Monday, April 2, 2018

राजनीति से असली मुद्दे नदारद

देश में हर जगह कुछ लोग आपको ये कहते जरूर मिलेंगे कि वे मोदी सरकार के कामकाज से संतुष्ट नहीं हैं क्योंकि मजदूर किसान की हालत नहीं सुधरी, बेरोजगारी कम नहीं हुई, दुकानदार या मझले उद्योगपति अपने कारोबार बैठ जाने से त्रस्त हैं, इन सबको लगता है कि 4 वर्ष के बाद भी उन्हें कुछ मिला नहीं बल्कि जो उनके पास था, वो भी छिन गया। जाहिर है इसकी खबर मोदी जी को भी होगी। खुफिया तंत्र अगर ईमानदारी से मोदी जी को सूचनाऐं पहुंचा रहा होगा, तो उसकी भी यही रिर्पोट होगी। ऐेसे में 2019 का चुनाव भाजपा को बहुत भारी पड़ना चाहिए। पर ऐसा है नहीं।

इसके दो कारण हैं। ऐसी हताशा के बाद भी शहर का मध्यम वर्गीय हिंदु ये मानता है कि और कुछ हुआ हो या न हुआ हो, पर मोदी सरकार या उनके योगी जैसे मुख्यमंत्रियों ने अलपसंख्यकों को काबू कर लिया है। अगर ये दोबारा सत्ता में नही आऐ, तो अल्पसंख्यक फिर समाज पर हावी हो जायेंगे। मोदी पर निर्भरता का दूसरा कारण ये है कि विपक्ष में बहुत बिखराव है और उसका किसी एक नेता के साये तले इकट्टा होना आसान नहीं लगता।

यहां सोचने वाली बात यह है कि हिंदू समाज के मन में ये भावना क्यों पैदा हुई? कारण स्पष्ट है कि गैर भाजपाई सरकारों ने अल्पसंख्यकों के लिए कुछ ठोस किया हो या न किया हो, पर उन्हें विशेष दर्जा देकर निरंकुश तो जरूर बनाया। जबकि भाजपा ने ये संदेश स्पष्ट दिया है कि भाजपा की सरकार दिखाने को भी अल्पसंख्यकों के धर्म को अनावश्यक बढ़ावा नहीं देगी। जबकि हिंदू धर्म में त्यौहारों में खुलकर अपनी आस्था प्रकट करेगी। जाहिर है कि ये भंगिमा हिंदूओं के लिए बहुत आश्वस्त करने वाली है। इसलिए वे भाजपा के नेतृत्व में अपना भविष्य सुरक्षित देखते हैं। उनकी इसी कमजोरी को भुनाने का काम भाजपा अगले चुनावों में जमकर करेगी।

मगर यहां एक पेंच है, मध्यम वर्गीय लोगों को तो धर्म के नाम पर आकर्षित किया जा सकता है, पर बहुसंख्यक किसान मजदूरों को धर्म के नाम पर नहीं उकसाया जा सकता। सिवाय इसके कि उनकी वाजिब मांगे पूरी की जाऐ। जिससे उनकी जिंदगी में खुशहाली आती। देश का किसान रात दिन जाड़ा गर्मी बरसात सहकर मेहनत करता है। फिर भी उसकी तरक्की नही होती। जबकि बैंक लूटने वाले बिना कुछ किए रातों रात हजारो करोड़ कमा लेते हैं। इसलिए वे मन ही मन नाराज हैं और चुनावों को प्रभावित करने की सबसे ज्यादा ताकत रखते हैं।

सरकारें तो आती-जाती है, पर चिंता की बात ये है कि असली मुद्दे हमारी राजनीतिक बहस से नदारद हो गए हैं। किसानों को सिंचाई की भारी दिक्कत है। भूजल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है। जमीन की उर्वरकता घट रही है। खाद के दाम लगातार बढ़ रहे हैं। फसल के वाजिब दाम बाजार में मिलते नहीं। नतीजतन किसान कर्जे में डूबते जा रहे हैं और कर्जा न चुका पाने की हालत में लगातार आत्महत्याऐं हो रही हैं। ये भयावह स्थिति है।

उधर देश का युवा, जिसने अपने मां-बाप की गाढ़ी कमाई खर्च करके बीटैक और एमबीए जैसी डिग्रियां हासिल की, उसे चपरासी तक की नौकरी नहीं मिल रही। इससे युवाओं में भारी हताशा है और ये युवा कहते हैं कि हम ‘पकौड़ी बेचकर‘ जीवन बिताना नहीं चाहते। यही हाल देश की शिक्षण और स्वास्थ सेवाओं का है, जो देश के ग्रामीण अंचलों में सिर्फ कागजों पर चल रही है। जिसमें अरबों रूपया बर्बाद हो रहा है। पर जनता को लाभ कुछ भी नहीं हो रहा। ये भी भयावह स्थिति है।

बैंकों से अरबों रूपया निकालकर विदेश भागने वाले नीरव मोदी जैसे लोगों ने आम भारतीय का बैंकिंग व्यवस्था में, जो विश्वास था, उसे तोड़ दिया है। इससे समाज में हताशा फैली है।

उधर न्यायपालिका के लिए जो लिखा जाए, सो कम। जिस किसी का भी न्यायपालिका से किसी भी स्तर पर वास्ता पड़ा है, वो बता सकता है कि वहां किस हद तक भ्रष्टाचार व्याप्त है। पर न्याय व्यवस्था को सुधारने के लिए किसी सरकार ने आजतक कोई ठोस प्रयास नही किया गया।

ये कहना सही नही होगा कि किसी सरकार ने कभी कुछ नही किया। पिछली सरकारों ने भी कुछ किया तभी भारत यहां तक पहुंचा और मोदी सरकार भी बहुत से ऐसे काम करने में लग रही है, जिससे हालात बदलेंगे। पर बाबूशाही की प्रशासनिक व्यवस्था इतनी जटिल और आत्म मुग्ध हो गयी है कि उसे इस बात की कोई चिंता नही है कि धरातल तक उसकी योजनाओं का सच क्या है। इसलिए अच्छी भावना और अच्छी नीति भी कागजों तक ही सीमित रह जाती हैं। इस रवैये को बदलने की जरूरत है।

पर इन सब मुद्दों पर आजकल बात नहीं हो रही, न मीडिया में और न राजनीति में। जिन मुद्दों पर बात हो रही है, वो मछली बाजार की बातचीत से ज्यादा ऊचे स्तर की नही है। असली मुद्दों की बात हो और समाधान मूलक हो, तो देश का कुछ भला हो। आज जरूरत इसी बात की है कि देशवासी इन बुनियादी सवालों के हल खोजें और उन्हें लागू करने के लिए माहौल बनाये।

अब बात करें अल्पसंख्यकों की, तो ये सच है कि किसी भी सरकार ने अल्पसंख्यकों का कोई ठोस भला नहीं किया। केवल उनका प्रयोग किया और उन्हें सार्वजनिक महत्व देकर खुश करने की कोशिश की गयी। जिसके विपरीत परिणाम आज सामने आ रहे हैं। बहुसंख्यक मध्यमवर्गीय समाज के मन मे ये बात बैठ गयी है कि भाजपा ही अल्पसंख्यकों को उनकी सीमा में रख सकती है, अन्य कोई दल नही। यही बात मोदी जी के खाते में कही जा रही है और इसलिए वे 2019 के आम चुनावों में इसी मुद्दे पर जोर देंगे। ताकि बहुसंख्यकों की भावनाओं को वोट में बदल सकें। काश हम सब देश में असली मुद्दों पर बात और काम कर पाते तो देश के हालात कुछ बदलते।

Monday, March 12, 2018

क्या नागरिक उड्डयन मंत्रालय का भ्रष्टाचार दूर करेंगे सुरेश प्रभु ?

नागरिक उड्डयन मंत्रालय का कार्यभार सुरेश प्रभु को सौंप कर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने एक सकारात्मक संकेत दिया है| उल्लेखनीय है कि यह मंत्रालय पिछले एक दशक से भ्रष्टाचार में गले तक डूबा हुआ है | हमने कालचक्र समाचार ब्यूरो के माध्यम से इस मंत्रालय के अनेकों घोटाले उजागर किये और उन्हें सप्रमाण सीबीआई और केन्द्रीय सतर्कता आयोग को लिखित रूप से सौंपा और उम्मीद की कि वे इस मामले में केस दर्ज कर जांच करेंगे| लेकिन यह बड़ी चिंता और दुःख की बात है कि पिछले तीन साल में बार बार याद दिलाने के बावजूद इन घोटालों की जांच का कोई गम्भीर प्रयास इन एज्नेसियों द्वारा नहीं किया गया| जबकि भ्रष्टाचार की जांच करने की ज़िम्मेदारी इन्ही दो एजेंसियों की है | मजबूरन हमें अपने अंग्रेजी टेबलायड ‘कालचक्र’ में सारा विस्तृत विवरण छापना पड़ा| जिसे हमने सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट के न्यायधीशों, राष्ट्रिय मीडिया (टीवी व अखबार) के सभी प्रमुख लोगों, वरिष्ठ सरकारी अधिकारीयों, सभी सांसदों और कुछ महत्वपूर्ण लोगों को भेजा| आश्चर्य की बात है कि इस अखबार का वितरण हुए आज तीन हफ्ते से ज्यादा हो गए हैं और मीडिया में कोई हलचल नहीं हो रही| जो भी रिपोर्ट इसमें हमने तथ्यों के आधार पर छापी हैं वो हिला देने वाली हैं| जो भी इस अखबार को पढ़ रहा है वो हतप्रभ रह जाता है कि इतनी सारी जानकारी उस तक क्यों नहीं पहुंची | जबकि हर अखबार में प्रायः एक सम्वाददाता नागरिक उड्डयन मंत्रालय को कवर करने के लिए तैनात होता है | तो इन संवाददाताओं ने इतने वर्षों में क्या किया जो वो इन बातों को जनता के सामने नहीं ला सके ?
इसके अलावा संसद का सत्र भी चालू है पर अभी तक किसी भी सांसद ने इस मुद्दे को नहीं उठाया और शायद इस समबन्धित प्रश्न भी नहीं डाला है, आखिर क्यों ? उधर न्यायपालिका यदि चाहे तो इस मामले में ‘सुओ मोटो’ नोटिस जारी करके भारत सरकार से सारे दस्तावेज़ मंगा सकती है और सीबीआई को अपनी निगरानी में जांच करने के लिए निर्देशित कर सकती है | पर अभी तक यह भी नहीं हुआ है | चिंता की बात है कि कार्यपालिका अपना काम करेगी नहीं| विधायिका इस मुद्दे को उठाएगी नहीं| न्यायपालिका अपनी तरफ से पहल नहीं करेगी और मीडिया भी इस पर खामोश रहेगा | तो क्या भ्रष्टाचार को लेकर जो शोर टीवी चैनलों में रोज़ मचता है या अख़बारों में लेख लिखे जाते हैं वो सिर्फ एक नाटकबाज़ी होती है? इसमें कोई हकीकत नहीं है ? क्योंकि हकीकत तो तब होती जब इस तरह के बड़े मामले को लेकर हर संस्था उद्व्वेलित होती तब देश को इसकी जानकारी मिलती और दोषियों को सज़ा | लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हुआ है |
कारण खोजने पर पता चला कि जेट एयरवेज भारी तादाद में महत्वपूर्ण लोगों को धन, हवाई टिकट या एनी फायदे देती है | जिससे ज्यादातर लोगों मूह बंद किया जाता है | कुछ अपवाद भी होंगे जो अन्य कारणों से खामोश होंगे |
हमारे लिए ये कोई नया अनुभव नहीं है| 1993 में जब हमने जैन डायरी हवाला काण्ड का भांडा फोड़ किया था तो अगले दो ढाई वर्ष तक हम अदालत में लड़ाई लड़ते रहे और साथ ही क्षेत्रीय अख़बारों व पर्चों के माध्यम से अपनी बात जनता तक पहुंचाते रहे | क्योंकि उस वक्त भी राष्ट्रिय मीडिया ने हवाला काण्ड को शुरू में महत्व नहीं दिया था| पर आगे चल कर जब 1996 में देश के 115 लोगों को, जिसमें दर्जनों केंद्रीय मंत्रियों, राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों, विपक्ष के नेताओं और आला अफसरों को भ्रष्टाचार में चार्जशीट किया गया था तब के बाद सारा मीडिया बहुत ज्यादा सक्रीय हो गया| वही स्थिति इस उड्डयन मंत्रालय के काण्ड की भी होने वाली है| जब यह मामला कोर्ट के सामने आएगा तभी शायद मीडिया इसे गंभीरता से लेगा |
जब सुरेश प्रभु रेल मंत्री थे तो उनके बारे में यह कहा जाता था कि वे अपने मंत्रालय में किसी भी तरह कि ‘नॉन सेंस’ सहन नही करते थे | इस कॉलम के माध्यम से सुरेश प्रभु का ध्यान नागरिक उड्यन मंत्रालय में व्यप्त घोटालों की ओर लाना है जिसे उनसे पहले के सभी मंत्री व अधिकारी अनदेखा करते आये हैं |
सोचने वाली बात यह है कि इस मंत्रालय में हो रहे भ्रष्टाचार, जो मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार के समय से चल रहा था, उसे पूर्व मंत्री अशोक गजपति राजू ने तमाम सुबूत होने के बावजूद लगभग चार वर्षों तक अनदेखा क्यों किया ? यह सभी मामले नरेश गोयल की जेट एयरवेज से जुड़े हैं, जिसने देश के नियमों और कानूनों की खुलेआम धज्जियां उड़ाईं |
मिसाल के तौर पर अगर जेट एयरवेज के बहुचर्चित बीच आसमान के ‘महिला व पुरुष पायलट के झगड़े’ की बात करें तो उन दोनों पायलटों का इतिहास रहा है कि उन दोनों के ‘रिश्ते’ के चलते वे ज्यादातर ड्यूटी साथ साथ ही करते थे| यह नागरिक उड्यन मंत्रालय के कानूनों के खिलाफ है, लेकिन इसकी जांच कौन करेगा ? मंत्रालय के कई बड़े अधिकारी तो नरेश गोयल कि जेब में हैं | चौकाने वाली बात तो यह है कि यदि कोई सवारी विमान के पायलट या क्रू से बदसलूकी करता है तो उसके खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जाती है और उसका नाम ब्लैकलिस्ट किया जाता है | लेकिन इस मामले में इन दोनों पायलटों के खिलाफ एफ.आई.आर का न लिखे जाना इस बात का प्रमाण है कि नागरिक उड्यन मंत्रालय के अधिकारी किसके इशारे पर काम कर रहे हैं |
अगर जेट एयरवेज की खामियों को गिनना शुरू करें तो वह सूची बहुत लम्बी हो जाएगी | हाल ही में चर्चा में रहे इसी एयरलाइन्स के एक विमान का गोवा के हवाई अड्डे पर हुए हादसे स्मरण आते ही उस विमान में घायल दर्जनों यात्रियों के रौन्कटे खड़े हो जाते हैं | यह हादसा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि उस विमान को उड़ाने वाले पायलट हरी ओम चौधरी को जेट एयरवेज के ट्रेनिंग के मुखिया वेंकट विनोद ने किसी राजनैतिक दबाव के कारण से पायलट बनने के लिए हरी झंडी दे दी| जबकि वे इस कार्य के लिए सक्षम नहीं था | नतीजा आपके सामने है | अगर सूत्रों की माने तो उन्हीं हरी ओम चौधरी को इस हादसे की जांच के चलते रिलीज़ भी कर दिया गया है | यानि जांच की रिपोर्ट जब भी आए जैसी भी आए, इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता ये तो हवाई जहाज़ उड़ाते रहेंगे और मासूम यात्रियों की जान से खिलवाड़ करते रहेंगे|
अगर नागरिक उड्यन मंत्रालय के अधिकारीयों का यही हाल रहेगा तो हमें हवाई यात्रा करते समय इश्वर को याद करते रहना होगा और उन्ही के भरोसे यात्रा करनी होगी | इस डर और खौफ से बचने के लिए सभी यात्रियों की उम्मीद एक ऐसे मंत्री से की जानी चाहिए जो अपने अधिकारीयों को बिना किसी खौफ के केवल कानून के दायरे में रह कर ही कम करने की सलह दे किसी बड़े उद्योगपति या देशद्रोही के कहने पर नहीं |

Monday, March 5, 2018

एक योद्धा आई.ए.एस. की प्रेरणास्पद जिंदगी

ब्रज परिक्रमा के विकास के लिए सलाह देने के सिलसिले में हरियाणा के पलवल जिले के डीसी. मनीराम शर्मा से हुई मुलाकात जिंदगी भर याद रहेगी। अपने 4 दशक के सार्वजनिक जीवन में लाखों लोगों से विश्वभर में परिचय हुआ है। पर मनीराम शर्मा जैसा योद्धा एक भी नहीं मिला। वे एक पिछडे गांव के, अत्यन्त गरीब, निरक्षर मजदूर माता-पिता की गूंगी-बहरी संतान हैं। फिर भी पढ़ाई में लगातार 10 सर्वश्रेष्ठ छात्रों में आने वाले मनीराम ने तीन बार आईएएस. की परीक्षा पूरी तरह उत्तीर्ण की। फिर भी भारत सरकार उनके दिव्यांगों का हवाला देकर, उन्हें नौकरी पर लेने को तैयार नहीं थी। भला हो ‘टाइम्स आफ इंडिया’ की संवाददाता रमा नागराजन का जिसने जुनून की हद तक जाकर मनीराम के हक के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ी। इंडिया गेट पर हजारों लोगों के साथ ‘कैडिंल मार्च’ किये। रमा का कहना था कि ‘गूंगा-बहरा’ मनीराम नहीं ‘गूंगी-बहरी’ सरकार है।

आखिर ये संघर्ष सफल हुआ और मनीराम शर्मा को मणिपुर काडर आवंटित हुआ। मैंने जब रमा नागराजन को इस समर्पित पत्रकारिता के लिए बधाई दी, तो उसका कहना था कि मैंने कुछ नहीं किया, सबकुछ मनीराम के अदम्य साहस, कड़े इरादे और प्रबल इच्छा शक्ति के कारण हुआ। वास्तव में मनीराम के संघर्ष की कहानी जहां एक तरफ पत्थर दिल इंसान को भी पिघला देती है, वहीं इस देश के हर संघर्षशील व्यक्ति को जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।

राजस्थान के अलवर जिले के गांव बंदनगढ़ी में 1975 में जहां मनीराम का जन्म हुआ, वहां कोई स्कूल नहीं था। केवल गांव के मंदिर में कुछ हिंदी धर्मग्रंथ रखे थे। इस तरह श्री रामचरित मानस जी व श्रीमद्भागवत् जी को मनीराम ने दर्जनों बार घोट-घोटकर पढ़ा। ये भी इस गूंगे-बहरे बच्चे को पिता की मार से बचकर करना पढ़ता था, जो इसे भेड़ चराने को कहते थे। दुर्भाग्यवश बहरापन उसके परिवार में है। उसकी मां, दादी व दोनो बहनें भी बहरी थी।

मनीराम को तपती रेत पर नंगे पैर 5 किमी. चलकर स्कूल जाना पड़ता था। उसके मन में एक ही लगन थी कि बिना पढ़े-लिखे, वह अपने परिवार को इस गरीबी से उबार नहीं पायेगा। उसने इतनी मेहनत की कि दसवीं और बारहवी में बोर्ड की परीक्षा में क्रमशः पांचवी और सांतवी स्थिति पर आया। माता-पिता के लिए पटवारी या स्कूल का अध्यापक बनना, किसी कलैक्टर बनने से कम नहीं था। जो अब वो बन सकता था। पर उसे तो आगे जाना था। उसके प्राध्यापक ने उसके पिता को राजी कर लिया कि मनीराम को अलवर के कालेज में भेज दिया जाए, जहां ट्यूशन पढ़ाकर मनीराम ने पढ़ाई की और राज्य की लिपिक वर्ग की परीक्षा में सफल हो गया। पर वो आगे बढ़ना चाहता था । उसे पीएचडी करने का वजीफा मिल गया। पीएचडी तो की पर मन में लगन लग गई कि आईएएस में जाना है। सबने हतोत्साहित किया कि बहरे लोगों के लिए इस नौकरी में कोई संभावना नहीं है, पर उसने फिर भी हिम्मत नहीं हारी।

2005 के संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण कर ली। फिर भी भारत सरकार ने उसे बहरेपन के  कारण नौकरी देने से मना कर दिया। मनीराम ने हिम्मत नहीं हारी और 2006 में फिर ये परीक्षा पास की। इस बार उन्हें पोस्ट एंड टैलीग्राफ अकांउट्स की कमतर नौकरी दी गई। जो उन्होंने ले ली। तब उन्हें पहली बार एक बड़े डाक्टर ने बताया कि आधुनिक तकनीकी के आपरेशन से उनका बहरापन दूर हो सकता है। पर इसकी लागत 7.5 लाख रूपये आयेगी। मनीराम के क्षेत्र के सांसद ने विभिन्न संगठनों से 5.5 लाख जुटाये, बाकी कर्ज लिया। आपरेशन सफल हुआ और इस तरह 25 वर्ष बाद मनीराम शर्मा सुन सकते थे। पर इतने साल बहरे रहने के कारण उनकी बोली स्पष्ट नहीं थी। जब कुछ सुना ही नहीं, तो बोल कैसे पाते? ‘स्पीच थेरेपी’ के लिए एक लाख रूपया और बहुत समय चाहिए था। पर उन्हें तो लाल बहादुर शास्त्री अकादमी में प्रशिक्षण के लिए जाना था। मनीराम ने इन विपरीत परिस्थतियों में कड़ा अभ्यास जारी रखा। नतीजतन अब वो बोल और सुन सकते थे।

एक बार फिर उसी सिविल सेवा परीक्षा में बैठे और 2009 में फिर तीसरी बार उत्तीर्ण हुए। इस बार उन्हें मणिपुर में उप जिलाधिकारी बनाया गया। 2015 में उनका काडर बदलकर हरियाणा मिल गया। तब से वे मुस्तैदी से अपना दायित्व निभा रहे हैं। उनके हृदय में गरीबों और दिव्यांगों के लिए सच्ची श्रद्धा है। जिनके कल्याण के कामों में वे जुटे रहते हैं। पिछले महीने जब मैं उनसे मिला, तो वे गदगद हो गये और बोले कि अपने छात्र जीवन से वे मेरे बारे में और मेरे लेखों को अखबारों में पढ़ते आ रहे हैं। जिस बच्चे के माता-पिता निरक्षर और मजदूर हों और गांव में अखबार भी न आता हो, उसने ये लेख कैसे पढ़े होंगे? मनीराम बताते हैं कि दूसरे गांव के स्कूल से आते-जाते रास्ते में चाट-पकौड़ी के ठेलों के पास जो अखबार के झूठे लिफाफे पड़े होते थे, उन्हें वे रोज बटोरकर घर ले आते थे। फिर पानी से उनका जोड़ खोलकर उनमें छपी दुनियाभर की खबरे पढ़ते थे। इससे उनका सामान्य ज्ञान इतना बढ़ गया कि उन्हें सिविल सेवा परीक्षा में सामान्य ज्ञान में काफी अच्छे अंक प्राप्त हुए। क्यों है न कितना प्रेरणास्पद मनीराम शर्मा का जीवन संघर्ष ?

Monday, February 26, 2018

क्या बैंक हमें लूटने के लिए हैं?


2015 में मैंने ‘बैंकों के फ्राड’ पर तीन लेख लिखे थे। आज देश का हर नागरिक इस बात से हैरान-परेशान है कि उसके खून-पसीने की जो कमाई बैंक में जमा की जाती रही, उसे मु्ट्ठीभर उद्योगपति दिन दहाड़े लूटकर विदेश भाग रहे हैं। बैंकों के मोटे कर्जे को उद्योगपतियों द्वारा हजम किये जाने की प्रवृत्ति नई नहीं है। पर अब इसका आकार बहुत बड़ा हो गया है। एक तरफ तो एक लाख रूपये का कर्जा न लौटा पाने की शर्म से गरीब किसान आत्महत्या कर रहे हैं और दूसरी तरफ 10-20 हजार करोड़ रूपया लेकर विदेश भागने वाले नीरव मोदी पंजाब नेशनल बैंक को अंगूठा दिखा रहे हैं।

उन लेखों में इस बैकिंग व्यवस्था के मूल में छिपे फरेब को मैंने अंतर्राष्ट्रीय उदाहरणों से स्थापित करने का प्रयास किया था। सीधा सवाल यह है कि भारत के जितने भी लोगों ने अपना पैसा भारतीय या विदेशी बैंकों में जमा कर रखा है, अगर वे सब कल सुबह इसे मांगने अपने बैंकों में पहुंच जाएं, तो क्या ये बैंक 10 फीसदी लोगों को भी उनका जमा पैसा लौटा पाएंगे। जवाब है ‘नहीं’, क्योंकि इस बैंकिंग प्रणाली में जब भी सरकार या जनता को कर्ज लेने के लिए पैसे की आवश्यकता पड़ती है, तो वे ब्याज समेत पैसा लौटाने का वायदा लिखकर बैंक के पास जाते हैं। बदले में बैंक उतनी ही रकम आपके खातों में लिख देते हैं। इस तरह से देश का 95 फीसदी पैसा व्यवसायिक बैंकों ने खाली खातों में लिखकर पैदा किया है, जो सिर्फ खातों में ही बनता है और लिखा रहता है। भारतीय रिजर्व बैंक मात्र 5 प्रतिशत मुद्रा ही छापता है, जो कि कागज के नोट के रूप में हमें दिखाई पड़ते हैं। इसलिए बैंकों ने 1933 में गोल्ड स्टैडर्ड खत्म कराकर आपके रूपए की ताकत खत्म कर दी। अब आप जिसे रूपया समझते हैं, दरअसल वह एक रूक्का है। जिसकी कीमत कागज के ढ़ेर से ज्यादा कुछ भी नहीं। इस रूक्के पर क्या लिखा है, ‘मैं धारक को दो हजार रूपए अदा करने का वचन देता हूं’, यह कहता है भारत का रिजर्व बैंक। जिसकी गारंटी भारत सरकार लेती है। इसलिए आपने देखा होगा कि सिर्फ एक के नोट पर भारत सरकार लिखा होता है और बाकी सभी नोटों पर रिजर्व बैंक लिखा होता है। इस तरह से लगभग सभी पैसा बैंक बनाते हैं। पर रिजर्व बैंक के पास जितना सोना जमा है, उससे कई दर्जन गुना ज्यादा कागज के नोट छापकर रिजर्व बैंक देश की अर्थव्यवस्था को झूठे वायदों पर चला रहा है।

जबकि 1933 से पहले हर नागरिक को इस बात की तसल्ली थी कि जो कागज का नोट उसके हाथ में है, उसे लेकर वो अगर बैंक जाएगा, तो उसे उसी मूल्य का सोना या चांदी मिल जाएगा। कागज के नोटों के प्रचलन से पहले चांदी या सोने के सिक्के चला करते थे। उनका मूल्य उतना ही होता था, जितना उस पर अंकित रहता था, यानि कोई जोखिम नहीं था।

पर, अब आप बैंक में अपना एक लाख रूपया जमा करते हैं, तो बैंक अपने अनुभव के आधार पर उसका मात्र 10 फीसदी रोक कर 90 फीसदी कर्जे पर दे देता है और उस पर ब्याज कमाता है। अब जो लोग ये कर्जा लेते हैं, वे भी इसे आगे सामान खरीदने में खर्च कर देते हैं, जो उस बिक्री से कमाता है, वो सारा पैसा फिर बैंक में जमा कर देता है, यानि 90 हजार रूपए बाजार में घूमकर फिर बैंक में ही आ गए। अब फिर बैंक इसका 10 फीसदी रोककर 81 हजार रूपया कर्ज पर दे देता है और उस पर फिर ब्याज कमाता है। फिर वो 81 हजार रूपया बाजार में घूमकर बैंकों में वापिस आ जाता है। फिर बैंक उसका 10 फीसदी रोककर बाकी को बाजार में दे देता है और इस तरह से बार-बार कर्ज देकर और हर बार ब्याज कमाकर जल्द ही वो स्थिति आ जाती है कि बैंक आप ही के पैसे का मूल्य चुराकर बिना किसी लागत के 100 गुनी संपत्ति अर्जित कर लेता है। इस प्रक्रिया में हमारे रूपए की कीमत लगाकर गिर रही है। आप इस भ्रम में रहते हैं कि आपका पैसा बैंक में सुरक्षित है। दरअसल, वो पैसा नहीं, केवल एक वायदा है, जो नोट पर छपा है। पर, उस वायदे के बदले (नोट के) अगर आप जमीन, अनाज, सोना या चांदी मांगना चाहें, तो देश के कुल 10 फीसदी लोगों को ही बैंक ये सब दे पाएंगे। 90 फीसदी के आगे हाथ खड़े कर देंगे कि न तो हमारे पास सोना/चांदी है, न संपत्ति है और न ही अनाज, यानि पूरा समाज वायदों पर खेल रहा है और जिसे आप नोट समझते हैं, उसकी कीमत रद्दी से ज्यादा कुछ नहीं है।

आज से लगभग तीन सौ वर्ष पहले (1694 ई.) यानि ‘बैंक आॅफ इग्लैंड’ के गठन से पहले सरकारें मुद्रा का निर्माण करती थीं। चाहें वह सोने-चांदी में हो या अन्य किसी रूप में। इंग्लैंड की राजकुमारी मैरी से 1677 में शादी करके विलियम तृतीय 1689 में इंग्लैंड का राजा बन गया। कुछ दिनों बाद उसका फ्रांस से युद्ध हुआ, तो उसने मनी चेंजर्स से 12 लाख पाउंड उधार मांगे। उसे दो शर्तों के साथ ब्याज देना था, मूल वापिस नहीं करना था - (1) मनी चेंजर्स को इंग्लैंड के पैसे छापने के लिए एक केंद्रीय बैंक ‘बैंक आफ इंग्लैंड’ की स्थापना की अनुमति देनी होगी। (2) सरकार खुद पैसे नहीं छापेगी और बैंक सरकार को भी 8 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से कर्ज देगा। जिसे चुकाने के लिए सरकार जनता पर टैक्स लगाएगी। इस प्रणाली की स्थापना से पहले दुनिया के देशों में जनता पर लगने वाले कर की दरें बहुत कम होती थीं और लोग सुख-चैन से जीवन बसर करते थे। पर इस समझौते के लागू होने के बाद पूरी स्थिति बदल गई। अब मुद्रा का निर्माण सरकार के हाथों से छिनकर निजी लोगों के हाथ में चला गया यानि महाजनों (बैंकर) के हाथ में चला गया। जिनके दबाव में सरकार को लगातार करों की दरें बढ़ाते जाना पड़ा। जब भी सरकार को पैसे की जरूरत पड़ती थी, वे इन केंद्रीयकृत बैंकों के पास जाते और ये बैंक जरूरत के मुताबिक पैसे का निर्माण कर सरकार को सौंप देते थे। मजे की बात यह थी कि पैसा निर्माण करने के पीछे इनकी कोई लागत नहीं लगती थी। ये अपना जोखिम भी नहीं उठाते थे। बस मुद्रा बनायी और सरकार को सौंप दी। इन बैंकर्स ने इस तरह इंग्लैंड की अर्थव्यवस्था को अपने शिकंजे में लेने के बाद अपने पांव अमेरिका की तरफ पसारने शुरू किए।

इसी क्रम में 1934 में इन्होंने ‘भारतीय रिजर्व बैंक’ की स्थापना करवाई। शुरू में भारत का रिजर्व बैंक निजी हाथों में था, पर 1949 में इसका राष्ट्रीयकरण हो गया। 1947 में भारत को राजनैतिक आजादी तो मिल गई, लेकिन आर्थिक गुलामी इन्हीं बैंकरों के हाथ में रही। क्योंकि इन बैंकरों ने ‘बैंक आफ इंटरनेशनल सैटलमेंट’ बनाकर सारी दुनिया के केंद्रीय बैंकों पर कब्जा कर रखा हैं और पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था वहीं से नियंत्रित कर रहे हैं। रिजर्व बैंक बनने के बावजूद देश का 95 फीसदी पैसा आज भी निजी बैंक बनाते हैं। वो इस तरह कि जब भी कोई सरकार, व्यक्ति, जनता या उद्योगपति उनसे कर्ज लेने जाता है, तो वे कोई नोटों की गड्डियां या सोने की अशर्फियां नहीं देते, बल्कि कर्जदार के खाते में कर्ज की मात्रा लिख देते हैं। इस तरह इन्होंने हम सबके खातों में कर्जे की रकमें लिखकर पूरी देश की जनता को और सरकार को टोपी पहना रखी है। इस काल्पनिक पैसे से भारी मांग पैदा हो गई है। जबकि उसकी आपूर्ति के लिए न तो इन बैंकों के पास सोना है, न ही संपत्ति और न ही कागज के छपे नोट। क्योंकि नोट छापने का काम रिजर्व बैंक करता है और वो भी केवल 5 फीसदी तक नोट छापता है, यानि सारा कारोबार छलावे पर चल रहा है।
इस खूनी व्यवस्था का दुष्परिणाम यह है कि रात-दिन खेतों, कारखानों में मजदूरी करने वाले किसान-मजदूर हों, अन्य व्यवसायों में लगे लोग या व्यापारी और मझले उद्योगपति। सब इस मकड़जाल में फंसकर रात-दिन मेहनत कर रहे हैं। उत्पादन कर रहे हैं और उस पैसे का ब्याज दे रहे हैं, जो पैसा इन बैंकों के पास कभी था ही नहीं। यानि हमारे राष्ट्रीय उत्पादन को एक झूठे वायदे के आधार पर ये बैंकर अपनी तिजोरियों में भर रहे हैं और देश की जनता और केंद्र व राज्य सरकारें कंगाल हो रहे हैं। सरकारें कर्जें पर डूब रही हैं। गरीब आत्महत्या कर रहा है। महंगाई बढ़ रही है और विकास की गति धीमी पड़ी है। हमें गलतफहमी यह है कि भारत का रिजर्व बैंक भारत सरकार के नियंत्रण में है। एक तरफ बैंकिंग व्यवस्था हमें लूट रही है और दूसरी तरफ नीरव मोदी जैसे लोग भी इस व्यवस्था की कमजोरी का फायदा उठाकर हमें लूट रहे हैं। भारत आजतक अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक उथल-पुथल से इसीलिए अछूता रहा कि हर घर के पास थोड़ा या ज्यादा सोना और धन गुप्त रूप से रहता था। अब तो वो भी नही रहा। किसी भी दिन अगर कोई बैंक अपने को दिवालिया घोषित कर दे तो सभी लोग हर बैंक से अपना पैसा निकालने पहिंच जायेंगे। बैंक दे नहीं पाएंगे। ऐसे में सारी बैंकिंग व्यवस्था एक रात में चरमरा जाएगी। क्या किसी को चिंता है?

Monday, February 19, 2018

नीरव मोदी, गुप्ता बंधु और नरेश गोयल में क्या समान है ?


नीरव मोदी का घोटाला 20 हजार करोड़ तक पहुंचने का अनुमान ।

पंजाब नेशनल बैंक ही नहीं, अभी और भी कई बैंक इसकी चपेट में आने वाले हैं। उल्लेखनीय है कि पिछले हफ्ते के 3 बड़े घोटालों के बीच एक व्यक्ति का नाम हर जगह उभर कर आ रहा है और वो है जैट ऐयरवेज़ के मालिक नरेश गोयल का। जैट ऐयरवेज़ की हवाई उड़ानों पर नीरव मोदी के विज्ञापन अभी तक प्रसारित हो रहे हैं। इन दोनों कंपनियों के बीच आर्थिक लेनदेन का जो कारोबार चल रहा है, क्या वह विशुद्ध व्यवसायिक शर्तों पर है या वहां भी मोटी रकम को इधर से उधर ठिकाने लगाने का धंधा चल रहा है? इसकी जांच होनी चाहिए। तस्करी और हवाला के कामों में इस तरह की कंपनियों का घालमेल होना समान्य सी बात होती है। अभी पिछले ही दिनों प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारीयों ने लखनऊ हवाई अड्डे पर जेट ऐयरवेज़ के अधिकारियो को गिरफ्तार किया जो खाड़ी से आने वाली जेट ऐयरवेज़ की उड़ानों में सोने और हीरे की तस्करी करवा रहे थे |

उधर दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति ज़ूमा को भारी भ्रष्टाचारों के आरोपों के बाद अपने पद से हटना पड़ा। संभावना ये है कि उन्हें जल्दी ही जेल भी हो सकती है। उन पर सहारनपुर के गुप्ता बंधुओं के साथ दक्षिणी अफ्रीका में हजारों करोड़ के घोटाले करने का आरोप है। उल्लेखनीय है कि गुप्ता बंधुओं के परिवार की शादी के लिए ही जैट ऐयरवेज़ का हवाई जहाज दिल्ली से उड़कर, अवैध रूप से दक्षिणी अफ्रीका के रक्षा क्षेत्र के प्रतिबंधित हवाई अड्डे पर उतरा था। जिस हवाई जहाज में तमाम ताकतवर लोगों के अलावा उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव और आजम खान भी मेहमान बनकर गये थे। उस हवाई अड्डे पर कस्टम विभाग के अधिकारियों की तैनाती नहीं होती। जिसका लाभ उठाकर भारी मात्रा में अवैध सूटकेस हवाई जहाज से उतारकर मिनटों में गायब कर दिये गये थे। चूंकि दक्षिणी अफ्रीका के राष्ट्रपति ज़ूमा के इन गुप्ता बंधुओं से व्यापारिक नाते हैं, इसलिए यह सब बड़ी आसानी से हो गया। पर फौरन ही इस पर वहां मीडिया में तूफान मच गया। हमने जब इसी कॉलम में इस मामले को उठाया और नागरिक उड्डयन मंत्री महेश शर्मा से उसकी लिखित शिकायत की, तो उन्होंने इसे अपने से पहली सरकार के समय हुई घटना बताकर टाल दिया और कोई जांच नहीं करवाई। हमारे बार-बार पीछे पड़ने पर भारत सरकार का कहना था कि इससे हमारे दक्षिण अफ्रीका से संबंधों पर विपरीत असर पड़ेगा। इसलिए जांच नहीं की जा सकती।

अब जबकि पूर्व राष्ट्रपति ज़ूमा और गुप्ता बंधु दोनों दक्षिण अफ्रीका में भ्रष्टाचार के मामलों में जांच के घेरे में आ चुके हैं, तो भारत सरकार को भी इस मामले  प्रभावी जांच तेज़ी से करवानी चाहिए। अपने स्तर पर मैं दक्षिण अफ्रीका के नये राष्ट्रपति और भारत के प्रधानमंत्री जी को इस आशय का पत्र लिख रहा हूं।

उल्लेखनीय है कि ज़ूमा के गद्दी छोड़ने से पहले ही गुप्ता बंधु अफ्रीका से भाग निकले और दुबई में जाकर शरण ले ली है। जहां बसने के लिए उन्हें अपनी अकूत कमाई में से मोटी रकम देनी पड़ी है, ऐसा सूत्रों से पता चला है। उनके इस पूरे ऑपरेशन में मुख्य सूत्रधार की भूमिका जैट ऐयरवेज़ के मालिक नरेश गोयल ने  निभाई है। जो स्वयं दुबई में बसे हुए हैं।

भारत सरकार के लिए यह चिंता की बात होनी चाहिए कि जैट ऐयरवेज़ के तमाम घोटाले और देशद्रोह के आचरण के बावजूद उसकी जांच को सभी  ऐजेंसियां व सीबीआई दबाकर बैठे हैं। अब तो अपने घोटालों के अलावा जैट ऐयरवेज़ के मालिक  का नीरव मोदी और दक्षिण अफ्रीका के गुप्ता बंधुओं से गाढ़ा नाता सामने आ रहा है।

पिछले हफ्ते इसी कॉलम में हमने जैट ऐयरवेज़ के घोटालों की एक बानगी फिर से पेश की थी और बताया था कि हमने प्रधानमंत्री जी से देशद्रोह के इस कांड की ईमानदार जांच कराने की लिखकर अपील की है। उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रधानमंत्री जी अपने अधीन नागरिक उड्डयन मंत्रालय, वित्त मंत्रालय व गृह मंत्रालय की नीरव मोदी या नरेश गोयल जैसे बड़े घोटालेबाजों से साझ-गांठ की पारदर्शी जांच कराने में अब बिल्कुल देर नहीं करेंगे।

क्योंकि अगर इतने बडे़ कांडों में अब भी सही जांच नहीं की गई, तो भविष्य में जैट ऐयरवेज़ जैसी कंपनियां भारत की अर्थव्यवस्था को और भी बड़ा झटका दे सकती है। फिर कहीं ये न कहना पड़े, ‘‘अब पछताये होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत’’।

वैसे सीबीआई के मौजूदा निदेशक से तो इस मामले में कोई उम्मीद नहीं की जा सकती। क्योंकि वे जब से इस पद पर आए हैं, तब से उन्हें जैट ऐयरवेज़ और नागरिक उड्डयन मंत्रालय की मिलीभगत और भ्रष्टाचार की पूरी रिर्पोट मय सबूत दी जा चुकी है। पर फिर भी उन्होंने इस पर आजतक कोई कार्यवाही नहीं की। अलबत्ता सीबीआई के आला अफसरों को व्यक्तिगत स्तर पर हमारे 'कालचक्र समाचार ब्यूरो' ने जब ये दस्तावेज दिखाये, तो वे यह देखकर हैरान रह गये कि इतना ठोस मामला होने के बावजूद भी अभी जांच क्यों नहीं हुई।

नीरव मोदी के मामले में भी यही बात सामने आ रही है कि तीन बरस से उसके घोटालों की जानकारी, सभी संबंधित जांच ऐजेंसियों को कुछ लोगों द्वारा मय सबूत के दी जा रही थी। पर किसी ने न तो जांच की, न नीरव मोदी की पकड़-धकड़ की और न ही घोटाले को आगे होने से रोका।
प्रधानमंत्री के लिए ये बहुत चिंता की बात होनी चाहिए कि उनकी नाक के नीचे इतने बड़े घोटाले हो रहे हैं, आम जनता के खून-पसीने का हजारों करोड़ रूपया हजम कर मुट्ठीभर लोग दुनियाभर में अययाशी कर रहे हैं और फिर भी कानून की गिरफ्त से बाहर हैं।

Monday, February 12, 2018

नागरिक उड्यन मंत्रालय जैट एयरवेज की जेब में

इसी कॉलम में हम 2015 में लिख चुके हैं कि ‘जैट एयरवेज’ किस तरह से भारत सरकार को अपनी अंगुलियों पर नचाकर यात्रियों की जिंदगी से खिलवाड़ और देश से गद्दारी कर रहा है। हमारी तमाम शिकायतें प्रमाणों के साथ सीबीआई के दफ्तरों में 2015 से धूल खा रही है। भारत सरकार का गृह मंत्रालय तक जैट ऐयरवेज के अपराधों पर पर्दा डाले हुए था। जब दिल्ली उच्च न्यायालय ने गृह मंत्रालय को आदेश दिये, तब बड़ी मुश्किल से उसने ये बताया कि जैट एयरवेज का विदेशी मूल का सीओओ/सीईओ  कैप्टन हामिद अली बिना सरकार की सुरक्षा, अनापत्ति हासिल किये ही 7 वर्ष तक इस एयरलाइस को चलाता रहा। हमारे बार-बार आरटीआई सवाल पूछने पर, भारत सरकार का गृह मंत्रालय यह झूठ बोलता रहा कि, ‘इस प्रश्न का उत्तर देना सुरक्षा की दृष्टि से संभव नहीं है’। अदालत की फटकार पड़ने के बाद ही उसे होश आया।

इसी तरह भारत सरकार का ‘नागरिक उड्यन मंत्रालय’ भी जैट एयरवेज के अपराधों को छिपाने में लगा रहा है। जब हमारे ‘कालचक्र समाचार ब्यूरो’ ने पर्दा फाश किया, तो जैट एयरवेज को अपने 131 पाइलट ग्राउंड करने पड़े। क्योंकि वे बिना कुशलता की परीक्षा पास किये हवाई जहाज उड़ा रहे थे और यात्रियों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे थे। क्योंकि जैट एयरवेज के मालिक नरेश गोयल ने बड़ी होशियारी से अपने ही कर्मचारियों को ‘डीजीसीए’ में तैनात करवा रखा था, जो देश के सभी एयरलाईंस के पाईलटों को नियंत्रित करता है। ‘सैंया भये कोतवाल, तो डर काहे का’। नतीजतन जैट एयरवेज के नाकारा पाईलट हवाई यात्रियों की जिंदगी से खिलवाड़ करते आ रहे हैं। हाल ही में उसके दो पाईलट आसमान में जहाज को अकेला छोड़ लड़ते-झगड़ते कॉकपिट से बाहर आ गये।
तुर्की हवाई सीमा में उसका हवाई जहाज अचानक 5000 फुट नीचे आ गया, क्योंकि कॉकपिट में एक पाईलट सो रहा था और दूसरी पायलट आई पैड पर गेम खेल रही थी । बहुत बड़ी हवाई दुर्घटना होने से बच गयी। जर्मनी में भी जैट एयरवेज के कॉकपिट में पाईलटों के सो जाने से हड़कंप मच गया था। पाईलट के खराब प्रशिक्षण के कारण गोवा में जैट एयरवेज का जहाज रन वे से  फिसलकर कीचड़ में चला गया। लंदन में उसका जहाज हवाई अड्डे की दीवार से टकराते-टकराते बचा। एम्सटर्डम में उसका जहाज रन वे पर गलत गति से दौड़ने के कारण अपनी पूंछ टकराकर तोड़ बैठा। इसी तरह लंदन के रन वे पर दौड़ते हुए, वह गलत दिशा में मुड़ गया, जहां कई जहाजों से टक्कर होते-होते बची। हाँगकाँग में उसके पाईलट ने इतनी खतरनाक लैडिंग की कि लगा कि जहाज दुर्घटनाग्रस्त हो जायेगा। सभी यात्रियों की चीखें निकल गईं।

हाल ही में जैट एयरवेज़ की एक विमान परिचारिका हाल ही में दिल्ली हवाई अड्डे पर 3.5 करोड़ की अवैध विदेशी मुद्रा के साथ पकड़ी गयी। हम पहले ही सीबीआई को तमाम दस्तावेज दे चुके हैं। जिनसे यह सिद्ध होता है कि जैट ऐेयरवेज का मालिक नरेश गोयल हजारों करोड़ रूपये की हेराफेरी कर रहा है।

जैट एयरवेज के पाईलटों की इन कमजोरियों और गलतियों की ओर गत 4 वर्षों से हम नागरिक उड्यन मंत्रालय के सचिव और डीजीसीए के महानिदेशक को लिख-लिखकर शिकायत भेजते रहे हैं। पर शायद हमारी कलम से ज्यादा ताकत नरेश गोयल की मोटी रिश्वत में हैं, जो मंत्रालयों में करोड़ों रूपया बांटकर अपने सभी गुनाहों पर पर्दा डाल लेता है।

नरेश गोयल के दर्जनों गुनाहों पर जो शिकायते हमने सीबीआई को 2015 में दी, उनमें अपने हर आरोप के समर्थन में दर्जनों प्रमाण और दस्तावेज भी दिये। पर लगता है कि ‘जैन हवाला कांड’ की तरह इस मामले में भी सीबीआई के अब तक के निदेशक रहे लोग नरेश गोयल के पैसे के प्रभाव में हैं, इसीलिए कोई जांच आगे नहीं बढ़ी। मजबूरन पिछले हफ्ते मुझे प्रधानमंत्री जी को सीधे लिखित शिकायत करनी पड़ी। जिस पर मैंने उनसे कहा कि ‘आप तो देशवासियों से अपील कर रहे हैं कि भ्रष्टाचार से लड़े, पर आपके अधीनस्थ नागरिक उड्यन मंत्रालय के अब तक के सभी मंत्री और सचिव व गृह मंत्रालय के अधिकारी नरेश गोयल के घोटालों को छिपाने में जुटे हैं’। मैंने प्रधानमंत्री जी से अपील की कि हवाई यात्रियों और देश की सुरक्षा के हित में उन्हें इस मामले में कड़ाई से जांच करवानी चाहिए। हम इस जांच में पूरा सहयोग करने को तैयार हैं। उम्मीद है कि फिलिस्तीन के दौरे से लौटकर प्रधानमंत्री जी इस मामले पर प्राथमिकता से ध्यान देंगे और सीबीआई के निदेशक को तलब करेंगे कि वो आज तक इसे दबाये क्यों बैठे हैं ?

ये बड़ी तकलीफ की बात है कि इतनी बार अदालत की फटकार खाने के बाद, सीबीआई की कार्य प्रणाली में कोई अंतर नहीं आया है। उसकी कब्रगाह में आज भी दर्जनों बड़े घोटाले दफन हो चुके हैं, जिनकी जांच करने की सीबीआई की कोई मंशा नजर नहीं आती। यह चिंता और दुख की बात है। प्रधानमंत्री को इस पर ध्यान देना चाहिए। हवाला कांड में भी सीबीआई में तभी हड़कंप हुई थी, जब मैंने 1993 में सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खट-खटाया था। देखते हैं इस बार क्या होता है?

Monday, February 5, 2018

राजपूतों की शान है ‘पद्मावत’ फिल्म


इतने शोर शराबे के बाद पद्मावत फिल्म देखी, तो तबियत बाग-बाग हो गई। राजपूतों की संस्कृति, उनके संस्कार, उनका वैभव, उनके सिद्धांत, उनकी मान-मर्यादा, हर बात का इतना भव्य प्रर्दशन संजय लीला भंसाली ने किया है कि देखने वाला देखता ही रह जाता है। समझ में नहीं आता कि किन लोगों की मूर्खता के कारण इस पर इतना बवाल मचा।
मीडिया के बाजार में चर्चा है कि भाजपा ने गुजरात चुनाव के पहले राजपूत स्वाभिमान के नाम पर हिंदू ध्रुवीकरण की मंशा से इस आंदोलन को हवा दी। पर इस अफवाह का हमारे पास कोई प्रमाण नहीं है।

दूसरी अफवाह यह है कि संजय लीला भंसाली समय पर इस फिल्म को पूरा नहीं कर पाये थे और उन पर वितरकों का भारी दबाव था। अगर वे समय पर इसे रिलीज न कर पाते, तो बहुत लंबे कानूनी लफड़े में फंस जाते। इसलिए उन्होंने ये सब होने दिया। इस अफवाह का भी कोई प्रमाण हमारे पास नहीं है।
अब एक नया विवाद खड़ा किया जा रहा है कि फिल्म में सती प्रथा को गौरवान्वित किया गया है। इस विवाद को खड़ा करने वाली वे महिलाऐं हैं, जो महिला मुक्ति आंदोलन के आधुनिक संदर्भों को लेकर उत्साहित रहती हैं। मुझे उनकी विचारधारा पर कोई टिप्पणी नहीं करनी। पर यह जरूर कहना है कि राजस्थान में सती प्रथा को भारी सामाजिक मान्यता प्राप्त रही है। रानी पद्मावती का जौहर हुआ था या नहीं, पर लोकगाथाओं में खूब लोकप्रिय रहा है। यहां तक कि 64 साल पहले बनी फिल्म जागृति का मशहूर गाना ‘आओ बच्चों तुम्हें दिखाए, झांकी हिंदुस्तन की, इस मिट्टी से तिलक करो, यह धरती है बलिदान की, वंदे मातरम्-वंदे मातरम', की आगे एक पंक्ति है ‘कूद पड़ी थीं यहां हजारों पद्मिनियां अंगारों में’। इन 64 साल में महिला मुक्ति की झंडाबरदार महिलाओं ने कभी इस गाने का विरोध नहीं किया।

दरअसल इतिहास अच्छा हो या बुरा, एक कलाकार का, साहित्यकार का या फिल्मकार का कर्तव्य होता है कि उसे प्रभावशाली रूप् में प्रस्तुत करें। समय के साथ जीवन मूल्य बदलते रहते हैं। पहले सती प्रथा गौरान्वित होती थी, आज नहीं होती। इसका मतलब ये इतिहास के पन्नों से थोड़े ही गायब हो गई ? इसलिए एक बार फिर मैं संजय लीला भंसाली को बधाई देना चाहूंगा कि उन्होंने बड़ी खूबसूरती से राजपूत महिलाओं के दृढ़ चरित्र को दर्शाया है। जिसे देखकर हर दर्शक के मन में राजपूतों के प्रति सम्मान बढ़ा है।
जिन लोगों ने इसके नाम पर हिंसा या तोड-फोड़ की, फिल्म देखने के बाद वे मुझे मानसिक रूप से दिवालिये नजर आते हैं। यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि हम बिना पड़ताल के भावनाओं के अतिरेक में भड़क कर राष्ट्रीय सम्पत्ति का नुकसान करने लगते हैं और बाद में यह पता चलता है कि हमारे उत्पात मचाने का कोई ठोस कारण ही नहीं था। तो क्या माना जाए के उत्पात मचाने वाले किसी प्रलोभनवश ऐसा करते हैं?

जो भी हो यह दुखद स्थिति है। समाज की हर जाति, धर्म व सम्प्रदाय के लोगों को इस तालिबाना प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना चाहिए। लोकतंत्र में सबको अपना दृष्टिकोण रखने की आजादी सुनिश्चित की गई है। हमारा देश एक लोकतंत्र है। जहां विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों में, विभिन्न धर्मों के मानने वाले, विभिन्न प्रजातियों के लोग रहते हैं। उनके अपने रस्मों-रिवाज हैं, पहनावा है, खानपान है, मान्यताऐं हैं, इतिहास है और यहां तक कि उनके रूप, रंग और नाक-नक्श भी अलग-अलग तरह के हैं। नागालैंड, बंगाल, कश्मीर, हिमाचल, पंजाब, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, उड़ीसा जैसे राज्यों में जाकर देखिए, तो ये विभिन्नता स्पष्ट नजर आती है। पर इस विभिन्नता में एकता ही भारत की खूबसूरती है। यह बात हमें भूलनी नहीं चाहिए। मैं बृजवासी हूं, शाकाहारी हूं, तामसी भोजन से परहेज करता हूं, गोवंश के प्रति भारी श्रद्धा रखता हूं, तो इसका अर्थ ये बिल्कुल नहीं कि मेरी इच्छा और मेरे संस्कारों को नागालैंड के लोगों पर थोपा जाए।
बहुत पुरानी बात नहीं है जब 1960 के दशक में पश्चिमी पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान पर अपनी भाषा और संस्कृति थोपनी चाही, तो एक ही इस्लाम धर्म के मानने वाले होकर भी, वहां के लोग विरोध में उठ खड़े हुए। हिसंक क्रांति हुई और बांग्लादेश का जन्म हो गया।

हम भारतवासी कभी नहीं चाहेंगे कि 1947 की पीड़ा फिर से भोगी जाए। भारत और पाकिस्तान का बंटवारा दुनिया के इतिहास की सबसे दर्दनाक घटना थी। दूसरों के विचारों, कलाओं और संस्कृति के प्रति अहिसहिष्णुता प्रगट कर, हम सामाजिक विघटन की जमीन तैयार करते हैं और वहीं बाद में राजनैतिक विघटन का कारण बनती है। इसलिए पद्मावत के तर्कहीन विरोध से जो दुखद स्थिति पैदा हुई वैसी भविष्य में न हो, इसका हम सबको प्रयास करना चाहिए।
बात पद्मावत फिल्म की करें, तो अब यह तथ्य सबके सामने है कि पूरी दुनिया में जहां भी यह फिल्म रिलीज हुई है, दर्शकों ने इसे खूब सराहा है। दीपिका पादुकोण, शाहिद कपूर और रणवीर सिंह तीनों का अभिनय बहुत प्रभावशाली है और फिल्म में जान डालता है। जहां तक फिल्म के सैट की बात है, संजय लीला भंसाली अति प्रभावशाली सैट निर्माण के लिए मशहूर हैं। इस फिल्म में उन्होंने सिंहल (श्रीलंका), राजपूताना और खिलजी वंश की संस्कृति के अनुरूप भव्य सैटों का निर्माण कर फिल्म के कैनवास को बहुत आकर्षक बना दिया है। हर दृश्य एक पेंटिंग की तरह नजर आता है। आप फिल्म देखकर प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगे।