) लोकपाल अगर भ्रष्ट आचरण करे तो उसके लिए इसी विधेयक में अनुकरणीय सख्त सजा का प्रावधान कर देना चाहिए। (2) सिविल सोसाइटी को भी लोकपाल के दायरे में लाया जाए। क्योंकि सिविल सोसाइटी के अधिकतम लोग विदेशी पैसे से और विदेशी नीतियों के अनुसार काम करते हैं। जो प्रायः हमारे देश के हित में नहीं होतीं। (3) संयुक्त राष्ट्र संगठन की इकाईयाँ, विश्व बैंक, विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ और विदेशी बहुराष्ट्रीय बैंकों के भारत में कार्यकलापों को भी लोकपाल के दायरे में लाना अत्यंत आवश्यक है। नौकरशाही व राजनेताओं पर अनुचित दबाव डालकर ये संस्थाऐं हमारे देश में नीतिगत परिवर्तन करवाती हैं। जिसके कारण कई बड़े घोटालों में इनकीे गम्भीर भूमिका पायी गयी है।

उधर बाबा रामदेव बिना सबूत के कहते हैं कि चार सौ लाख करोड़ रूपया विदेशों में जमा है। ऐसा दावा करने से पहले उसके सबूत जनता के सामने प्रस्तुत करने चाहिऐं। अगर वे इन तथ्यों को प्रकाशित नहीं करना चाहते तो कम से कम यह आश्वासन देश को जरूर दें कि इस दावे के समर्थन में उनके पास समस्त प्रमाण उपलब्ध हैं। अन्यथा यह बयान गैर जिम्मेदाराना माना जाएगा और देश की आम जनता के लिए बहुत घातक होगा, जिसे वे सुनहरा सपना दिखा रहे हैं।

विदेशों में जमा धन देश में लाकर गरीबी दूर करने का बयान देकर बाबा रामदेव जो सपना दिखा रहे हैं, वैसा होने वाला नहीं है। पहली बात यह धन वे नहीं सरकार लायेगी, चाहें वह किसी भी दल की हो और उसे खर्च भी वही सरकार करेगी। तो बाबा कैसे उस पैसे से गरीबी दूर करने का दावा करते हैं? बाबा रामदेव कहते हैं कि विदेशों से यह धन लाकर देश में विकास कार्यों की रफ्तार तेज करेंगे। शायद वे जानते ही होंगे कि इस तरह के अंधाधुंध व जनविरोधी विकास कार्यों से ही ज्यादा भ्रष्टाचार पनपता रहा है। फिर वे देश की जमीनी हकीकत को अनदेखा क्यों करना चाहते हैं? वे गरीबी दूर करने की बात करते हैं और खुद का एजेण्डा तो योग व आयुर्वेद को भी व्यापार की तरह चलाने का है। फिर गाँव और गरीब को वे कैसे आत्मनिर्भर बनायेंगे? वे तो भारत की सनातन संस्कृति का ही निगमीकरण कर रहे हैं और धन का केन्द्रीयकरण कर रहे हैं। इससे गरीबी कैसे मिटेगी? उन्हें देश को समझाना चाहिए। जिससे कोई भ्रम न रहे।

रामदेव जी अनेक मुद्दों पर आपके अनेक बयान बिना गहरी समझ के, जाने-अनजाने देते रहे हैं जिससे जनता की भावनाऐं भड़की हैं। इससे आम जनता में भ्रम की स्थिति पैदा हो रही है। उन्हें इससे बचना चाहिए। रामलीला मैदान में जो कुछ हुआ उसकी जितनी भत्र्सना की जाए कम है। पर जिस तरह बाबा रामदेव ने उस माहौल से बचकर भागने की नाकाम कोशिश की, उससे यह सिद्ध हो गया कि जनान्दोलन का उन्हें न तो कोई अनुभव है और न कोई तैयारी। हम इन्हीं लेखों के माध्यम से बाबा को गत् 2 वर्षों से चेतावनी देते आये हैं कि देश की राजनैतिक जटिलताओं को समझे बिना परिवर्तन की लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती। पर उन्होंने इस चेतावनी को गम्भीरता से नहीं लिया। ताजा घटनाक्रम इसका प्रमाण है।

हम अन्ना हजारे जी और बाबा रामदेव को एकसाथ मानते हैं और इसलिए उनको यह भी याद दिलाना चाहते हैं कि आतंकवादी ताकतें, माओवादी ताकतें और साम्प्रदायिक ताकतें विदेशी ताकतों के हाथ में खेलकर इस देश में ‘सिविल वाॅर’ की जमीन तैयार कर चुकी हैं। जरा सी अराजकता से चिंगारी भड़क सकती है। इन ताकतों से जुड़े कुछ लोग इनके खेमों में भी चालाकी से घुस रहे हैं। इसलिए इनको भारी सावधानी बरतनी होगी। कहीं ऐसा न हो कि इनकी असफलता जनता में हताशा और आक्रोश को भड़का दे और उसका फायदा ये देशद्रोही ताकतें उठा लें। इन परिणामों को ध्यान में रखकर ही अगर ये लोग अपनी रणनीति बनायें तो देश और समाज के लिए अच्छा रहेगा।